मशीनी दिमाग के बड़े खतरे

दुनिया को ब्लैक होल और बिग बैंग का सिद्धांत समझाने वाले जाने-माने भौतिक विज्ञानीस्टीफन हाकिंग ने भी कहा था कि ‘मैं मानता हूं कि कृत्रिम मेधा तकनीक को मानवता की बेहतरी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन इंसान को इस पर काबू करने का कोई न कोई रास्ता तलाशना पड़ेगा।’

Update: 2022-08-29 04:22 GMT

निरंकार सिंह: दुनिया को ब्लैक होल और बिग बैंग का सिद्धांत समझाने वाले जाने-माने भौतिक विज्ञानीस्टीफन हाकिंग ने भी कहा था कि 'मैं मानता हूं कि कृत्रिम मेधा तकनीक को मानवता की बेहतरी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन इंसान को इस पर काबू करने का कोई न कोई रास्ता तलाशना पड़ेगा।'

पांच साल पहले फेसबुक के साफ्टवेयर इंजीनियरों ने एक ऐसा प्रयोग किया था जिसे देख कर दुनिया दंग रह गई थी। हुआ यह था कि फेसबुक के इंजीनियर मानव और मशीनी दिमाग यानी एआइ (आर्टिफिशियल  इंटेलिजेंस) का एक दूसरे संवाद करवाने संबंधी प्रयोग कर रहे थे। पर इस प्रयोग के दौरान एक इंजीनियर ने कहा- चलो इंसानों से नहीं बल्कि इनकी ही आपस में बात कराते हैं।

फिर उन्होंने दो मशीनी दिमाग जिनका नाम बाब और एलिस रखा था, का संवाद करवाया। जब ये दोनों आपस में बात कर रहे थे, तब इंजीनियरों को पता नहीं चला कि ये दोनों क्या बात कर रहे हैं। लेकिन शोध के बाद पता चला कि इन्होंने अपने आप में एक गुप्त भाषा विकसित कर ली थी। यह सब देख इंजीनियरों ने तुरंत इस कार्यक्रम को बंद कर दिया। इस समय का यह प्रयोग बहुत नया माना जाता है। क्या आप सोच सकते हैं कि बाब और एलिस इंसानों से बच कर एक गुप्त भाषा विकसित करके एक-दूसरे से जिस तरह बतिया रहे थे, वह एक खतरनाक प्रयोग था। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आगे जाकर कृत्रिम मेधा का जमाना इंसानों के लिए कितना खतरनाक होगा?

नौकरी के लिए तो करोड़ों लोग परेशान है। दुखद तो यह कि नौकरी नहीं मिलने से खुदकुशी करने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है। पूरी दुनिया में यह देखने में आ रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक 2030 तक अस्सी करोड़ नौकरियां कम हो जाएंगी। डेलोइट की एक रिपोर्ट में पता चला है की 2025 तक दस लाख से ज्यादा वकीलों की नौकरी खत्म होने वाली है। कुछ नौकरियां भी ऐसी हैं जिनके कामों को मशीनी दिमाग यानी कृत्रिम बुद्धि (एआइ) से आसानी से कराया जा सकेगाा। 2015 में गूगल ने बिना ड्राइवर के चलने वाली कार बनाने में कामयाबी हासिल कर ली थी।

भविष्य में स्वचालित कारों में और सुधार होगा और ड्राइवरों की जरूरत खत्म हो जाएगी। इसी प्रकार अमेजन ने ड्रोन के जरिए सामान भेजना शुरू कर दिया। यानी अब सामान पहुंचाने वालों की कोई जरूरत नहीं है। यह सब अभी अमेरिका में चल रहा है और लोगों को भी कोई परेशानी नहीं आती। इसी प्रकार बड़े-बड़े होटलों में भी रोबोट ही खाना परोसेंगे और खाना भी बनाएंगे। आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक कृत्रिम मेधा तकनीक के बढ़ते चलन से दुनियाभर में सैंतालीस फीसदी नौकरियां खतरे में हैं। मैकिनजी ग्लोबल इंस्टीट्रयूट आफ रिसर्च का कहना है कि कुछ वर्षों में पैंतालीस फीसदी नौकरियां स्वचालित होने जा रही हैं। हाल के दिनों में प्रौद्योगिकी ने निर्णय लेना सीख लिया है।

तकनीक के विकास की गति एक दशक में कम से कम दोगुनी हो जाती है। लेकिन इसके साथ इसके बेकाबू हो जाने का डर भी उतनी ही तेजी से फैला है। गूगल और एल्फाबेट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सुंदर पिचाई ने हाल में कहा भी था कि मशीनी दिमाग को लेकर सावधानी बरतना बेहद जरूरी है। इसके लिए उन्होंने कृत्रिम मेधा तकनीक संबंधी नियम बनाने की मांग पर जोर दिया। उनका कहना है कि हम नई तकनीक पर लगातार काम करते रह सकते हैं, लेकिन बाजार व्यवस्थाओं को उसके किसी भी तरह के इस्तेमाल की खुली छूट नहीं होनी चाहिए।

