Bhagoria: मेले में लड़की से छेड़छाड़ और सीटी बजाती भीड़

मेले में लड़की से छेड़छाड़ और सीटी बजाती भीड़

Update: 2022-03-14 11:23 GMT

निदा रहमान

एक लड़की छुपकर, किसी से बचकर एक टैंपों के किनारे खड़ी होती है तभी वहां से गुज़रने वाला लड़का उसको दबोच लेता है और उसकी साथ अश्लील हरकत करता है. लड़की किसी तरह छूट जाती है तो वहां से गुजरने वाली लड़कों की दूसरी टोली उसे दबोच लेती है और फिर लड़कों का हुजूम लड़की को दबोचने वाले का उत्साह बढ़ाता है, सीटी मारता है, मोबाइल से रिकॉर्डिंग करता है. सब खिलखिला रहे होते हैं, मज़े ले रहे होते हैं.
ये किसी फिल्म या सीरीज़ का हिस्सा नहीं बल्कि हमारे समाज का घिनौना चेहरा है. मध्यप्रदेश के अलीराजपुर का यह वीडियो दो दिन से वायरल हो रहा है. अलीराजपुर में आदिवासी महोत्सव भगोरिया में ये घिनौनी हरकत की गई है. वीडियो वायरल होने पर पुलिस ने 15 आरोपी लड़कों को गिरफ़्तार कर लिया है. इस घटना के बाद से मध्यप्रदेश सरकार की कानून व्यवस्था पर भी सवाल उठ रहे हैं. ये वीडियो किसी भी संवेदनशील इंसान को अंदर से झकझोर सकता है. ये वीडियो हमें शर्मिंदा करता है और गुस्से से भरता है. साथ ही सोचने पर मजबूर करता है कि आखिर हम ये कैसे समाज बना रहे हैं, जहां बेटियां सरेआम सुरक्षित नहीं हैं.
क्या है भगोरिया ?
पश्चिमी निमाड़, झाबुआ और अलीराजपुर, बड़वानी में देश-विदेश में प्रसिद्ध लोक संस्कृति का पर्व भगोरिया बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. होली के 7 दिन पहले से मनाए जाने वाले इस पर्व में आदिवासी अंचल उत्सव की खुमारी में डूबा रहता है. होली के पहले भगोरिया के इन उत्‍सवी सात दिनों ग्रामीण खुलकर अपनी जिंदगी जीते हैं. देश के किसी भी कोने में ग्रामीण आदिवासी मजदूरी करने गया हो लेकिन भगोरिया के वक्त वह अपने घर लौट आता है. इस दौरान रोजाना लगने वाले मेलों में वह अपने परिवार के साथ सम्मिलित होता है. भगोरिया की तैयारियां आदिवासी महीने भर पहले से ही शुरू कर देते हैं. दिवाली के समय तो शहरी लोग ही शगुन के बतौर सोने-चांदी के जेवरात व अन्य सामान खरीदते हैं लेकिन भगोरिया के सात दिन ग्रामीण अपने मौज-शौक के लिए खरीददारी करते हैं. लिहाजा व्यापारियों को भगोरिया उत्सव का बेसब्री से इंतजार रहता है. ग्रामीण खरीददारी के दौरान मोलभाव नहीं करते, जिससे व्यापारियों को खासा मुनाफा होता है. हालांकि अब धीरे-धीरे भगोरिया अपना असली रंग खोता जा रहा है. पारंपरिक वेशभूषा के बजाए युवा मॉर्डन कपड़ों में नजर आते हैं.
भगोरिया हाट में छेड़छाड़
प्रेम का उत्सव कहे जाने वाला भगोरिया अलीराजपुर में हुई इस घटना से शर्मसार हुआ है. आवारा लड़कों का झुंड लड़की पर ऐसे झपट पड़ता है जैसे जानवर अपने शिकार पर टूट पड़ता है. इस घटना के आरोपी गिरफ़्तार हो गए लेकिन इस तरह की घटनाएं आम हो गई हैं. लड़कों के हौसले इतने बुलंद हो गए हैं कि वो सरेआम भी किसी भी लड़की पर झपट सकते हैं. भगोरिया में सजी संवरी आदिवासी लड़कियां मेला घूमने आती हैं. वो नाचती हैं,गाती हैं झूमती हैं और साल भर के लिए सुनहरी यादें अपने साथ ले जाती हैं लेकिन इस लड़की के मन पर क्या असर हुआ होगा क्या किसी ने सोचा है? आखिर वो भगोरिया हाट अब दोबारा आएगी भी या नहीं?
जब सदन में लगे बलात्कार पर ठहाके
भगोरिया मेले में लड़कों का झुंड एक लड़की पर टूट पड़ता है और सब हंस रहे होते हैं. ऐसे ही ठहाके कुछ रोज पहले राजस्थान की विधानसभा में लगे थे. जब राजस्थान के संसदीय कार्यमंत्री शांति धारीवाल ने बलात्कार के मामले में एक शर्मनाक, असंवेदनशील और बेहद आपत्तिजनक बयान दिया था. बलात्कार के मामले में राजस्थान देश में पहले स्थान पर है. इस पर मंत्री कहते हैं कि राजस्थान मर्दों का प्रदेश है और वहां बैठे मंत्री विधायक ठहाके लगाने लगते हैं. सदन में महिला मंत्री और विधायक भी मौजूद थीं वो भी खामोश रहीं. यही बयान, ठहाके और खामोशी अपराधियों, बलात्कारियों के हौसले बढ़ाते हैं. बलात्कार का मर्दानगी से कोई लेना देना नहीं है लेकिन मंत्री की मानें तो बलात्कार करना मर्द की शान है. कितना घिनौना, अवंदेनशील व घटिया बयान है ये. इस बयान पर बहुत कुछ बवाल नहीं हुआ. कुछ आपत्ति के बाद शांति धारीवाल ने अपने बयान पर मांफी मांग ली और इसे 'स्लिप ऑफ टंग' कहा.
