राजस्थान में बीजेपी और वसुंधरा राजे, ये रिश्ता क्या कहलाता है?

राजस्थान में इस समय भारतीय जनता पार्टी दो मोर्चों पर लड़ रही है

Update: 2021-06-17 09:40 GMT

राजस्थान (Rajasthan) में इस समय भारतीय जनता (BJP) पार्टी दो मोर्चों पर लड़ रही है, पहले मोर्चे पर वह विपक्ष के रूप में गहलोत सरकार से लड़ रही है और दूसरे मोर्चे पर अपनी अंदरूनी कलह से. इस वक्त राजस्थान में वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) पार्टी की किसी भी मीटिंग में भाग नहीं ले रही हैं, शायद यही वजह है कि जयपुर स्थित बीजेपी के मुख्यालय में जो नए पोस्टर लगाए गए उसमें से वसुंधरा राजे सिंधिया को हटा दिया गया है, जबकि इस समय भी वसुंधरा राजे भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं और राजस्थान में बीजेपी का एक बड़ा चेहरा हैं. साल 2014 के बाद बीजेपी पूरी तरह से बदल गई. उसमें जो एक नया गुट बनकर सामने आया, कथित रूप से इसे गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) का गुट कहा जाता है . इस गुट का टकराव सीधे-सीधे लालकृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Advani) के करीबियों के साथ हो रहा है और वसुंधरा राजे इसी गुट का हिस्सा मानी जाती हैं.

2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही केंद्रीय नेतृत्व और वसुंधरा राजे के रिश्तों में खटास बढ़ने लगी थी, जो 2018 के विधानसभा चुनाव में भी दिखी. वसुंधरा राजे के नेतृत्व में बीजेपी राजस्थान से चुनाव हार गई और कांग्रेस के अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) मुख्यमंत्री बन गए. दूसरी तरफ केंद्रीय नेतृत्व ने राजस्थान बीजेपी में बदलाव करते हुए मदन लाल सैनी की जगह 2019 में सतीश पूनिया को संगठन का अध्यक्ष बना दिया. कहा जाता है कि सतीश पुनिया पार्टी में वसुंधरा के प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखे जाते हैं, यही वजह थी कि सतीश पूनिया (Satish Poonia) को अध्यक्ष बनाए जाने से वसुंधरा राजे नाखुश थीं. एक ओर जहां वसुंधरा राजे पार्टी की किसी मीटिंग में या आयोजन में हिस्सा नहीं ले रही हैं, वहीं दूसरी ओर राजस्थान बीजेपी की एक इकाई के लोग वसुंधरा राजे पर आरोप लगा रहे हैं कि वह अपनी एक समानांतर व्यवस्था राजस्थान में चलाने की कोशिश कर रही हैं. दरअसल वसुंधरा राजे के समर्थकों ने 'वसुंधरा राजे समर्थन मंच राजस्थान' नाम से एक संगठन शुरू किया है. माना जा रहा है कि वसुंधरा राजे इस संगठन के जरिए केंद्रीय नेतृत्व को बताना चाहती हैं कि वह अकेले ही पूरे राजस्थान में काम कर सकती हैं.
