गांवों का जन्मदिन: मध्यप्रदेश में अब गांवों-शहरों के जन्मदिन की राजनीति...!
गांवों का जन्मदिन
अजय बोकिल।
कुछ लोग इसे भले एक शिगूफा मानें, लेकिन मध्यप्रदेश में इन दिनों शहरों और गांवों के जन्मदिन मनाने की राजनीति शुरू हो गई है। इसकी शुरूआत भी एक नवाचार के रूप में प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने अपने गांव जैत से की। बाद में भोपाल में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि प्रदेश के दो प्रमुख नगरों- राजधानी भोपाल का जन्मदिन हर साल 1 जून को और व्यावसायिक राजधानी इंदौर का जन्मदिन 31 मई को मनेगा। इन तारीखों के निर्धारण का आधार पूर्व नवाबी रियासत भोपाल के भारत संघ में विलीनीकरण का दिनांक और इंदौर का जन्मदिन पुण्यश्लोका अहिल्याबाई के जन्मदिन 31 मई है।
बाकी शहरों का जन्मदिन तय करने हर शहर का गजेटिर तैयार करने के आदेश मुख्यमंत्री ने दिए हैं। यह काम बाबा साहेब अंबेडकर की जयंती 14 अप्रैल तक पूरा करना है। गजेटियर तैयार होते ही लोगों से मशविरा कर शहर का जन्मदिन तय किया जाएगा। इस पहल का राजनीतिक स्तर पर अभी किसी ने विरोध नहीं किया है, क्योंकि इसका बाहरी स्वरूप सामाजिक ही है। विरोधी दल इसकी सियासी संभावनाओं को सूंघने की कोशिश कर रहे हैं।
यूं तो पहली नजर में यह अपने अतीत को याद करने की मोहक पहल दिखाई पड़ती है, लेकिन परोक्ष रूप से शहरों के उस हिंदू इतिहास को जागृत या स्मरण कराना है, जो भाजपा के राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ा सके। यूं भी किसी शहर या गांव का जन्मदिन तय करना आसान काम नहीं है। इस देश में गिने-चुने शहर या गांव होंगे, जिन्हें किसी ने सुनियोजित तरीके से बसाया हो, उसका नामकरण किया हो। कोई गांव कब बस जाता है, धीरे-धीरे कब शहर में बदल जाता है, कोई शायद ही महसूस करता हो।
दरअसल यह किसी नन्हीं बिटिया के जाने-अनजाने युवावस्था को प्राप्त होने जैसा है। बस, गांव है कि बस जाता है। कुछ लोग बस्ती बसाते हैं फिर गांव में तब्दील हो जाती है और बरसों में वही गांव शहर का रूप ले लेता है। किसी एक गांव में पहले चरण किसके पड़े, किसने उस गांव का नाम रखा, क्यों रखा, इसका लिखित इतिहास तो छोडि़ए, किंवदंतियों या लोक कथाओं में जिक्र शायद ही मिलता है। बावजूद इसके हर गांव और शहर का इतिहास तो होता है मगर उसे याद करने वाले बहुत कम होते हैं।
जन्मदिन का कैसे होगा निर्धारण?
