दहशतगर्दी की बुनियाद
तमाम चौकसी, सख्ती और तलाशी अभियानों के बावजूद कश्मीर घाटी में दहशतगर्दी खत्म होने का नाम नहीं ले रही, तो इसकी कुछ वजहें अब साफ हो रही हैं।
Written by जनसत्ता; तमाम चौकसी, सख्ती और तलाशी अभियानों के बावजूद कश्मीर घाटी में दहशतगर्दी खत्म होने का नाम नहीं ले रही, तो इसकी कुछ वजहें अब साफ हो रही हैं। कश्मीर विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर, सरकारी स्कूल के अध्यापक और कश्मीर पुलिस के एक कर्मी की गिरफ्तारी से जाहिर हुआ है कि आतंकियों की बेल कहां सींची जा रही है। कश्मीर विश्वविद्यालय का रसायन विज्ञान का प्रोफेसर न सिर्फ विद्यार्थियों में अलगाववादी जहर घोल रहा था, बल्कि कई मौकों पर विरोध प्रदर्शन और पत्थरबाजी के लिए उकसाने में भी शामिल था।
इसी तरह सरकारी स्कूल का अध्यापक भी विद्यार्थियों के दिमाग में दहशतगर्दी के बीज बो रहा था। कई मौकों पर वह हमले करने वालों में भी शामिल रहा। पुलिसकर्मी आतंकवादियों के भूमिगत समर्थक के रूप में काम कर रहा था। इन तीनों की गिरफ्तारी से निस्संदेह इस तरह आतंकवादियों के लिए काम करने वाले दूसरे स्रोतों के बारे में भी जानकारी मिलेगी और उन्हें खत्म करने की दिशा में आगे बढ़ा जा सकेगा। हालांकि यह पहली घटना नहीं है। इसके पहले भी कश्मीर विश्वविद्यालय के कुछ प्रोफेसर आतंकी गतिविधियों में शामिल पाए जा चुके हैं। देश के दूसरे विश्वविद्यालयों में भी ऐेसे लोग चिह्नित हुए, जो आतंकी संगठनों को सूचनाएं उपलब्ध कराने, साजिश रचने आदि में मदद करते थे।
आतंकी संगठन विभिन्न सरकारी महकमों में अपने लोग घुसाने या उनमें काम कर रहे लोगों को अपने पाले में लाने का प्रयास करते रहते हैं। यहां तक कि सेना और पुलिस में भी वे अपने लोगों को घुसाने की कोशिश करते हैं। इस तरह उन्हें सूचनाएं आसानी से मिल जाती हैं और अपनी साजिशों को अंजाम देना आसान हो जाता है। विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में पढ़ाने वाले अगर उनका समर्थन करने वाले हों, तो वे आातंकवादियों की नई पीढ़ी तैयार करने में काफी मददगार साबित होते हैं।
कश्मीर में आतंकी संगठनों को नेस्तनाबूद करना इसीलिए मुश्किल बना हुआ है कि उनमें युवाओं की भर्ती पर रोक नहीं लग पा रही। उन युवाओं का मानस तैयार करने में ऐसे ही स्कूलों और विश्वविद्यालयों-महाविद्यालयों के कुछ अध्यापक काम करते हैं। कहते हैं कि किसी भी विचारधारा को फैलाना और स्थायी बनाना है, तो उसे शिक्षण संस्थानों में रोप दो। आतंकी भी इसी सिद्धांत पर चलते हैं। हैरानी की बात नहीं कि अनेक बड़ी आतंकी घटनाओं में उच्च शिक्षा प्राप्त युवा शामिल पाए गए हैं। इसी तरह पुलिस में आतंकियों के समर्थक होने से उन्हें अपनी साजिशों को अंजाम देने, सुरक्षित बच निकलने में मदद मिलती है।