बुरे फंसे पुतिन
फिनलैंड और स्वीडन की जल्द से जल्द नैटो सदस्यता के लिए आवेदन करने की घोषणा इस बात का सबूत है कि यूक्रेन युद्ध ने यूरोपीय देशों की मनोदशा को बहुत गहरे प्रभावित किया है।
नवभारत टाइम्स: फिनलैंड और स्वीडन की जल्द से जल्द नैटो सदस्यता के लिए आवेदन करने की घोषणा इस बात का सबूत है कि यूक्रेन युद्ध ने यूरोपीय देशों की मनोदशा को बहुत गहरे प्रभावित किया है। ध्यान रहे रूस के पड़ोस में स्थित इन दोनों देशों ने शीत युद्ध के लंबे चले दौर में भी अपनी तटस्थता बनाए रखी थी। वजह यह भी हो सकती है कि वे पड़ोस की महाशक्ति को नाराज नहीं करना चाहते थे। मगर बदले हालात में अब ऐसा लगता है कि सुरक्षा की चिंता रूस की संभावित नाराजगी पर भारी पड़ गई है। खासकर फिनलैंड की तो 1300 किलोमीटर लंबी सीमा रूस के साथ लगती है। वहां सरकार पर जनमत का भी जबर्दस्त दबाव है। पिछले सप्ताह हुए एक ओपिनियन पोल के मुताबिक 76 फीसदी लोग नैटो की सदस्यता लेने के पक्ष में हैं। सिर्फ 12 फीसदी लोगों ने इसका विरोध किया।
हालांकि दोनों देशों ने अभी तक इस फैसले की औपचारिक घोषणा नहीं की है। यह घोषणा रविवार को होने की संभावना है। लेकिन न केवल दोनों देश अपनी मंशा जता चुके हैं बल्कि नैटो के सेक्रेटरी जनरल भी कह चुके हैं कि इन दोनों के आवेदन पर जल्द ही पॉजिटिव फैसला लिया जाएगा। अमेरिका भी इसके पक्ष में है। ऐसे में तय माना जा रहा है कि जल्द ही ये दोनों देश नैटो के सदस्य बन जाएंगे। यह रूस के प्रभाव क्षेत्र में नैटो के विस्तार का अगला चरण है, जिसे रूस हर कीमत पर रोकने की बात करता रहा है। यूक्रेन पर हमले के पीछे भी उसकी यही आशंका रही है कि नैटो उसके पड़ोस के देशों तक पहुंचना चाहता है।
यूक्रेन तो अभी तक नैटो का मेंबर नहीं बना है, लेकिन फिनलैंड के इसका सदस्य बनते ही रूस से लगती नैटो की सीमा दोगुने से भी ज्यादा हो जाएगी। इस पर रूस ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उसने कह भी दिया है कि अगर इन दोनों देशों ने नैटो की सदस्यता ली तो वह जवाबी कदम उठाने को मजबूर होगा। उसने संकेत दिए हैं कि ये कदम न केवल द्विपक्षीय संबंधों को बल्कि उत्तरी यूरोप की सुरक्षा और स्थिरता को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं, लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया है कि अपनी प्रतिक्रिया में वह किस हद तक आगे बढ़ेगा।
यूक्रेन के साथ युद्ध के दौरान भी रूसी नेतृत्व एकाधिक बार परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की परोक्ष धमकी दे चुका है, लेकिन पारंपरिक हथियारों पर आधारित लड़ाई में उसे उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिली है। अव्वल तो युद्ध अपेक्षा से कहीं ज्यादा लंबा खिंच गया है, दूसरे अभी भी यूक्रेन समर्पण करने के मूड में नहीं दिखता। यह भी साफ हो गया है कि जिस नैटो विस्तार को मुद्दा बनाकर व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन के खिलाफ युद्ध छेड़ा, वह उसे रोकने में नाकाम हो रहे हैं।