AUKUS है चीन को करारा जवाब, भारत की ताक़त में भी करेगा इज़ाफ़ा
एक हफ्ते पहले अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने एक ऐलान कर दुनिया के कान खड़े कर दिए
विष्णु शंकर। एक हफ्ते पहले अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने एक ऐलान कर दुनिया के कान खड़े कर दिए. तीनों देशों ने कहा कि इंडो पैसिफिक क्षेत्र की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अमेरिका और ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया को परमाणु ईंधन से चलने वाली पनडुब्बियां बनाने में मदद करेंगे. ध्यान रहे ये पनडुब्बियां परमाणु ईंधन से सिर्फ चलेंगी, इन पनडुब्बियों पर, फिलहाल, परमाणु हथियार रखने की कोई योजना नहीं है.
इस ऐलान के होते ही चारों तरफ हड़कंप मच गया. चीन ने कहा कि एशिया पैसिफिक क्षेत्र को आर्थिक विकास और नौकरियों की ज़रुरत है, न कि बारूद और पनडुब्बियों की. चीन ने आगे कहा कि AUKUS यानि Australia, UK और US को अपना फैसला पलट देना चाहिए और अंतर्राष्ट्रीय NPT संधि के अंतर्गत अपनी ज़िम्मेदारियों को निभाना चाहिए. NPT संधि के अनुसार परमाणु टेक्नोलॉजी की मिल्कियत वाले देशों द्वारा इस टेक्नोलॉजी को ऐसे देशों के साथ साझा करने की मनाही है जो NPT की शर्तों को नहीं मानते.
AUKUS के लिए ब्रिटेन और अमेरिका ने ऑस्ट्रेलिया को ही क्यों चुना?
लेकिन मज़े की बात है कि उत्तरी कोरिया और पाकिस्तान दोनों ही इस वक़्त NPT संधि के बाहर हैं और दोनों ही के परमाणु कार्यक्रमों को चीन से भरपूर मदद मिली है. AUKUS समझौते के अमल में आने के बाद पश्चिमी प्रशांत महासागर में ऑस्ट्रेलिया की नौसैनिक ताक़त में ख़ासा इज़ाफ़ा होगा और वह इस इलाके में चीन के बढ़ते प्रभाव का जवाब देने की स्थिति में आ जाएगा. सवाल है कि अमेरिका और ब्रिटेन ने इस ज़िम्मेदारी के लिए ऑस्ट्रेलिया को ही क्यों चुना?
इस सवाल का जवाब यह है कि इंडो पैसिफिक इलाके में प्रभाव रखने वाले दो और देश- भारत और जापान, ऐसी किसी संधि का हिस्सा नहीं हो सकते. जापान का संविधान उसे यह इजाज़त नहीं देता कि वह किसी भी सैनिक संधि या गठजोड़ का हिस्सा बने. और भारत की नीति रही है कि वह अब तक किसी भी ऐसी संधि में शामिल नहीं हुआ जिसका स्वरुप सिर्फ सैनिक सहयोग हो.
AUKUS से नाराज फ्रांस अब मान गया है?
भारत ने 1970 के दशक में तब के सोवियत संघ और आज के रूस से एक व्यापक क़रार किया था जिसके सैनिक सहयोग के साथ-साथ और भी कई पहलू थे. भारत और जापान दोनों QUAD ग्रुप का हिस्सा तो हैं ही, जिसमें और विषयों के साथ-साथ सामरिक क्षेत्र में सहयोग भी शामिल है. लेकिन AUKUS को बनाने में तीनों देशों से एक ग़लती हो गयी. इन्होंने फ्रांस को इस बारे में विश्वास में नहीं लिया. फ्रांस को विश्वास में लेना इस लिए ज़रूरी था क्योंकि AUKUS समझौते के पहले फ्रांस ही ऑस्ट्रेलिया के लिए 12 डीज़ल से चलने वाली पनडुब्बियां बनाने का क़रार पूरा कर रह था. AUKUS के ऐलान के बाद फ्रांस आग बबूला हो गया. उसने कहा कि अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने उसकी पीठ में छुरा भोंका. बात इतनी बढ़ गयी कि फ्रांस ने कैनबरा और वॉशिंग्टन, दोनों राजधानियों से अपने राजदूत वापस बुला लिए.
अमेरिका ने फ़ौरन मान मनौव्वल शुरू की और पांच दिनों के भीतर ही फ्रांस मान गया और अपने राजदूत को अगले हफ़्ते वॉशिंग्टन लौटने का हुक़्म दे दिया. फ्रांस इस शर्त पर अमेरिका की बात माना कि भविष्य में इंडो पैसिफिक इलाके के देशों के साथ होने वाली डिफ़ेंस डील्स में उसे बाहर नहीं रखा जाएगा और इसी साल अक्टूबर में, शायद G 20 शिखर सम्मलेन में, जो इटली की राजधानी रोम में आयोजित होगी, वहां अच्छे से बात होगी कि इन देशों में विचार विमर्श ऐसा हो कि इस तरह की गफलत फिर कभी न हो.
AUKUS से चीन को राजनीतिक चेतावनी मिली है
भारत में ये सवाल बहुत से लोगों की ज़हन में है कि क्या AUKUS के आने के बाद QUAD का महत्व कहीं कम तो नहीं जो जाएगा. भारत के पूर्व विदेश सचिव, कंवल सिबल, की राय है कि जहां तक चीन को यह सन्देश जाने की ज़रुरत है कि South China Sea पर कब्ज़ा करने की उसकी कोशिश, एशिया पर अपनी धौंस जमाए रखने की नीति और सुपर पावर बनने के सपने का सवाल है, इन सभी का विरोध होगा. भारत भी चीन की विस्तारवादी नीतियों और उसके दोस्त पाकिस्तान की मार्फ़त अपने सामरिक हितों की सुरक्षा में अड़चन झेलता रहा है. चीन को यह समझाने की ज़रुरत थी कि उसने अपनी हरकतों से प्रभावित देशों का जवाब समझने में गलती कर दी.
भारत को पहले यह चिंता थी कि ऑस्ट्रेलिया चीन के सामने खड़ा होने की हिम्मत क्या जुटा पाएगा. लेकिन हाल के वर्षों में भारत और ऑस्ट्रेलिया के लीडरों ने आपस में अच्छी राजनीतिक समझ हासिल कर ली है. आज की स्थिति में अगर ऑस्ट्रेलिया की नौसैनिक ताक़त बढ़ाने वाला AUKUS जैसा कोई समझौता होता है, तो भारत को भी इससे मदद मिलेगी. चीन को जो राजनीतिक चेतावनी दिए जाने की ज़रुरत थी वह AUKUS के ऐलान से पूरी हो गयी है. लेकिन इस सच्चाई से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि AUKUS के ऐलान की टाइमिंग से 24 सितम्बर को वॉशिंग्टन में होने वाले पहले In-person QUAD शिखर सम्मेलन की अहमियत में थोड़ी कमी तो निश्चित ही आई है.