क्यों बना वसुंधरा राजे समर्थन मंच राजस्थान
जब वसुंधरा राजे सिंधिया अपने आप को बीजेपी राजस्थान में उपेक्षित महसूस करने लगीं तो जनवरी 2021 में उनके समर्थकों ने वसुंधरा राजे समर्थन मंच राजस्थान के नाम से एक नया संगठन बनाया. यह संगठन उस वक्त बनाया गया जब बीजेपी जरूरतमंदों के लिए राजस्थान में 'सेवा ही संगठन' कार्यक्रम का समापन कर रही थी. राजस्थान उस वक्त कोरोना वायरस से जूझ रहा था और लोगों को मदद की जरूरत थी. वसुंधरा राजे सिंधिया और उनके समर्थकों को पूरा अंदाजा था कि अगर वह एक संगठन बनाकर वसुंधरा राजे के नाम पर लोगों की मदद करते हैं तो लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता और ज्यादा बढ़ जाएगी. यही वजह है कि वसुंधरा राजे सिंधिया ने अपने दम पर एक समानांतर सामाजिक कल्याण कार्यक्रम चलाया, जो अभी तक राजस्थान में लोगों की मदद कर रहा है. हालांकि, इसके लिए राजस्थान बीजेपी में उनके विरोधियों ने स्वर भी बुलंद किए, लेकिन सामने आकर किसी ने कुछ नहीं कहा. उसका सबसे बड़ा कारण था कि वसुंधरा राजे सिंधिया इस संगठन के जरिए लोगों की मदद कर रही थीं. इसके साथ ही राजस्थान में वसुंधरा के समर्थकों ने 'वसुंधरा जन रसोई' भी चलाई, जो जरूरतमंदों को खाने का पैकेट उपलब्ध कराती है. इस कार्यक्रम में एक खास बात यह थी खाने के पैकेट पर सिर्फ वसुंधरा राजे की ही तस्वीर थी. इसकी वजह से वसुंधरे के विरोधी उन पर आरोप लगाते रहे कि वसुंधरा राजे पार्टी के बारे में नहीं सिर्फ अपने बारे में सोच रही हैं.
चुनाव हारने के बाद हाशिए पर
वसुंधरा राजे सिंधिया हमेशा से आडवाणी खेमे की मानी जाती रही हैं, लेकिन जब 2014 में नरेंद्र मोदी और अमित शाह बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व का केंद्र बने तब से ही बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व और वसुंधरा राजे सिंधिया में खटास बढ़ने लगी. हालांकि, 2013 के विधानसभा चुनाव में वसुंधरा राजे सिंधिया ने अपने दम पर राजस्थान में जीत दर्ज की थी, इसके साथ ही 2014 के लोकसभा चुनाव में राज्य की सभी 25 लोकसभा सीटें जीतकर वसुंधरा राजे सिंधिया ने यह संदेश दे दिया था कि वह अभी भी राजस्थान में एक लोकप्रिय चेहरा हैं और राजस्थान में केंद्रीय नेतृत्व का जरा सा भी हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करेंगी. हालांकि, जब राजस्थान में 2018 के विधानसभा चुनाव आए, तब पार्टी ने गजेंद्र सिंह शेखावत को राजस्थान बीजेपी का अध्यक्ष नियुक्त करने की कोशिश की, लेकिन वसुंधरा राजे सिंधिया इसके विरोध में खड़ी हो गईं. चुनाव था इसलिए उस वक्त बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह ने इस मामले में ज्यादा कुछ नहीं किया और वसुंधरा राजे सिंधिया के करीबी मदन लाल सैनी को राज्य का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया. लेकिन जैसे ही 2018 में राजस्थान में बीजेपी चुनाव हार गई, वैसे ही वसुंधरा राजे सिंधिया पार्टी में हाशिए पर धकेली जाने लगीं. यह विवाद तब और बड़ा हो गया जब 2019 में केंद्रीय नेतृत्व ने सतीश पुनिया को राजस्थान बीजेपी का अध्यक्ष बना दिया, यहां तक कि संगठन में जितनी भी नियुक्तियां हुईं उनमें वसुंधरा राजे से सलाह मशविरा लेने की भी कोशिश नहीं की गई इससे केंद्रीय नेतृत्व और वसुंधरा राजे के बीच तल्ख़ियां और बढ़ने लगीं.
