विधानसभा चुनाव : परिवारवाद और दलबदल का एग्जांपल सेट कर रही है गोवा की राजनीति
विधानसभा चुनाव
अजय झा. गोवा भारत के दक्षिण-पश्चिम में बसा एक बेहद सुन्दर राज्य है. सागर है, मीलों में फैला सागरतट है, नदी है, झरना है, पहाड़ है, जंगल है, जंगल में जानवर हैं, खान है, इतना सब कुछ है भारत के सबसे छोटे राज्य में कि देसी और विदेशी सैलानियों में गोवा बेहद लोकप्रिय है. पश्चिम संस्कृति की छाप लिए हुए गोवा की खानपान, जीवन शैली, संगीत – सब कुछ भारत के किसी अन्य राज्य से अलग है. पर एक चीज जो गोवा में भारत के किस भी अन्य राज्य से बिलकुल भी अलग नहीं है, वह हैं वहां के नेता.
हरियाणा पर भले ही आया राम गया राम राजनीति का ठप्पा लग गया, पर अगर किसी राज्य में दल बदल कानून के बावजूद आज भी आया राम गया राम की राजनीति खुलेआम होती है, और वहां के निवासी इसका बुरा भी नहीं मानते हैं तो वह गोवा ही है.
2017 का दलबदल ऐतिहासिक था
बात की शुरुआत करते हैं राज्य में 2017 में हुए विधानसभा चुनाव से. राज्य में त्रिशंकु विधानसभा चुना गया, कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी. बहुमत से सिर्फ चार सीट कम. उस चार सीट का जुगाड़ भी हो गया. एनसीपी जिसका एक विधायक चुना गया था और गोवा फॉरवर्ड पार्टी जिसके तीन विधायक चुने गए थे, ने कांग्रेस पार्टी को समर्थन देने का फैसला किया. कांग्रेस पार्टी 17 विधायकों में चार भूतपूर्व मुख्यमंत्री थे. किसी के नाम पर सहमति नहीं बन रही थी, लिहाजा फैसला पार्टी के तात्कालिक अध्यक्ष राहुल गांधी पर छोड़ा गया. इसी बीच बीजेपी के चाणक्य अमित शाह गोवा पहुंचे. गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री और भारत के तात्कालिक रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर पहले से ही मौजूद थे. एक पांच सितारा होटल में जहां अमित शाह ठहरे थे, देर रात एक बैठक हुयी और रातों रात स्थिति बदल गयी. गोवा फॉरवर्ड पार्टी के तीन विधायक, महाराष्ट्रवादी गोमंतक के तीन विधायक और तीन निर्दलीयों का समर्थन पत्र लेकर सुबह पर्रिकर ने राज्यपाल मृदुला सिन्हा के समक्ष अपना दावा प्रस्तुत किया और इससे पहले कि राहुल गांधी चार दिनों तक मंथन करने के बाद फैसला करते, राज्य में पर्रिकर के नेतृत्व में बीजेपी ने गठबंधन सरकार बना ली. कांग्रेस ने जनतंत्र की हत्या, जनादेश की अवहेलना आदि का बीजेपी पर आरोप लगाया, बीजेपी पर पैसे दे कर विधायक खरीदने का भी आरोप लगाया पर तब तक अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत वाली कहावत लागू हो चुकी थी.यह तो एक शुरुआत थी.एक एक करके कांग्रेस के 17 में से 12 विधायक बीजेपी में शामिल हो गए, महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी के भी तीन में से दो विधायक बीजेपी में आ गए, बीजेपी ने चुनाव में ना सही, चुनाव के बाद बहुमत हासिल करने में सफल रही और पूरे पांच साल से वह बीजेपी की सरकार चल रही है. चुनाव पूर्व सर्वेक्षण के आंकड़े बताते हैं कि बीजेपी एक बार फिर से, और इस बार चुनाव में बहुतमत हासिल कर के सरकार बनायेगी. यह आया राम गया राम का सिलसिला अभी हाल तक चला जबकि कांग्रेस के विधायक और पूर्व मुख्यमंत्री लुइज़िन्हो फलेरियो सितम्बर महीने में कांग्रेस छोड़ कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए.
परिवार वालों को भी टिकट दो नहीं तो दूसरी पार्टी में चले जाएंगे
चुनाव के पूर्व दल बदल होना तो सभी राज्यों में आम बात है. चुनाव लड़ने और जीतने की इच्छा सभी की होती है. जिसे लगता है कि उसे टिकट नहीं मिलेगा या किसी का टिकट कटने वाला है, वह दूसरे दल में शामिल हो जाता है, जो इन दिनों गोवा में भी हो रहा है. पर इसमें इस बार एक दिलचस्प अध्याय जुड़ गया है. कुछ नेता इसलिए किसी दूसरे दल में शामिल होने की धमकी दे रहे हैं ताकि उन्हें उनके अलावा उनके परिवार के किसी और सदस्य को भी टिकट मिल सके. इसमें सबसे ऊपर नाम आता है कालंगुटके विधायक और गोवा के मंत्री माइकल लोबो का. लोबो महत्वाकांक्षी हैं. नहीं होते तो होटल में प्लेट धोने से जीवन की शुरुआत करके अनेक होटल और रेस्टोरेंट के मालिक और धन्ना सेठ नहीं बनते. जब पर्रिकर ने मंत्रीमंडल बनाया तो अन्य दलों के नेताओं को भी उसमे एडजस्ट करना था. लिहाजा लोबो जैसे कई नेता जो मंत्री बनने का सपना संजोये बैठे थे, बीजेपी से नाराज़ हो गए. लोबो को मनाने के लिए पहले उन्हें विधानसभा का उपसभापति बनाया गया और बाद में मंत्री. अब लोबो अपनी पत्नी देलिलाह लोबो के लिए भी टिकट चाहते हैं. बीजेपी में रहते हुए शायद यह संभव नहीं हो इसलिय लोबो ने मन बना लिया है कि जो भी पार्टी उन्हें और उनकी पत्नी को टिकट देगी वह उस दल में शामिल हो जायेंगे. अगर बीजेपी या फिर कांग्रेस भी नहीं मानी तो तृणमूल कांग्रेस तो है ही.
