प्रचार पर वार
उपचुनावों में प्रचार और प्रचारक को कुंद करने का वार अपने आप में सबसे अद्भुत कला है
divyahimachal.
उपचुनावों में प्रचार और प्रचारक को कुंद करने का वार अपने आप में सबसे अद्भुत कला है। विरोध की भाषा में मनोरंजन का लहजा और छठी का दूध पिलाने का मकसद, हिमाचल की चुनावी सरगर्मियों को अंकित कर रहा है। कांग्रेस ने खुद को मुखर करने के लिए जिस बैटरी का इस्तेमाल किया है, वहां पंजाब की इबारत उतर रही है। नवजोत सिंह सिद्धू के अलावा पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी का आगमन इन्हीं तूफानी हवाओं का संदेश होगा, जबकि छत्तीसगढ़ और राजस्थान की सत्ता के बलबूते भूपेश बघेल और सचिन पायलट का कद भी देखा जाएगा। हाल ही में कांग्रेस को अपना चुके छात्र नेता कन्हैया कुमार भी उपचुनावों में भाषा और विषयों के संगम पर सुर्खियां बटोर रहे हैं और इसका विरोध भी होने लगा है। दूसरी ओर भाजपा ने अपने अखंड भविष्य के लिए राज्य के नेताओं, मंत्रियों के अलावा मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर व केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के जिम्मे सारे मंच खड़े किए हैं। ऐसे में प्रचार की धार का मूल्यांकन जरूर होगा और यह भी कि मुद्दों की बिसात पर राज्य सरकार कर्मयोगी बनकर विकास को चरितार्थ करेगी।
कोविड काल से मिली छूट के बीच राजनीतिक तीतर-बटेरों के इस खेल में उड़ारियों के साथ निशानेबाजी भी स्पष्ट है। प्रचार का कैनवास बड़ा करने की दृष्टि से कांग्रेस ने अपने पत्ते खोल दिए हैं और इस तरह राष्ट्रीय मंचन का कुछ नजारा यहां भी दिखाई देगा। उपचुनाव की दृष्टि से हिमाचल अपने वजूद से चस्पां कितने सवाल देख पाएगा, लेकिन यह तय है कि प्रचार का क्रॉफ्ट इस बार नई शैली विकसित कर सकता है। देखना यह भी होगा कि मंत्रीय भाषण और आम कार्यकर्ता के संपर्क में किस पार्टी का मतदाता कहीं अधिक प्रभावित होता है। चुनाव में प्रत्याशियों के बीच खरे खोटे की समझ के आईने जितने बड़े होंगे, उतना ही प्रचार निरर्थक हो सकता है। यह दीगर है कि अगर चुनाव केंद्र और राज्य में भाजपा बनाम हो गया, तो कांग्रेस को मुद्दे उछालने में आसानी होगी। भाजपा के अभियान में प्रचार का तंत्र महीन और जहीन है। यह सियायी रूई की ऐसी कताई और बुनाई है, जो ऐन वक्त पर काम आती है। इन उपचुनावों से पूर्व चार नगर निगमों के चुनाव अंततः भाजपा की झोली में दो सफल नतीजे डाल गए तो पर्दों के पीछे पार्टी की करामात को समझना बार-बार कांगे्रस के लिए कठिन हो जाता है। भाजपा अपने शिविर से जीत की घेराबंदी जिस तरह करती रही है, उसका भोकाल सारे देश में सुना गया, लेकिन हिमाचली मतदाता काफी हद तक परंपरावादी है।
किसी भी सत्ता बनाने में अगर हिमाचली अपने भीतर के जातीय समीकरणों को जोड़ लेते हैं, तो सत्ता के विरोध में विभिन्न वर्गों में संगठित होकर कभी कर्मचारी, कभी सेब उत्पादक, कभी विस्थापित, तो कभी बेरोजगारी की पताका उठाकर उठापटक कर देते हैं। सबसे बड़ा प्रश्न यह कि क्या हिमाचल इस वक्त उठापटक करके कोई संदेश देना चाहेगा या सरकार से अपने रिश्तों की नई संभावना तराशेगा। जो भी हो भाजपा का सीधा समर्थन मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर को चिन्हित करके आगे बढ़ना चाहता है। अगर आगामी विधानसभा चुनावों तक प्रचार का यह गठजोड़ मजबूत करना है तो चार उपचुनाव अपने हर परिणाम को सबक के साथ जोड़ सकते हंै। वैसे मुख्यमंत्री ने विकास के रथ को आगे बढ़ाते हुए अपनी ओर से सबसे अहम मुद्दे की पेशकश कर दी है, तो दूसरी ओर से कांग्रेस हर सूरत रसोई गैस सिलेंडर और पेट्रोल की कीमतों का आंखों देखा हाल इन चुनावों में दिखाना चाहेगी। महंगाई के सूचकांक में फंसे उपचुनावों की अपनी कीमत है और यह मतदाता ही तय करेगा कि उसकी गठरी पर कोई सेंक लग रहा है या कोई गांठ पैदा हो रही है। मध्यम वर्गीय हिमाचल की सैन्य पृष्ठभूमि में मंडी संसदीय क्षेत्र कितना 'कारगिल' कर पाता है या स्व. वीरभद्र सिंह के नाम का जाप, इस क्षेत्र को कांग्रेस के लिए वरदान बना देता है, यह चुनाव प्रचार की भाव भंगिमा और फील्ड में चल रही नौटंकी ही बताएगी।