कैंसर का खात्मा!
महज एक दवा के सहारे छह महीने के अंदर कैंसर पूरी तरह ठीक कर देने की अमेरिका से आई खबर चमत्कार सरीखी ही है। हालांकि विशेषज्ञ अभी इस प्रयोग के साथ कई तरह के किंतु-परंतु जोड़ रहे हैं
नवभारत टाइम्स: महज एक दवा के सहारे छह महीने के अंदर कैंसर पूरी तरह ठीक कर देने की अमेरिका से आई खबर चमत्कार सरीखी ही है। हालांकि विशेषज्ञ अभी इस प्रयोग के साथ कई तरह के किंतु-परंतु जोड़ रहे हैं, लेकिन कोई भी इसे सीधे तौर पर खारिज नहीं कर रहा। इस प्रयोग की रिपोर्ट द न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में छपी है।
जिन 18 लोगों पर ये प्रयोग किए गए, वे सब रेक्टल कैंसर से पीड़ित थे। इन सबको डोस्टारलिमैब नाम की दवा दी गई। इसकी खासियत यह बताई जाती है कि यह कैंसर सेल की पहचान उजागर कर देता है। इसके बाद शरीर का इम्यून सिस्टम इस तक पहुंचकर इसे नष्ट कर देता है। सभी अठारहों मरीजों को यह दवा छह महीने तक हर तीसरे हफ्ते दी जाती रही और नतीजा यह हुआ कि इनका कैंसर पूरी तरह गायब हो गया। शुरू में इन मरीजों को लगा था कि दवा से उन्हें काफी मदद मिलेगी, लेकिन आगे कीमोथेरेपी वगैरह से तो गुजरना ही पड़ेगा। मगर जांच के बाद बताया गया कि उनका कैंसर ठीक हो चुका है और आगे किसी इलाज की जरूरत नहीं है।
सिर्फ दवा के सहारे कैंसर का इस तरह से उन्मूलन हो जाना आश्चर्यजनक माना जा रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक, अब तक के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है। सबसे बड़ी बात यह कि इन मरीजों में दवा का कोई गंभीर साइड इफेक्ट भी नहीं दिखा। हर पांच में से एक पेशंट में कुछ प्रतिकूल असर दिखा, लेकिन उन पर आसानी से काबू कर लिया गया। तीन से पांच फीसदी मरीजों में ही मांसपेशियों की कमजोरी और चबाने, निगलने में कुछ तकलीफ जैसे लक्षण पाए गए। कैंसर के पारंपरिक इलाज के दौरान होने वाले साइड इफेक्ट्स के मुकाबले ये कुछ भी नहीं हैं।
कैंसर का पूरी तरह उन्मूलन और साइड इफेक्ट्स का अभाव यही दो बातें एक्सपर्ट्स के मन में संदेह भी पैदा कर रही हैं। उनका कहना है कि यह केस स्टडी इतनी छोटी है कि इसके निष्कर्षों को जस का तस स्वीकार करना मुश्किल है। इसे ज्यादा लोगों पर और बड़े दायरे में दोहराने की जरूरत है। इस प्रयोग के आरंभिक निष्कर्षों को कठिन कसौटियों से गुजार कर ही इन्हें ज्यादा उपयोगी बनाया जा सकता है। कैंसर दुनिया में हर साल करीब एक करोड़ लोगों की मौत का कारण बनता है। इसका इलाज न केवल महंगा बल्कि अत्यधिक तकलीफदेह भी है। खर्च के मामले में तो यह प्रयोग भी अपने मौजूदा रूप में शायद कोई राहत न दे सके (छह महीने के कोर्स में सिर्फ दवा की कीमत 75 लाख रुपये से ऊपर बैठ रही है), लेकिन समय के साथ दवा की कीमत कम होने की उम्मीद की जा सकती है।