चार लाख के पार

भारत में कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा चार लाख के पार निकल गया है। इतनी मौतें भले ही सवा साल के दौरान हुई हों, लेकिन मामूली नहीं है।

Update: 2021-07-03 03:16 GMT

भारत में कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा चार लाख के पार निकल गया है। इतनी मौतें भले ही सवा साल के दौरान हुई हों, लेकिन मामूली नहीं है। देश में कोरोना से पहली मौत पिछले साल बारह मार्च को हुई थी। साढ़े छह महीने बाद एक अक्तूबर 2020 को यह आंकड़ा एक लाख पहुंच गया था और इस साल चौबीस अप्रैल को दो लाख तक। यानी एक लाख होने में दो सौ तीन दिन और एक से दो लाख होने में दो सौ आठ दिन लगे थे। पर इसके बाद चौबीस अप्रैल से बीस मई यानी तेईस दिन में ही मौतों का आंकड़ा बढ़ तक तीन लाख हो गया।

फिर बीस मई से एक जुलाई यानी तियालीस दिन में एक लाख और लोगों ने दम तोड़ डाला। इन आंकड़ों का संबंध सिर्फ इस बात तक ही सीमित नहीं है कि कितने दिन में कितनी मौतें हुईं, बल्कि इस महामारी की भयावहता, संकट से निपटने की हमारी तैयारियों और लापरवाहियों की ओर भी ध्यान खींच रहा है। तेईस दिन में एक लाख लोगों की मौत बता रही है कि तेरह महीने में दो लाख लोगों की मौत से हमने कोई सबक नहीं लिया। अगर कुछ सीखा होता, सतर्कता दिखाई होती, अस्पतालों का ढांचा मजबूत बनाया होता, केंद्र और राज्यों में बेहतर तालमेल होता, टीकाकरण अभियान की रणनीति दमदार होती तो मौतों का आंकड़ा चार लाख के पार जाने से रोका जा सकता था।

अब रोजाना संक्रमण के मामले पचास हजार से नीचे आ गए हैं। रोजाना मौतों का आंकड़ा भी नौ सौ से कम दर्ज हो रहा है। संक्रमण दर की बात करें तो यह 2.34 फीसद है। ये आंकड़े बता रहे हैं कि अब संक्रमण का रुझान उतार पर है। लेकिन विशेषज्ञों की इस चेतावनी को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि खतरा अभी बरकरार है। चौदह राज्यों के अस्सी जिलों में संक्रमण दर दस फीसद से ऊपर बनी हुई है। ज्यादा चिंता की बात तो यह है कि तीसरी लहर का खतरा सामने है। कोरोना विषाणु के नए स्वरूप डेल्टा प्लस के मामलों का मिलना बता रहा है कि एक और बड़ा खतरा दस्तक दे चुका है। कवक संक्रमण के बढ़ते मामले हैरान करने वाले हैं। ऐसे में यह मान लेना कि अब हम महामारी से मुक्ति की ओर हैं, हमारा मुगालता ही होगा।

भारत में कोरोना से हुई मौतों के मामले में यह तर्क देना या मान लेना कि आबादी को देखते हुए दूसरे देशों के के मुकाबले हमारे यहां काफी कम लोग मरे हैं, ठीक नहीं है। इसी तरह दुनिया में सबसे ज्यादा या एक दिन में सबसे ज्यादा टीकाकरण को लेकर भी दावे किए जाते रहे हैं। पर इन दावों के बजाय जमीनी हकीकत को स्वीकार करने की जरूरत है। इस सच्चाई से कोई भी मुंह नहीं मोड़ेगा कि देश में टीकाकरण की रफ्तार निराशाजनक ही रही है। वरना क्या कारण रहा कि इक्कीस जून को पिच्यासी लाख टीके लगने का दावा किया गया और उसके बाद से यह आंकड़ा पचास से साठ लाख भी मुश्किल से छू पा रहा है।

ताजा स्थिति यह है कि ज्यादातर राज्य टीकों की कमी से जूझ रहे हैं। इससे रोजाना का टीकाकरण लक्ष्य बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। उत्तर प्रदेश, झारखंड, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल सहित ऐसे कई राज्य हैं। जाहिर है यह कहीं न कहीं टीकों के उत्पादन और राज्यों को आपूर्ति से जुड़ा मामला है जो कुप्रबंधन और अदूरदर्शी नीतियों का शिकार हो चुका है। इसे दुरुस्त किए बिना हम कैसे महामारी से जंग जीत पाएंगे, यह बड़ा सवाल है।


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