बलात्कार पर नेताओं के घटिया बयान
हालांकि शांति धारीवाल कोई पहले नेता नहीं है जिन्होंने बलात्कार को लेकर हद दर्जे का घटिया बयान दिया हो. बलात्कार पर घटिया बयान देने वाले नेताओं की लिस्ट लंबी है. पिछले साल दिसंबर में कर्नाटक विधानसभा के पूर्व स्पीकर और कांग्रेस विधायक रमेश कुमार ने महिलाओं को लेकर आपत्तिजनक बयान दिया. रमेश कुमार ने सदन में चर्चा के दौरान स्पीकर से कहा था कि जब बलात्कार होना ही है, तो लेटो और मजे करो. इससे भी ज्यादा शर्म की बात यह है कि जब रमेश कुमार यह बोल रहे थे तब स्पीकर भी कार्रवाई के बजाय हंसते नजर आए.
रेप या महिलाओं पर टिप्पणियों का मुद्दा उठेगा तो सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव का नाम सबसे पहले आएगा. मुलायम ने रेप के आरोपियों के बचाव में एक बार यहां तक बोल दिया, 'लड़के हैं, कभी-कभी लड़कों से गलतियां हो जाती हैं. कभी-कभी फंसाने के लिए भी लड़कों पर ऐसे आरोप लगा दिए जाते हैं.'
रेप पर शरद यादव की शर्मनाक टिप्पणी
मुलायम की तरह बिहार की राजनीति का बड़ा चेहरा और वर्तमान में एलजेडी नेता शरद यादव भी अपने बयानों से चर्चा में रह चुके हैं. उन्होंने एक बार कहा था, 'वोट की इज्जत आपकी बेटी की इज्जत से ज्यादा बड़ी होती है. अगर बेटी की इज्जत गई तो सिर्फ गांव और मोहल्ले की इज्जत जाएगी लेकिन अगर वोट एक बार बिक गया तो देश और सूबे की इज्जत चली जाएगी.'
'लड़कियों की स्कर्ट छोटी होती जा रही'
टीएमसी नेता चिरंजीत चक्रवर्ती भी रेप को लेकर आपत्तिजनक बयान दे चुके हैं. उन्होंने एक बार कहा था, 'रेप के लिए कुछ हद तक लड़कियां भी जिम्मेदार हैं. उनकी स्कर्ट दिन पर दिन छोटी होती जा रही है.'
कर्नाटक के मंत्री और बीजेपी नेता केएस ईश्वरप्पा ने एक बार महिला रिपोर्टर के सामने ही आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी थी. ईश्वरप्पा ने एक सवाल के जवाब में कहा था, 'अगर कोई आपको खींचकर ले जाए और आपका रेप कर दे तो विपक्ष उसमें क्या कर सकता है? जब 6 साल की बच्ची के साथ रेप किया गया, हमने विधानमंडल में इसकी आलोचना की. हमने हर तरह की भाषा का इस्तेमाल किया, जो हम कर सकते थे. लेकिन, आप लोगों ने मेरी भाषा पर आपत्ति जताई.'
ईश्वरप्पा ने इस बयान से पहले भी एक बयान दिया था कि सीएम सिद्धरमैया और गृहमंत्री जे जॉर्ज रेप विक्टिम्स की भावनाएं तभी समझेंगे, जब उनकी बेटियों के साथ दुष्कर्म होगा.
ये बयान सिर्फ़ बानगी हैं, कि हमारे जनप्रति‍निधि छेड़छाड़, बलात्कार जैसे घिनौने अपराध को संगीन ही नहीं मानते बल्कि उनके लिए बलात्कार, यौन शोषण और छेड़छाड़ जैसी घटनाएं हंसी ठिठोली का सबब हैं. बलात्कार पीड़ित का दर्ज और अज़ीयत कोई नहीं समझ सकता है. कोई हमको हमारी मर्ज़ी के बिना छू भी ले तो ऐसा लगता है कि हम गंदे हो गए है फिर यहां बात बलात्कार की हो रही है.
लड़कियों को ही नसीहतें
बलात्कार की कोई भी घटना होने के बाद लड़कियों को नसीहतें दी जाती हैं. उन्हें घरों में रहने को कहा जाता है लेकिन क्या घरों में लड़कियों बच्चियां सुरक्षित हैं नहीं? आंकड़े बताते हैं कि बलात्कार और यौन शोषण में सबसे ज़्यादा कोई अपना करीबी रिश्तेदार या पहचान वाला होता है. फिर लड़कियां क्या करें? वो घरों में सुरक्षित नहीं, दफ़्तर, सड़क, बाज़ार, हाट मेला कहीं भी तो वो खुद को मेहफूज़ महसूस नहीं करती हैं. लड़कियों को नसीहतें देने से ज़्यादा ज़रूरी है कि हम लड़कों को शिक्षित करें. उन्माद में डूबे लड़कों को सबसे पहले समझाने की ज़रूरत है. बेटियों पर पहरा लगाने से ज्‍यादा जरूरी है कि लड़कों पर नज़र रखी जाए. देखा जाए कि वो क्या कर रहे हैं, क्या देख सुन रहे हैं. भगोरिया हाट का वीडियो हमें शर्मिदा करने के लिए काफ़ी है. हम ये मान लेते हैं कि उन्माद में डूबी हुई भीड़ जानवर हो जाती है जो किसी पर भी झपट सकती है, किसी को भी मोलेस्ट कर सकती है, किसी भी जान ले सकती है.
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