मुक्केबाजी के 'गोल्ड' का फनाह होना
बैंकॉक एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक विजेता और भारत के पूर्व बैटमवेट मुक्केबाज डिंको सिंह का केवल 41 वर्ष की उम्र में निधन हो जाने से खेल जगत शोक में है।
आदित्य चोपड़ा| बैंकॉक एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक विजेता और भारत के पूर्व बैटमवेट मुक्केबाज डिंको सिंह का केवल 41 वर्ष की उम्र में निधन हो जाने से खेल जगत शोक में है। हालांकि कोरोना काल में हमने बहुत हस्तियों और करीबी लोगों को खोया है। डिंको सिंह को पिछले वर्ष कोरोना वायरस ने अपनी चपेट में ले लिया था। यद्यपि डिंको सिंह ने कोविड-19 से जंग जीत ली थी लेकिन 2017 से ही उनका लिवर कैंसर का उपचार चल रहा था। अक्सर राजनीतिज्ञों के बारे में मीडिया में बहुत कुछ लिखा जाता है। उनकी उपलब्धियों का महिमामंडल किया जाता है। उनके निधन पर उन्हें श्रद्धांजलियां देने वालों का तांता लगा रहता है। लेकिन अनेक ऐसे प्रतिभा सम्पन्न लोग भी हुए जिनके जीवन के बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी है। हालांकि लोग उनकी उपलब्धि से परिचित हैं। डिंको सिंह का जन्म 1979 में इंफाल के सेकता गांव में बेेहद गरीब परिवार में हुआ था। बचपन में ही माता-पिता का निधन हो गया तो उन्हें अनाथालय में रहना पड़ा। उन्हें अपनी जीवन की शुरूआत से ही अनेक विषमताओं का सामना करना पड़ा। भारतीय खेल प्राधिकरण द्वारा शुरू की गई विशेष क्षेत्र खेल योजना के प्रशिक्षकों ने डिंको सिंह की छिपी प्रतिभा को पहचाना। मेजर ओ. पी भाटिया ने डिंको सिंह से पूछा था कि तुम क्या बनना चाहते हो और तुम क्या जानते हो तो डिंको सिंह ने कहा था मैं मुक्केबाज बनना चाहता हूं। मेजर ओ.पी. भाटिया की विशेष निगरानी में ही उन्हें प्रशिक्षित किया गया। अक्सर अनाथ बच्चों पर समाज ध्यान नहीं देता और उन्हें हाशिये पर धकेल दिया जाता है लेकिन एक अनाथ बच्चे का भारत का सबसे बेहतरीन मुक्केबाज बनना अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि है।