कहीं भी रहो, योग करो, स्वस्थ रहो

भारत की जीवन शैली जैसे जैसे ग्रामीण से शहरी परिवेश में तब्दील हो रही है

Update: 2022-03-31 19:00 GMT

भारत की जीवन शैली जैसे जैसे ग्रामीण से शहरी परिवेश में तब्दील हो रही है, वैसे वैसे मानव के स्वास्थ्य में गिरावट दर्ज की जा रही है। शारीरिक क्रियाओं के अभाव में मानव का स्वास्थ्य दिन प्रति दिन गिर रहा है। ऐसे में घर में रह कर शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए योग का ही एक मात्र सहारा है जिससे लोग तनाव रहित व शारीरिक रूप से स्वस्थ रह सकेंगे। आज मानव ने विज्ञान में नए-नए शोध कर प्रौद्योगिकी व चिकित्सा क्षेत्र में इतनी प्रगति कर ली है कि इसके कारण जीवन काफी आसान तो हो गया है, मगर शारीरिक श्रम जो पहले यूं ही दिनचर्चा में आसानी से हो जाता था, अब उसके लिए आज अलग से फिटनेस कार्यक्रम चाहिए होता है। समय बचाती दुनिया के लिए योग मुख्य विकल्प है जो कम श्रम कर अधिक फिटनेस दे सकता है। अब आम जनमानस के लिए योग के बारे में जानना जरूरी हो जाता है। पहले भी इस कॉलम के माध्यम से बार-बार योग के बारे में लिखा जा रहा है। अढ़ाई हजार वर्ष पूर्व महर्षि पतंजलि ने योग को लिखित रूप में संग्रहित किया और योग सूत्र की रचना की। योग सूत्र की रचना के कारण पतंजलि को योग का जनक कहा जाता है।

योग के महान ग्रंथ में योग के बारे में कहा गया है कि मन की वृत्तियों में नियंत्रण करना ही योग है। यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान व समाधि यह अष्टांग योग के आठ सूत्र हैं। आठों अंगों में प्रथम दो यम व नियम को नैतिक अनुशासन, आसन, प्राणायाम व प्रत्याहार को शारीरिक अनुशासन व धारणा, ध्यान, समाधि को मानसिक अनुशासन बताया गया है। योग हमें यम एवं नियम द्वारा व्यक्ति के मन और मस्तिष्क को ठीक करने की सलाह देता है। आसन और प्राणायाम करने से पूर्व यदि व्यक्ति यम एवं नियमों का पालन नहीं करता है तो उसे योग से पूर्ण स्वास्थ्य लाभ नहीं मिल सकता है। यम और नियम की विस्तार से चर्चा जरूरी है। संयम मन, वचन और कर्म से होना चाहिए। इसका पालन न करने से व्यक्ति का जीवन व समाज दोनों दुष्प्रभावित होते हैं। इससे मन मजबूत और पवित्र होता है तथा मानसिक शक्ति बढ़ती है। सत्य, अहिंसा, असतेय, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह, यह नियम व्यक्तिगत नैतिकता के हैं। मनुष्य को कर्त्तव्य परायण बनाने तथा जीवन को सुव्यवस्थित करने हेतु पांच नियमों का विधान किया गया है। ये नियम हैं शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय व ईश्वर प्राणिधान। यम यानी मन, वचन एवं कर्म से सत्य का पालन व मिथ्या का त्याग
जिस रूप में देखा, सुना एवं अनुभव किया हो, उसी रूप में उसे बतलाना सत्य है। अहिंसा दूसरा सूत्र है। इसमें किसी को मारना ही केवल हिंसा का रूप नहीं है, बल्कि किसी भी प्राणी को कभी भी किसी प्रकार का दुख न पहुंचाना अहिंसा है। असतेय अर्थात चोरी न करना। छल से, धोखे से, झूठ बोलकर, बेईमानी से किसी चीज को प्राप्त करना भी चोरी है। जिस पर अपना अधिकार नहीं, उसे लेना भी इसी श्रेणी में आता है। ब्रह्मचर्य ः मन, वचन एवं कर्म से यौन संयम अथवा मैथुन का सर्वथा त्याग करना ब्रह्मचर्य है। सभी इंद्रिय जनित सुखों में संयम बरतना। अपरिग्रह ः अपने स्वार्थ के लिए धन, संपत्ति एवं भोग की सामग्री में संयम न बरतना परिग्रह है। इसका अभाव अपरिग्रह है। आवश्यकता से अधिक संचय करना अपरिग्रह है। दूसरों की वस्तुओं की इच्छा न करना। मन, वचन एवं कर्म से इस प्रवृत्ति को त्यागना ही अपरिग्रह है। नियमों में शौच के अंतर्गत पानी-मिट्टी आदि के द्वारा शरीर, वस्त्र, भोजन, मकान आदि के मल को दूर करना बाह्य शुद्धि माना जाता है। सद्भावना, मैत्री, करुणा आदि से की जाने वाली शुद्धि आंतरिक शुद्धि मानी जाती है। केवल अपने भौतिक शरीर का ध्यान रखना पर्याप्त नहीं है। बल्कि अपने मन के विचारों को पहचान कर उन्हें दूर करने का प्रयास करना जरूरी है। शरीर और मन दोनों की शुद्धि जरूरी है। संतोष दूसरा नियम है। इसमें कर्त्तव्य का पालन करते हुए जो कुछ उपलब्ध हो, जो कुछ प्राप्त हो, उसी में संतुष्ट रहना। किसी प्रकार की तृष्णा न करना। तीसरा नियम है तप। इस नियम में अपने वर्ण, आश्रम, परिस्थिति और योग्यता के अनुसार स्वधर्म का पालन करना।
व्रत, उपवास आदि को भी इसी में शामिल किया जाता है। यानी कि स्वयं से अनुशासित दिनचर्या में रहना है। स्वाध्याय चौथा नियम है, जिससे कर्त्तव्य का बोध हो सके, मतलब शास्त्र का अध्ययन करना। महापुरुषों के वचनों का अनुपालन भी स्वाध्याय के अंतर्गत आता है। ईश्वर प्राणिधान पांचवां नियम है। ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण व संपूर्ण श्रद्धा रखना। फल की इच्छा का परित्याग पूर्वक समस्त कर्मों का ईश्वर को समर्पण करना ईश्वर प्राणिधान कहलाता है। हजारों साल पहले भारतीय शोधकर्ताओं ने यौगिक क्रियाओं से होने वाले लाभों को समझ लिया था जो आज की चिकित्सा व खेल विज्ञान की कसौटी पर खरा सोना सिद्ध हो रहा है। इन नियमों का पालन करने के बाद अगर यौगिक क्रियाओं को किया जाता है तो मानव में शारीरिक व मानसिक स्तर पर आश्चर्यजनक रूप से अलौकिक सुधार होता है। आज आधुनिकता की इस अंधी दौड़ में इनसान को अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देना जरूरी हो जाता है क्योंकि आज मिट्टी, पानी व हवा यानी हर जगह जहर ही जहर है, जिसके कारण कोरोना जैसे भयंकर रोग हो रहे हैं। ऐसे में योग जैसी पद्धति स्वस्थ जीवन के लिए जरूरी है। उसके बारे में जानना और भी जरूरी हो जाता है। योग को दैनिक जीवन में अपना कर मनुष्य अपने को मानसिक व शारीरिक तौर पर स्वस्थ रख कर जीवन को खुशहाल बना सकता है।
भूपिंद्र सिंह
अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रशिक्षक
ईमेलः bhupindersinghhmr@gmail.com

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