इस मायने में मुख्यमंत्री ने जो टास्क सरकारी अमले को दिया है, उसे पूरा करना आसान नहीं है। इसलिए भी क्योंकि मप्र में 5 बड़े शहरों सहित 16 नगर निगम, 100 नगर पालिकाएं और 264 नगर पंचायतें हैं। ये सभी शहरी क्षेत्र हैं। इनके अलावा प्रदेश के 52 जिलों में कुल 51 हजार 517 गांव हैं। हरेक का गजेटियर तैयार करने और उनकी जन्म तिथि तय करना टेढ़ी खीर है।
इस नवाचार की शुरुआत भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पैतृक गांव जैत से हुई। सीहोर जिले का जैत नर्मदा किनारे बसा गांव है। इस गांव का जन्मदिन नर्मदा जयंती 8 फरवरी को गौरव दिवस के रूप में मनाया गया। इसी दिन ये मुहिम भी शुरू हुई कि क्यों न हर गांव और शहर का भी जन्मदिन गौरव दिवस के रूप में मनाया जाए। जैत के 'गौरव दिवस' में एक तरफ मुख्यमंत्री शिवराज उनके परिजन, आला अफसर बैठे थे तो दूसरी तरफ ग्राम सभा बैठी थी। शिवराज ने कहा कि जन्मदिन सार्वजनिक रूप से मनाने का मकसद गांव अथवा शहर का जनता की भागीदारी के साथ विकास करना है। क्योंकि सरकार का पैसा भी जनता का ही पैसा है। गांव का भला तभी होगा, जब गांव वाले ऐसा चाहेंगे।
...ताकि बेटियों को न मानें बोझ
इसके दो माह पहले मुख्यमंत्री ने श्योपुर में 'बेटी बचाओ' और 'लाडली लक्ष्मी अभियान' तो गति देने के लिए ऐलान किया था कि हर आंगनवाड़ी में माह के तीसरे मंगलवार को नवजात बेटियों का लाडली जन्मोत्सव मनेगा। उद्देश्य यही कि लोग बेटी के जन्मदिन को बोझ न मानकर वरदान मानें। इसके पहले एक और कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शिवराज ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा दिए गए शहरी विकास के पांच मंत्र भी गिनाए।
जिसके मुताबिक हर नगर, राज्य के विकास का चेहरा बने, शहरों में जीवन जीना सभी के लिए आसान हो, हर नगरवासी को जीवन की गुणवत्ता मिले, शहरों के आकार भले ही बढ़ जाएं, लेकिन असमानताएं कम हों तथा सभी को सम्मान से जीवन यापन का अवसर उपलब्ध हो। बहरहाल नगर जन्मदिन मनाने की इस पहल से एक नई हलचल तो हुई है। अटकलों, तर्कों और ऐतिहासिक तथ्यों, किंवदंतियों का बाजार गर्म हो गया है।
अब सवाल यह कि गांव/शहर का जन्म दिन तय कैसे हो? क्योंकि ऐसे ऐतिहासिक प्रमाण मिलना दूभर हैं। इसे देखते हुए सरकार ने निर्देश दिए हैं कि ग्राम सभा की बैठक बुलाकर ग्राम गौरव दिवस तय करने के लिए गांव के किसी ऐतिहासिक दिवस को, गांव के किसी महापुरुष, स्वतंत्रता सेनानी या राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिलब्ध पुरुष-महिला के जन्मदिन को ग्राम गौरव दिवस के रूप में तय किया जाए। प्रदेश के कुछ जिलों में इस पर काम भी शुरू हो गया है। इस पूरी कवायद का मकसद है कि प्रेम, सद्भाव, समरसता और सद्भाव ग्रामीण जीवन का मूलतत्व है। अपने खूबसूरत इतिहास, परम्परा के कारण हर गांव की विशिष्ट पहचान होती है। गांव गौरव दिवस उसी पहचान को कायम रखने का प्रयास है।
राजनीतिक रंग
मप्र का यह नवाचार अमूमन नेताओं और महापुरुषों की जन्मदिन मनाने और ऐसे आयोजनों को पूरा राजनीतिक रंग देने से थोड़ा अलग है, लेकिन अंतिम उद्देश्य वही है। जहां तक भोपाल की बात है तो भोपाल के नवाबी रियासत से मुक्त होने और इसके लोकतांत्रिक गंणराज्य का हिस्सा बनने की तिथि को शहर का जन्मदिन मान लिया गया है।
भोपाल का विलीनीकरण 1 जून 1949 को हुआ था। उसी तरह इंदौर का जन्म दिन होलकर शासिका देवी अहिल्या बाई के जन्म दिन को माना गया है। हालांकि इस इतिहासकारों और राजनेताअओं में कुछ मतभेद थे। मप्र के उज्जैन, ग्वालियर, जबलपुर आदि शहर भी बहुत प्राचीन हैं। इन्हें किसने और कब बसाया, इसकी ठोस जानकारी उपलब्ध नहीं है। जाहिर है कि ऐसे में वो तारीख तय की जाएगी, जो राजनीतिक रूप से सुविधाजनक हो। हो भी यही रहा है।