राजनीति के ‘अतीक जी’

Update: 2023-04-19 17:10 GMT
 By: divyahimachal 
माफिया अतीक अहमद कई राजनीतिक दलों और नेताओं के ‘अतीक जी’ हैं। बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव का मानना है कि जनाजा ‘अतीक जी’ का नहीं, कानून का निकला है। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अतीक-अशरफ पर जानलेवा हमले को ‘भारत के संविधान पर हमला’ करार दिया है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, बसपा प्रमुख मायावती और ओवैसी सरीखे नेताओं की फेहरिस्त लंबी है, जो अतीक-अशरफ की हत्या को ‘लोकतंत्र की हत्या’ मान रहे हैं। यह सबसे विरोधाभासी उपमा है। अतीक कब लोकतंत्रवादी था? जरा इस सवाल की व्याख्या वे नेतागण कर दें, जो आज रुदाली-प्रलाप में डूबे हैं। दुहाई यह दी जा रही है कि किसी भी अपराधी और माफिया को सजा देने का दायित्व और अधिकार अदालत और कानून-संविधान का है। कमोबेश हमारी सोच भी यही है कि देश कानून-संविधान से ही चलना चाहिए। हम मुठभेड़ी हत्याओं और सरेआम लाशें बिछा देने की करतूतों के खिलाफ हैं, लेकिन ऐसा हरेक सरकार में होता रहा है। विपक्ष में आते ही विस्मृति छाने लगती है। गौरतलब यह है कि किसी निचली अदालत के नहीं, बल्कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 10 न्यायाधीश इतने खौफजदा थे कि उन्होंने अतीक से जुड़े आपराधिक मामलों की सुनवाई से ही इंकार कर दिया था। उन न्यायाधीशों के नाम आज सार्वजनिक हो चुके हैं। संदर्भ 2010 और उसके बाद के हैं। उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने अतीक के केस जिस भी न्यायमूर्ति को सुनने के लिए दिए, उसी ने हाथ खड़े कर दिए। सुनवाई से अलग ही रहे। किसी अन्य न्यायाधीश को रेफर करने का आग्रह किया। नतीजतन अतीक के खिलाफ करीब 44 सालों तक कोई भी अदालती फैसला नहीं आ सका। कानून अप्रासंगिक बनकर रह गया। अतीक अपराध करता रहा। माफिया भी बन गया। हत्याओं के केस लगातार दर्ज होते रहे। ज़मीनों पर कब्जे किए जाते रहे। फिरौतियां वसूली गईं। वह जेल तो गया, लेकिन किसी भी कानून ने उसे सजा नहीं सुनाई।
अतीक पांच बार विधायक चुना गया। 2004 में सपा के टिकट पर उस फूलपुर सीट से लोकसभा सांसद चुना गया, जो देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की परंपरागत सीट हुआ करती थी। अतीक ने 2008 में केंद्र की मनमोहन सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के दौरान सरकार के पक्ष में वोट दिया और कांग्रेस नेतृत्व की सरकार बचाई। उस अभियान में मुलायम सिंह-अमर सिंह ने अग्रणी भूमिका निभाई थी। अतीक के जरिए ही राजनीति का अपराधीकरण भी खूब बढ़ा, क्योंकि उप्र में सपा सरकार ने 2 बार, कांग्रेस सरकार ने एक बार और भाजपा गठबंधन की सरकार ने भी एक बार, अतीक के खिलाफ, ‘गैंगस्टर एक्ट’ वापस लिया था। कानून का मजाक उड़ाया गया। अतीक ने माफियागीरी से करीब 11,000 करोड़ रुपए की संपदा बनाई। मौजूदा उप्र सरकार और पुलिस का दावा है कि उसने अतीक गैंग की 1169.20 करोड़ रुपए मूल्य की संपत्तियों का जब्तीकरण और ध्वस्तीकरण किया है। किसी कानून और जांच एजेंसी ने आकलन करने की हिम्मत की थी कि माफिया अतीक के पास इतनी संपदा कहां से और कैसे आई? कानून तो मानो अतीक का बंधक बना था। नेतागण आज किस कानून की दुहाई दे रहे हैं? ऐसी स्थितियों और समीकरणों में कानून और अदालतें क्या कर सकती थीं? जिन बिल्कुल नए नौजवान चेहरों ने गोलीबारी कर अतीक-अशरफ की हत्या की है, सवाल उनके संदर्भ में भी हैं। उन युवाओं की जेब में 200 रुपल्ली नहीं होती थी, तो उनके पास 5 लाख रुपए की विदेशी पिस्टल कहां से आ गई? वह पिस्टल भारत में प्रतिबंधित है। हत्यारों को 10-10 लाख रुपए किसने मुहैया कराने की बात कही है? इस हत्याकांड का असली माफिया कौन है? शायद जांच से कोई सत्य सामने आए!

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