बीजेपी की बैठकों से इतर जनता के बीच अकेले काम कर रही हैं वसुंधरा राजे
वसुंधरा राजे सिंधिया का नाम कुछ ऐसे जिद्दी नेताओं में गिना जाता है जो इतनी जल्दी हार नहीं मानतीं. जब उन्हें केंद्रीय नेतृत्व से सहयोग नहीं मिला और उन्हें लगा कि उन्हें पार्टी में दरकिनार किया जा रहा है तो उन्होंने अपने समर्थकों के साथ राजस्थान में एक समानांतर व्यवस्था चलानी शुरू कर दी. वसुंधरा राजे सिंधिया भले ही पार्टी के आयोजनों और वर्चुअल मीटिंग में हिस्सा न लेती हों, लेकिन वह अपने समर्थकों के साथ हर जिले में नियमित रूप से बैठकर कर रही हैं और जितना हो सके लोगों तक पहुंचने की कोशिश कर रही हैं. यही नहीं ट्विटर पर भी ऑफिस ऑफ वसुंधरा राजे नाम से एक टि्वटर हैंडल बनाया गया है, जिससे वह लोगों की मदद कर रही हैं. दरअसल वसुंधरा राजे सिंधिया राज्य में लोगों के बीच अकेले काम कर के केंद्रीय नेतृत्व पर यह दबाव बनाना चाहती हैं कि 2023 में पार्टी उन्ही का चेहरा राजस्थान में मुख्यमंत्री पद के लिए घोषित करे. द प्रिंट में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार करौली, भरतपुर, जोधपुर, सवाई माधोपुर और जयपुर सहित कई जिले ऐसे हैं जहां वसुंधरा राजे के समर्थकों द्वारा तेजी से जनता के बीच काम किया जा रहा है, ताकि उन्हें राजस्थान में बीजेपी का एकलौता लोकप्रिय चेहरा साबित किया जा सके.
इससे पहले भी वसुंधरा राजे सिंधिया ने किया है शक्ति प्रदर्शन
वसुंधरा राजे सिंधिया का यह पहला मौका नहीं है जब वह पार्टी से अलग कुछ कर रही हैं और केंद्रीय नेतृत्व को दिखाना चाह रही हैं कि राजस्थान में उनसे बड़ा और लोकप्रिय चेहरा अभी भी बीजेपी के पास कोई नहीं है. 8 मार्च को जब वसुंधरा राजे का जन्मदिन था, उस दिन भी उन्होंने अपने जन्मदिन समारोह के जरिए अपनी ताकत का प्रदर्शन किया और एक विशाल धार्मिक यात्रा का आयोजन किया था. इस आयोजन को सफल बनाने के लिए वसुंधरा राजे के समर्थकों ने अपनी पूरी जान लगा दी थी, इस धार्मिक आयोजन में हजारों की तादाद में लोग इकट्ठा हुए थे जिससे केंद्रीय नेतृत्व तक साफ संदेश पहुंचा था कि वसुंधरा राजे सिंधिया इतनी जल्दी हार नहीं मानने वाली हैं.
अशोक गहलोत के खिलाफ खुलकर सामने नहीं आती हैं वसुंधरा राजे
राजस्थान में एक समीकरण चलता है जिसके अनुसार एक बार सत्ता वसुंधरा राजे सिंधिया के हाथ में आती है तो दूसरी बार अशोक गहलोत सत्ता की चाबी अपने पास रखते हैं, यही वजह है कि दोनों नेता एक दूसरे के खिलाफ खुलकर विरोध कम ही दर्ज कराते हैं. आपको याद होगा जब सचिन पायलट का गुट अशोक गहलोत से नाराज होकर पार्टी से बगावत करने पर उतारू था तो उस वक्त भी वसुंधरा राजे सिंधिया सक्रिय रूप से राजस्थान सरकार गिराने में काम नहीं कर रही थीं. यहां तक की राजनीतिक गलियारे में खबर थी कि वह सचिन पायलट को बीजेपी में भी शामिल नहीं कराना चाहती थी. यही नहीं राजस्थान बीजेपी की एक इकाई वसुंधरा राजे सिंधिया पर आरोप लगाती है कि उन्होंने गहलोत सरकार के खिलाफ चलाए गए किसी भी हैशटैग अभियान में हिस्सा नहीं लिया. जबकि इसमें राज्य से लेकर केंद्र के नेताओं तक ने हिस्सा लिया.
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