कांग्रेस पार्टी पिछले कुछ चुनावों से बाप-बेटे, पूर्व मुख्यमंत्री प्रतापसिंह राणे और विश्वजीतराणे, को टिकट दे रही थी और दोनों जीत भी रहे थे. 2017 में भी दोनों चुनाव जीत कर आये पर जिसदिन विधानसभा सदस्यों को शपथ लेना था, विश्वजीत राणे बीजेपी में शामिल हो गए, विधानसभा से इस्तीफा दे दिया और मंत्री बन गए.
दक्षिण गोवा के बेनौलिम सीट से एनसीपी के इकलौते विधायक हैं पूर्व मुख्यमंत्री अलेमाओ चर्चिल. वह पार्टी से कहीं बड़े नेता है. उन्होंने एनसीपी से अपनी बेटी वलंका चर्चिल के लिए नवेलिम सीट से टिकट की मांग की है. वलंका गोवा की मशहूर चर्चिल ब्रदर्स फुटबाल टीम की सीईओ हैं. एनसीपी इस बार कांग्रेस के साथ चुनाव पूर्व समझौता करने जा रही है. चर्चिल को लग रहा है कि समझौते के तहत कांग्रेस एनसीपी को नवेलिम की सीट नहीं देगी, लिहाजा वह अपने बेटी के साथ तृणमूल कांग्रेस के शामिल होने को तैयार बैठे हैं.
गोवा फॉरवर्ड पार्टी भी कांग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने वाली है. गोवा फॉरवर्ड पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष और पूर्व विधायक किरण कन्दोलकर को भी ना सिर्फ अपने लिए बल्कि अपनी पत्नी कविता कन्दोलकर के लिए भी टिकट चाहिए, जिसकी सम्भावना बनती नहीं दिख रही थी. लिहाजा कल उन्होंने अपनी पत्नी के साथ गोवा फॉरवर्ड पार्टी से इस्तीफा दे दिया. अभी कन्दोलकर सम्पति ने यह घोषणा नहीं की है कि वह किस पार्टी में शामिल होने वाले हैं. सम्भावना यही है कि मियां-बीवी तृणमूल कांग्रेस का रुख करने वाले हैं.
अब मनोहर पर्रिकर के बेटे ने भी धमकी
और सब से दिलचस्प है उत्पल पर्रिकर का किस्सा. मनोहर पर्रिकर के बड़े बेटे हैं. पिता की 2019 में मृत्यु के बाद वह पिता की पणजी सीट से उपचुनाव लड़ना चाहते थे, पर बीजेपी ने परिवारवाद को बढ़ावा नहीं देने के नाम पर उत्पल पर्रिकर को टिकट नहीं दिया. उत्पल पर्रिकर ने पिछले वृहस्पतिवार को घोषणा की कि वह आगामी विधानसभा चुनाव पणजी से लड़ना चाहते हैं और बीजेपी से इसके लिए आवेदन भी किया है. अगर बीजेपी नहीं मानी तो उन्होंने कोई कठोर फैसला लेने की बात की है. बीजेपी की समस्या है कि 2019 के उपचुनाव में पणजी से बीजेपी को हरा कर चुने गए कांग्रेस के विधायक एंटानासियो मोनसेरातो बाद में अपनी पत्नी जेनिफर मोनसेरातो के साथ बीजेपी में शामिल हो गए. जेनिफर पणजी के साथ वाले तलेगांव से कांग्रेस की विधायक थीं. बीजेपी के पास फ़िलहाल एक मियां-बीवी की जोड़ी हैं और अगर पणजी से उत्पल पर्रिकर को टिकट दिया तो मोनसेरातो दंपती बीजेपी छोड़ देंगे.
गोवा में इन दिनों अफरातफरी की स्थिति बनी हुयी हैं, कौन सा नेता किस दल में जाएगा यह चर्चा का विषय बना हुआ है. इस बात की सम्भावना गोवा में हमेशा ही बनी रहती है कि चुनाव के बाद विधायक दल बदल लेंगे. इस दल बदल के मौसम में इतना तय है कि भले ही गोवा में तृणमूल कांग्रेस नयी पार्टी हो, उसके पास उम्मीदवारों की कमी नहीं होगी. दूसरे दलों से भागकर लोग तृणमूल कांग्रेस का रुख करेंगे क्योकि तृणमूल कांग्रेस को परिवार वाद से परहेज नहीं है.