यह पहली बार नहीं है जब पिचाई ने कृत्रिम मेधा तकनीक के खतरों को लेकर दुनिया को आगाह किया है। इससे पहले भी साल 2018 में कंपनी के कर्मचारियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि- 'दुनिया पर मशीनी दिमाग का जितना असर होगा, उतना शायद ही किसी और आविष्कार का होगा। इंसान आज जिन चीजों पर काम कर रहा है, उनमें सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण यही तकनीक है, शायद आग और बिजली जितनी ही महत्त्वपूर्ण। लेकिन ये इंसानों को मार भी सकती है। हमने आग पर काबू पाना सीख लिया है, पर इसके खतरों से भी हम जूझ रहे हैं।'

बहुत से लोग कहते हैं कि आगे चल कर इंसानों को रोबोट से खतरा होगा। यह डर बेमानी है। हालांकि जिस तरह से हम मशीनी दिमाग पर निर्भर होते जा रहे हैं, उससे खतरे तो बढ़े ही हैं। इंसान ने तकनीक की तरक्की के साथ बहुत-सी स्मार्ट मशीनें बना ली हैं। हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में ऐसी मशीनों का दखल बढ़ता जा रहा है। मशीनी दिमाग हमारी कई तरह से मदद करते हैं। जैसे एपल का सीरी या माइक्रोसाफ्ट का कोर्टाना।

ये दोनों हमारे निर्देश पर कई तरह के काम करते हैं। बहुत से कंप्यूटर प्रोग्राम हैं, जो कई फैसले करने में हमारी मदद करते हैं। गूगल की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंपनी डीपमाइंड, ब्रिटिश नेशनल हेल्थ सर्विस के साथ मिल कर कई परियोजना पर काम कर रही है। आजकल मशीनें शल्य क्रियाएं आपरेशन तक कर रही हैं। वे इंसान के शरीर में तमाम बीमारियों का पता लगाती हैं।

मशीनी दिमागों की मदद से आज नई दवाएं तैयार की जा रही है। इसी तरह पूरी दुनिया में जहाजों की आवाजाही की व्यवस्था कंप्यूटर की मदद से ही संचालित हो रही है। हवाई यातायात नियंत्रण के लिए भी इस मशीनी दिमागों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके अलावा खनन उद्योग से लेकर अंतरिक्ष तक में इस मशीनी दिमाग का इस्तेमाल, इंसान की मदद के लिए किया जा रहा है। शेयर बाजार से लेकर बीमा कंपनियां तक मशीनी दिमाग की मदद से चल रही हैं। मशीनी दिमाग वही काम करता है जो आमतौर पर बुद्धिमान लोगों के जिम्मे होते हैं।

आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी एक प्रोफेसर के मुताबिक मशीनी दिमाग कक्षा में साथ पढ़ने वाले उस साथी की तरह है जिसे काफी अच्छे नंबर मिलते हैं क्योंकि वे रट के जवाब दे देते हैं, लेकिन वे क्या बता रहे हैं, उन्हें इसकी समझ नहीं होती है। कृत्रिम मेधा तकनीक स्मार्ट फोन, कंप्यूटर आदि के जरिए हमारी जिंदगी को आसान बनाती है। ये हमें खाना, कार और दूसरी चींजें आनलाइन मंगाने और उनके लिए भुगतान करने में मदद करती है। इसका दायरा लगातार बढ़ रहा है। अब रक्षा क्षेत्र में इसका काफी इस्तेमाल होता है। साइबर सुरक्षा में भी इसका इस्तेमाल होता है।

स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े कुछ क्षेत्रों में भी मशीनी दिमाग का इस्तेमाल किया जाता है। इससे कैंसर, मधुमेह और अल्जाइमर का बेहतर इलाज तलाशा जा सकता है। पर मशीनी दिमाग के गलत रास्ते पर जाने का एक सार्वजनिक उदाहरण साल 2016 का ही है। तब माइक्रोसॉफ्ट ने 'टे' नाम का चैटबोट ट्विटर पर रिलीज किया। कंपनी का विचार था कि लोग इसे लेकर जो ट्वीट करेंगे उसके जरिए टे स्मार्ट होता जाएगा। पर ये चैटबोट कुछ ही घंटे में ही 'नाजी और नस्लभेदी संदेश करने लगा। तब माइक्रोसाफ्ट ने इसे हटा लिया था। इससे जाहिर होता है कि मशीनी दिमाग पर निगरानी की कितनी जरूरत होती है।

साल 2017 में टेस्ला और स्पेसएक्स के मालिक एलन मस्क ने कहा था कि अगर आप मशीनी दिमाग से चिंतित नहीं हैं तो आपको चिंतित होना चाहिए। ये उत्तर कोरिया से अधिक खतरनाक हैं। सोशल मीडिया पर मस्क ने जो तस्वीर पोस्ट की थी उसमें लिखा था 'आखिर में जीत मशीनों की होगी।' मस्क ने नेताओं से अपील की थी कि इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, मशीनी दिमाग को काबू में लाने के लिए नियम बनाए जाएं। दुनिया को ब्लैक होल और बिग बैंग सिद्धांत समझाने वाले जाने-माने भौतिक वैज्ञानिक स्टीफन हाकिंग ने भी कहा था कि 'मैं मानता हूं कि कृत्रिम मेधा तकनीक को मानवता की बेहतरी के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन इंसान को इस पर काबू करने का कोई न कोई रास्ता तलाशना पड़ेगा।'


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