Bengal Election: बंगाल में क्यों 'हार' गई BJP, सबकुछ दांव पर लगाने के बाद भी कहां ढीली पड़ गई लड़ाई

पश्चिम बंगाल की 292 सीटों में शुरुआती रुझानों में तृणमूल कांग्रेस ने 206 सीटों पर बढ़त हासिल कर ली है

Update: 2021-05-02 14:40 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | पश्चिम बंगाल की 292 सीटों में शुरुआती रुझानों में तृणमूल कांग्रेस ने 206 सीटों पर बढ़त हासिल कर ली है जबकि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) 83 विधानसभा सीटों पर आगे चल रही है. वाम दल, कांग्रेस और इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) का गठबंधन महज 1 सीटों पर बढ़त हासिल कर सका है. रुझान से साफ है कि बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार फिर से वापसी कर रही है. इसी के साथ उन कारणों पर मंथन शुरू हो गया कि आखिर क्यों बीजेपी अपनी पूरी प्रतिष्ठा झोंकने के बाद भी बंगाल का रण हार गई.

ट्रेंड से पता चल रहा है कि बंगाल में ममता बनर्जी सत्ता की हैट्रिक के लिए संघर्ष कर रही हैं. वहीं बीजेपी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अगुवाई में प्रचार अभियान की कमान संभाल कर, ममता को सत्ता से बेदखल करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी. पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी सिर्फ तीन ही सीटें जीत सकी थी जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में उसने शानदार प्रदर्शन करते हुए राज्य की 42 में से 18 सीटों पर जीत हासिल की. लोकसभा चुनाव को बीते लगभग 2 साल होने जा रहे हैं लेकिन इन दिनों में ऐसा क्या हुआ जो बीजेपी अपनी संसदीय लहर को विधानसभा की लहर में तब्दील नहीं कर पाई.

क्या कहता है वोट शेयर
बीजेपी और टीएमसी के वोटों का अंतर देखें तो 2-3 परसेंट का फासला होगा. लेकिन यह छोटा फासला सीटों के लिहाज से बहुत बड़ा साबित होने जा रहा है. टीएमसी पिछले चुनाव की तरह इस बार भी अपना जनाधार बचाने में कामयाब दिख रही है. जीत भले न हो, लेकिन बीजेपी प्रचंड फायदे में है क्योंकि उसने लेफ्ट और कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया है. लेफ्ट और कांग्रेस के परंपरागत वोट पूरी तरह से बीजेपी को शिफ्ट हुए हैं. पिछले चुनाव में 44 सीट पाने वाली कांग्रेस 1 पर चली गई और जिस लेफ्ट (सीपीआई-एम) को 26 सीटें मिली थीं, वह एक भी नहीं झटक सकी.

क्यों हार गई बीजेपी
यह सवाल पूरा देश जानना चाह रहा है. जिस प्रदेश के चुनाव में बीजेपी ने अपनी समग्र ताकत झोंक दी. यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने दिन-रात एक कर दिया. खेला होबे और 'दीदी ओ दीदी' के डायलॉग गुंजायमान रहे, वहां बीजेपी को क्यों ऐसे गच्चा खाना पड़ा. जानकार बताते हैं कि इसके पीछे महिला और अल्पसंख्यक वोट बड़ी वजह हैं. साथ ही 'मेजोरिटी का माइनॉरिटी' वोट जैसा कि चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर खुद बोल चुके हैं, बीजेपी को हराने में बड़ी भूमिका अदा कर गया.

एग्जिट पोल का क्या हुआ
एग्जिट पोल में साफ दिखा था कि बीजेपी को इस बार एससी-एसटी का थोक वोट मिला है. दूसरी ओर, मुस्लिमों का वोट संगठित होकर बीजेपी के विरोध में टीएमसी को गया. यह वोट पिछली बार कांग्रेस और लेफ्ट को भी मिला था. लेकिन इस बार बीजेपी चूंकि टीएमसी के खिलाफ आक्रामक मूड में थी, इसलिए मुस्लिमों ने कांग्रेस और लेफ्ट को धक्का मारते हुए टीएमसी को मतदान किया.
एग्जिट पोल भले ही महिला वोट बीजेपी के खाते में भी दिखा रहे थे, लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है. महिलाओं का पूरा वोट टीएमसी को गया है. तीसरा फैक्टर, मेजोरिटी कामाइनॉरिटी वोट यानी कि बंगाल का एक साइलेंट वोटर है जो लोगों के बीच मुखर नहीं होता और वोट से अपनी आवाज बुलंद करने का माद्दा रखता है. यह वोट धुर बंगाली लोगों का का है. इन वोटों में बीजेपी सेंधमारी नहीं कर सकी है. जीत-हार के रुझान अभी हमारे सामने हैं, लेकिन इसमें बहुत ज्यादा अंतर या तब्दीली आने की संभावना कम है.

ध्रुवीकरण का समीकरण
बंगाल में बांग्ला बनाम हिंदी का एक बड़ा डिविजन है. दोनों गुटों में एक विरोध की भावना देखी जाती है. इस बार के चुनाव में जो भी गैर बांग्ला लोग है, जो खासकर यूपी-बिहार के लोग हैं, उन्होंने एकमुश्त बीजेपी को वोट दिया है. दूसरी ओर धुर बंगाली लोगों ने ममता बनर्जी पर ही अपना भरोसा जताया है. रही बात वोटों के ध्रुवीकरण की तो बंगाल में हिंदू बनाम मुसलमान का मुद्दा उतना गंभीर नहीं है. बंगाल में दोनों कौम के बीच बहुत गलाकाट प्रतिस्पर्धा नहीं देखी जाती. अकसर दोनों वर्ग सौर्हार्द्र के साथ रहते हैं. इस बार बीजेपी ने मोर्चाबंदी की कोशिश की लेकिन मजहबी आधार पर वोट नहीं बंट पाए और हिंदुओं का एक बड़ा समूह टीएमसी की तरफ गया है. अगर ऐसा नहीं होता तो नंदीग्राम में सुवेंदु की बंपर जीत होती जो शायद अभी तक नजर नहीं आ रही है.


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