एटमी हथियारों की होड़!
चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग पांच साल के तीसरे कार्यकाल के लिए रविवार को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव चुन लिए गए। इसमें शायद ही किसी को शक रहा हो। इसके लिए सारे जरूरी इंतजाम चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की शनिवार को समाप्त हुई 20वीं कांग्रेस में कर लिए गए थे।
नवभारत टाइम्स: चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग पांच साल के तीसरे कार्यकाल के लिए रविवार को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव चुन लिए गए। इसमें शायद ही किसी को शक रहा हो। इसके लिए सारे जरूरी इंतजाम चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की शनिवार को समाप्त हुई 20वीं कांग्रेस में कर लिए गए थे। इस कांग्रेस के दौरान गठित सर्वशक्तिमान सात सदस्यीय स्टैंडिंग कमिटी में शी के समर्थकों की एंट्री सुनिश्चित की गई और पूर्व प्रधानमंत्री ली समेत सभी संभावित असंतुष्टों को सत्ता केंद्रों से दूर कर दिया गया। हालांकि कांग्रेस की करीब एक सप्ताह चली बैठक लगभग पूरी तरह से शांतिपूर्ण और पूर्वनियोजित ही रही, लेकिन आखिरी दिन पूर्व राष्ट्रपति हू चिनताओ को जिस तरह बैठक स्थल से निकाला गया, उसने थोड़ी असहजता जरूर पैदा की।
बाद में कहा गया कि पूर्व राष्ट्रपति की तबीयत ठीक नहीं थी, इसलिए उन्हें बाहर ले जाना पड़ा। बहरहाल, औपचारिक तौर पर भले ही शी को तीसरा कार्यकाल दिया गया हो, वास्तव में माना यही जा रहा है कि वह आजीवन सत्ता में बने रहेंगे। इस तरह से चीन में शुरू हो रहे नए दौर को शी युग का नाम दिया जा रहा है। जिन कुछेक खास वजहों से चीन के इस शी युग को पूरी दुनिया के लिए चिंताजनक बताया जा रहा है, उनमें प्रमुख है परमाणु हथियारों की होड़ दोबारा शुरू होने की आशंका। 20वीं पार्टी कांग्रेस के उद्घाटन सत्र में ही शी ने कहा था कि हम सामरिक प्रतिरोध की एक मजबूत व्यवस्था बनाएंगे। शी ने, जो सेंट्रल मिलिट्री कमिशन (सीएमसी) के भी प्रमुख हैं, अपनी 63 पेज की रिपोर्ट में 'पीएलए (पीपल्स लिबरेशन आर्मी) का केंद्रीय लक्ष्य हासिल करना और राष्ट्रीय रक्षा तथा सेना का आधुनिकीकरण' शीर्षक से सेना को समर्पित पूरा एक अध्याय शामिल किया है। उन्होंने अनमैंड कॉम्बैट की क्षमता तेजी से विकसित करने और नेटवर्क इन्फॉर्मेशन सिस्टम के विकास और इस्तेमाल को बढ़ावा देने का भी आह्वान किया।
इसका मतलब यही है कि उनके नेतृत्व में चीन अपनी परमाणु प्रतिरोध क्षमता को मजबूती देगा। इससे भारत को भी परमाणु हथियारों की संख्या बढ़ानी पड़ सकती है। अभी चीन-पाकिस्तान के मुकाबले भारत के पास कम परमाणु हथियार हैं। इसके अलावा, अगर चीन को उसका पुराना गौरव वापस दिलाने की शी की घोषित नीति और उसके आक्रामक तेवर को ध्यान में रखें तो आने वाले दिनों के लिए ये संकेत सकारात्मक नहीं कहे जा सकते। यह अकारण नहीं है कि जापान ने शनिवार को ऑस्ट्रेलिया के साथ नया द्विपक्षीय सुरक्षा समझौता किया, जिसमें मिलिट्री, इंटेलिजेंस और सायबर सिक्यॉरिटी में सहयोग बढ़ाने पर खास जोर दिया गया है। इस बीच यह खबर भी आई है कि चीन और पाकिस्तान सीपीईसी (चाइना-पाकिस्तान इकॉनमिक कॉरिडोर) के अलावा तीन और कॉरिडोर के साझा प्रॉजेक्ट शुरू कर सकते हैं। जाहिर है, आने वाले दौर में अंतरराष्ट्रीय शांति कायम रखने की कोशिशें तेज करने की जितनी जरूरत होगी, सतर्कता के साथ हर तरह के हालात से निपटने की तैयारी रखना भी उतना ही अहम होगा।