फिर रावत ने कहा कि पंजाब चुनाव में कांग्रेस पार्टी का चेहरा प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू होंगे जिस पर कांग्रेस पार्टी को सफाई देनी पड़ी कि अगला चुनाव सिद्धू और प्रदेश के नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी दोनों के साझा नेतृत्व में लड़ा जाएगा. अभी तक रावत पंजाब के साथ-साथ होने वाले उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री पद की दावेदारी की जोड़ तोड़ में लगे हुए थे, पर अब अचानक उनका सुर बदल गया है. पंजाब से लौट कर रावत ने घोषणा की कि समय आ गया है जब कांग्रेस पार्टी उत्तराखंड चुनाव में किसी दलित नेता को मुख्यमंत्री का दावेदार घोषित करे. रावत ने यह भी कहा है कि अगर पार्टी का दबाब ना हो तो वह विधानसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं है.
गहलोत के सिर पर लटकी है आलाकमान की तलवार
उनके बदले सुर का मतलब साफ़ है, रावत अपनी फजीहत से बचना चाहते हैं. अमरिंदर सिंह की ही तरह रावत भी अपने प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के सबसे कद्दावर नेता हैं. पर अमरिंदर सिंह की छुट्टी के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि कांग्रेस आलाकमान नए नेताओं को सामने लाना चाहती है. इसी क्रम में तीसरा नाम है राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का. अमरिंदर सिंह और रावत में मुकाबले गहलोत अभी भी युवा हैं, वह मात्र 70 वर्ष के ही हैं. गहलोत के सिर पर लगभग डेढ़ साल से जो तलवार लटकी हुई थी अब उसमें चमक और धार दिखने लगी है. इसमें कोई ताज्जुब नहीं होना चाहिए अगर अब उनका सिर कलम हो जाए.
खबर है कि राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट को पिछले हफ्ते दिल्ली दरबार में हाज़िर होने को कहा गया है. शुक्रवार को पायलट के साथ कांग्रेस पार्टी के बेताज बादशाह राहुल गांधी की लम्बी बैठक हुई. पायलट पिछले डेढ़ वर्षों से गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोल कर बैठे हैं. उनकी शिकायत है कि उनके तथा उनके समर्थक विधायकों के साथ गहलोत भेदभाव कर रहे हैं. पायलट ने पिछले वर्ष बगावत कर दिया था पर उन्हें समझा बुझा कर वापस जयपुर भेज दिया गया था, यह कह कर कि उनके साथ न्याय होगा.
पिछले डेढ़ वर्षों से पार्टी आलाकमान इस कोशिश में लगी थी कि गहलोत पायलट के कुछ समर्थकों को अपने मंत्रीमंडल में शामिल करें. कम से कम आधा दर्ज़न कांग्रेस के बड़े नेता जयपुर का चक्कर लगा चुके हैं. सभी राहुल गांधी का सन्देश ले कर गहलोत से मिले. पर गहलोत ने राहुल गांधी को अनसुना कर दिया. अमरिंदर सिंह और गहलोत उन नेताओं में हैं जो राहुल गांधी को अपना नेता मानने को तैयार नहीं थे. होते भी कैसे जबकि दोनों ने राहुल गांधी को हाफ पैंट पहन कर खेलते देखा होगा. उनकी नज़रों में राहुल गांधी आज का बच्चा था और वह सिर्फ सोनिया गांधी से ही मिलते और बात करते थे. पर अब गहलोत नर्वस और परेशान दिखने लगे हैं, जो स्वाभाविक है, क्योंकि अब उनकी बारी है बोरिया बिस्तर बांधने की.
बुजुर्ग नेताओं को साफ करने पर तुले हुए हैं राहुल गांधी
राहुल गांधी का बुजुर्ग नेताओं से नाखुश होने का ठोस कारण है. 2017 में वह बकायदा कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए थे और 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया. कारण था कि बुजुर्ग नेता उनकी सुनते नहीं थे और राहुल गांधी की चलने नहीं देते थे. फलस्वरूप हतास हो कर राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. पर दो बड़े बुजुर्ग नेता, अहमद पटेल और मोतीलाल वोरा के निधन के बाद बुजुर्ग नेताओं की पकड़ पार्टी पर अब ढीली पड़ने लगी है. सोनिया गांधी पिछले दो वर्षों से अंतरिम अध्यक्ष हैं और उनके नाम पर सारे फैसले अब राहुल गांधी ही लेते हैं. राहुल गांधी ने ठान ली है कि जबतक बुजुर्ग नेता पार्टी पर एक नाग की तरह कुंडली मार कर बैठे रहेंगे, पार्टी का कल्याण नहीं हो सकता है. लिहाजा ऑपरेशन पंजाब से शुरू हुआ. पहले अमरिंदर सिंह के चहीते सुनील जाखड़ को हटा कर सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष पद की कुर्सी दी गयी और फिर अमरिंदर सिंह को हटा कर सिद्धू और राहुल गांधी के करीबी चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया गया.
कांग्रेस पार्टी में चर्चा गर्म है कि राजस्थान के बारे में फैसला जल्द ही लिया जा सकता है. गहलोत को शीघ्र ही नोटिस मिल जाएगा और उन्हें अवसर दिया जाएगा कि या तो वह पायलट समर्थकों को मंत्रीमंडल में शामिल करें और अगले वर्ष पांच राज्यों के चुनाव संपन्न होने के बाद मार्च-अप्रैल में स्वयं इस्तीफा दे दें या फिर अमरिंदर सिंह की तरह ही बेइज्जती के लिए तैयार हो जाएं. फिलहाल कांग्रेस आलाकमान इन दिनों पंजाब में रायता फ़ैलाने के बाद शिमला में है.
सोनिया गांधी और राहुल गांधी प्रियंका गांधी के हॉलिडे होम में छुट्टी मना रहे हैं. इस बात की जानकारी अभी नहीं है कि वह वापस कब लौटेंगे. उम्मीद यही की जा रही है कि मां-बेटे के बीच पार्टी की दशा और दिशा पर भी चर्चा हो रही होगी. चूंकि दिल्ली में दोनों अलग-अलग बंगले में रहते हैं, साथ रहने का फायदा होगा की दोनों खुल कर और विस्तार से बात करेंगे. उनके लौटने के बाद राजस्थान के बारे में कोई फैसला लिया जा सकता है. और तब तक गहलोत की सांस हलक में अटकी रहेगी.