ब्लैक फंगस कोरोना का ही दुष्प्रभाव है और इससे आंख की रोशनी सहित नाक और जबड़े भी होते हैं बुरी तरह प्रभावित
म्यूकॉरमाइकोसिस (Mucormycosis) यानि कि ब्लैक फंगस एक ऐसी जानलेवा बीमारी है जो
पंकज कुमार। संयम श्रीवास्तव। म्यूकॉरमाइकोसिस (Mucormycosis) यानि कि ब्लैक फंगस एक ऐसी जानलेवा बीमारी है जो कोरोना के दूसरे लहर में लोगों की परेशानी का सबब बनता जा रहा है. कोरोना के मरीज अगर किसी तरह कोरोना से छुटकारा पा भी लेते हैं तो ब्लैक फंगस की चपेट उन्हें मौत के मूंह में धकेल सकता है. मधुमेह से पीड़ित ऐसे मरीजों को आंख की रौशनी से लेकर, नांक से लेकर जबड़ों तक की हड्डियां गंवानी पड़ती हैं. कई मरीज इस कड़ी में जान से हाथ धो बैठते हैं या फिर अपनी आंखें गंवाकर हमेशा के लिए अंधे हो जाते हैं.
देश के कई शहरों जैसे कि दिल्ली, जयपुर, सूरत और अहमदाबाद में ब्लैक फंगस से पीड़ित मरीजों का मामला खूब सामने आ रहा है. जयपुर में कल तक 52 ऐसे मरीज सामने आए हैं जिनके आंख के नीचे फंगस का जमावड़ा हो चुका है और सेंट्रल रेटिंग आर्टरी (Central Retinal Artery) में ब्लड का फ्लो बंद हो जा रहा है. देश के में अनकंट्रोल्ड मधुमेह (Diabetes) की बीमारी से ग्रसित रोगियों में कोरोना होने पर स्टेरॉयड का बेज़ा इस्तेमाल कोरोना की बीमारी से निजात तो दिला देता है लेकिन ब्लैक फंगस यानि कि म्यूकॉरमाइकोसिस नाम की बीमारी की चपेट में धकेल देता है. कोरना से निजात पाने के बाद भी ऐसे मरीजों को सीधा आईसीयू और सर्जिकल वार्ड में दाखिला लेना पड़ता है जहां घंटों ऑपरेशन के बाद जान तो बच जाती है, लेकिन आंख सहित कुछ अन्य अंगों को गंवाना पड़ता है.
इन शहरों में बढ़ती जा रही है म्यूकॉरमाइकोसिस बीमारी
गुजरात के अहमदाबाद, सूरत, और राजस्थान के जयपुर और दिल्ली जैसे शहरों में ऐसे मरीजों की तादाद दिन ब दिन बढ़ती जा रही है. टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक देश में 270 ब्लैक फंगस मरीजों के निरीक्षण के बाद पाया गया कि मधुमेह से पीड़ित गंभीर मरीजों में स्टेरॉयड का बेज़ा इस्तेमाल ब्लैक फंगस की बीमारी की प्रमुख वजह है. 85 फीसदी रोगियों में अनकंट्रोलल्ड डायबिटीज और स्टेरॉयड का कॉम्बिनेशन कोरोना पीड़ित मरीजों में ऐसे लक्षण को प्रदर्शित करता है.
म्यूकॉरमाइकोसिस की वजह और लक्षण क्या हैं
कोविड 19 से ग्रसित रोगियों में स्टेरॉयड के इस्तेमाल करने से इम्यूनिटी और खराब होता है. फंगस ऐसे मधुमेह रोगियों में घर कर चीनी को अपना प्रमुख भोजन बना अच्छी तरह से थ्राइव करने लगता है. कोरोना से पीड़ित रोगियों को ह्यूमीडिफाइड (Humidified) ऑक्सीजन पर रखा जाता है जो फंगस के ग्रोथ में महत्वपूर्ण वजह बनता है. एक्सपर्ट का मानना है कि मधुमेह से ग्रसित लोगों को डायबिटीज कंट्रोल में रखना चाहिए और डॉक्टर्स को कोरोना का इलाज करने के दरमियान स्टेरॉयड के बेज़ा इस्तेमाल से तब तक बचना चाहिए जब तक की स्टेरॉयड पेशेंट के लिए बेहद जरूरी न हो.
कोविड खत्म होने पर भी ऐसे मरीजों में चेहरे में दर्द, सूजन, सिरदर्द, साइनस, आंखों में दर्द और रौशनी की कमी के साथ-साथ मुंह के उपरी हिस्से में काले धब्बे जैसे लक्षण दिखाई पड़ने लगते हैं. ब्लैक फंगस की चपेट में आने की वजह से 20 से 30 फीसदी मरीजों में आंख की रौशनी चली जाती है और उन्हें करोड़ों अपने इलाज के मद में गंवाना पड़ता है.
गुजरात के अहमदाबाद और सूरत में तकरीबन 6 से 7 ऑपरेशन ब्लैक फंगस यानी कि म्यूकॉरमाइकोसिस की चपेट में आने की वजह से हो रहे हैं. पिछले महीनें डेढ़ सौ से ज्यादा पेशेंट्स को म्यूकॉरमाइकोसिस की चपेट में आने के बाद आई सर्जन का सहारा लेकर ऑपरेशन करवाना पड़ा है जो भारी जटिल और रिस्की माना जाता है.
पोस्ट कोविड के नुकसान में ब्लैक फंगस बेहद भयावह
दिल्ली कं गंगाराम अस्पताल के इएनटी सर्जन मनीष मुंजाल ने पिछले दो दिनों में 6 ब्लैक फंगस के शिकार मरीजों के केसेज सामने आने की बात कही है. इएनटी (ENT) के चेयरमैन अजय स्वरूप ने बताया कि कोमॉरबिडिटी के शिकार रोगियों में ब्लैक फंगस का खतरा बना रहता है. पिछले साल कोरोना से रिकवर होने के बावजूद 23 रोगी ब्लैक फंगस के शिकार दिल्ली में हुए थे और उनमें से कइयों को अपनी आंखों से हाथ छोना पड़ा था. कोरोना खत्म होने के बाद भी पोस्ट कोविड इफेक्ट जानलेवा हो सकता है जिनमें लंग्स, हृदय, किडनी, मस्तिष्क के साथ-साथ आंख की रौशनी, नाक और जबड़े भी बुरी तरह प्रभावित हो सकते हैं. कहा जाता है कि ब्लैक फंगस का प्रभाव अगर आंख से उपर मस्तिष्क में चला गया तो ऐसे मरीजों को बचाना चिकित्सकों के लिए टेढ़ी खीर साबित होता है.