Book Review एन एंटायरली न्यू हिस्ट्री ऑफ इंडिया : भारत के समृद्ध इतिहास से साक्षात्कार

इतिहास लेखन को लेकर प्रख्यात अफ्रीकी साहित्यकार चिनुआ अचेबे की एक पंक्ति बहुत प्रसिद्ध है।

Update: 2021-06-27 06:38 GMT

तनिष्क | इतिहास लेखन को लेकर प्रख्यात अफ्रीकी साहित्यकार चिनुआ अचेबे की एक पंक्ति बहुत प्रसिद्ध है। उन्होंने लिखा था कि 'जब तक शेरों के अपने इतिहासकार नहीं होंगे, तब तक शिकार की सभी कहानियां शिकारी का ही महिमामंडन करती रहेंगी। अचेबे की यह बात भारतीय इतिहास और उसके लेखन पर भी अक्षरश: सही साबित होती है, जो कि अंग्र्रेजी, वामपंथी और मुगलिया सोच से अधिक प्रेरित रहा है। हालांकि अब ये वर्जनाएं टूट रही हैं। कई लेखक इसमें पथप्रदर्शक का काम कर रहे हैं।

फ्रांसीसी पत्रकार एवं लेखक फ्रांस्वा गोतिए ने अपनी पुस्तक 'द एंटायरली न्यू हिस्ट्री ऑफ इंडिया के माध्यम से भारतीय इतिहास को समग्र्रता के साथ वस्तुनिष्ठ रूप में प्रस्तुत करने का ही प्रयास किया है। यह पुस्तक भारत के प्रागैतिहासिक से लेकर प्राचीन, मध्यकालीन, आधुनिक और यहां तक कि समकालीन इतिहास की कड़ियों को जोड़ती है। इनमें सिंधु घाटी की सभ्यता से लेकर नरेंद्र मोदी के शासनकाल तक की पड़ताल करने के साथ-साथ भारत के संभावित भविष्य की थाह भी ली गई है।
इसकी विषयवस्तु की सटीकता का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि करीब 210 पृष्ठों की यह किताब 31 अध्याय समाहित किए हुए है। इससे स्पष्ट है कि लेखक अपने विचार को व्यापक विस्तार देते हुए भी उन्हें सारगर्भित तरीके से समझाने में सफल रहे हैं। अपने विषय की व्यापक भूमिका बांधने के बजाय उन्होंने सीधे बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित कर लक्ष्य संधान किया। इसी कारण वह इतने विषयों को साधने में सफल रहे हैं।
कई विवादित पहलुओं पर अपनी दृष्टि डाली
उन्होंने भारतीय इतिहास के कई विवादित पहलुओं पर अपनी दृष्टि डाली है। जैसे भारत में आर्यों के आगमन पर जारी शाश्वत बहस को लेकर वह अपना अभिमत रखते हैं। शायद इसी कारण आर्यों से जुड़ा अध्याय पुस्तक के सबसे लंबे पाठों में से एक है। इसके विपरीत सरस्वती नदी के अस्तित्व को लेकर माइकल डैनिनो ने 'द लॉस्ट रीवर नाम से 368 पन्नों की जो किताब लिखी, उस मसले को समझाने में गोतिए ने मात्र तीन पृष्ठ ही खर्च किए हैं। संयोग है कि गोतिए और डैनिनो दोनों फ्रांसीसी मूल के हैं।
गोतिए भारत में अश्व और अश्वारोहण से जुड़ी गुत्थी भी सुलझाते हैं
इसी कड़ी में गोतिए भारत में अश्व और अश्वारोहण से जुड़ी गुत्थी भी सुलझाते हैं। वहीं अशोक स्तंभ को भारत में धातुकर्म कौशल के प्रतीक के रूप में स्थापित करते हैं। इसी तरह वेदों को लेकर वह जर्मन विद्वान मैक्स मूलर की उस धारणा को ध्वस्त करते हैं, जिन्हें मूलर ने मात्र 1,500 वर्ष पुराना बताया, जबकि गोतिए प्रमाण देते हैं कि ये रचनाएं 5,000 वर्षों से भी अधिक प्राचीन हैं।
गोतिए ने भारतीय इतिहास पाठक को उसके स्वर्णिम पड़ावों से परिचित कराया
भारतीय इतिहास को लेकर पश्चिमी स्थापित मान्यताओं और कार्बन डेटिंग जैसी वैज्ञानिक पद्धतियों के बीच पिछले कुछ समय से द्वंद्व देखने को मिले हैं, जिन्हें लेकर भी लेखक ने समुचित साक्ष्य दिए हैं। इतिहास लेखन में प्राय: धारणा बहुत निर्णायक होती है और अमूमन लेखक पुस्तक में किसी परिकल्पना को पुष्ट करने के प्रयास में ही पूरा परिश्रम करते हैं। ऐसे पेशेवर इतिहासकारों के उलट गोतिए भारतीय इतिहास की गौरवशाली पगडंडियों पर आगे बढ़ते हुए पाठक को उसके स्वर्णिम पड़ावों से परिचित कराते हुए चलते हैं।
व्यापक स्तर पर संदर्भ ग्रंथों का उल्लेख पुस्तक को प्रामाणिकता प्रदान करता है
वास्तव में यह पुस्तक भारतीय इतिहास को लेकर प्रचलित पारंपरिक और पूर्वाग्रह से प्रेरित परिपाटी का परित्याग कर अपने पाठों के माध्यम से वस्तुनिष्ठता के प्राणतत्व का प्रवर्तन करती है। इसका प्रत्येक पाठ स्वयं में एक स्वतंत्र पुस्तक का स्वरूप लेने की क्षमता रखता है। व्यापक स्तर पर संदर्भ ग्रंथों का उल्लेख पुस्तक को प्रामाणिकता प्रदान करता है। वहीं अंत में ऐसे शब्दों की व्याख्या उन पाठकों का काम आसान करती है, जो भारतीय संस्कृति और उसके पहलुओं से अपरिचित हों। फ्रेंच से अंग्र्रेजी में किया गया इसका अनुवाद भी बढिय़ा है। कुल मिलाकर, इंडोलॉजी यानी भारतीय विद्या के विद्वानों में अपना अहम स्थान बना चुके गोतिए की यह किताब भारत के समृद्ध इतिहास पर एक सुनियोजित साजिश के तहत लगाए गए ग्र्रहण को दूर करके उसके प्रति गौरव का बोध कराती है।


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