सेना, अंतरराष्ट्रीय विवाद-2

रूस की यूक्रेन पर सैन्य कार्रवाई के बाद भारत ने अपने नागरिकों को वहां से सुरक्षित निकालने के लिए कार्रवाई शुरू कर दी है

Update: 2022-02-25 19:05 GMT

रूस की यूक्रेन पर सैन्य कार्रवाई के बाद भारत ने अपने नागरिकों को वहां से सुरक्षित निकालने के लिए कार्रवाई शुरू कर दी है। अमेरिका का मानना है कि रूस का यूक्रेन पर सैन्य कार्रवाई करना पहले से ही निश्चित था। अगर पिछले कुछ हफ्तों से चल रही गतिविधियों का आकलन करें तो इसका आभास तभी हो गया था जब रूस ने यूक्रेन के साथ लगने वाली 450 किलोमीटर की अंतरराष्ट्रीय सीमा पर करीब डेढ़ लाख सैनिक तथा काला सागर में खतरनाक मिसाइलों से लैस युद्धपोत तैनात करके यूक्रेन को चारों तरफ से घेर लिया था । इसका मुख्य कारण यह भी है कि रूस कभी भी नाटो देशों का प्रभाव यूक्रेन में नहीं चाहेगा क्योंकि इसकी बहुत सारी रणनीतिक, राजनीतिक तथा सामरिक वजह है। रूसी क्रांति के नायक ब्लादिमीर लेनिन ने एक बार कहा था कि 'यूक्रेन को खोना रूस के लिए एक शरीर से अपना सिर काट देने जैसा होगा।' यही वजह है कि रूस नाटो में यूक्रेन के प्रवेश का विरोध कर रहा है। यूक्रेन रूस की पश्चिमी सीमा पर स्थित है। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब रूस पर हमला हुआ था तो यूक्रेन एकमात्र ऐसा क्षेत्र था जहां से रूस ने अपनी सीमा की रक्षा की थी। अगर यूक्रेन नाटो देशों के साथ चला गया तो रूस की राजधानी मास्को, पश्चिम से सिर्फ 640 किलोमीटर दूर हो जाएगी जो अभी लगभग 1600 किलोमीटर है। रूस और यूक्रेन के रिश्ते को समझना बहुत मुश्किल है। यूक्रेन के लोग स्वतंत्र रहना चाहते हैं, लेकिन पूर्वी यूक्रेन के लोगों की मांग है कि यूक्रेन को रूस के प्रति वफादार रहना चाहिए।

यूक्रेन के राजनीतिक नेता भी दो गुटों में बंटे हुए हैं। एक दल खुले तौर पर रूस का समर्थन करता है और दूसरा दल पश्चिमी देशों का समर्थन करता है। यही वजह है कि रूस ने उसका समर्थन करने वाले क्षेत्रों को पहले स्वतंत्र देश घोषित किया और फिर वहां पर अपना सैन्य बेस बनाकर युद्ध की कार्रवाई को अंजाम दिया। रूस-यूक्रेन संघर्ष में दुनिया के देश दो गुटों में बंटते हुए नजर आ रहे हैं। एक तरफ रूस और चीन तो दूसरी तरफ यूक्रेन को अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य नाटो देशों का समर्थन मिलने का अंदेशा है। रूस और यूक्रेन के संघर्ष का असर कच्चे तेल की कीमतों पर भी देखने को मिल रहा है। रूस यूरोप में नेचुरल गैस का करीब एक-तिहाई प्रोडक्शन करता है और वैश्विक तेल उत्पादन में रूस की हिस्सेदारी करीब 10 फीसदी है। इस युद्ध की वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमत 2014 के बाद पहली बार 100 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंच गई है। कच्चे तेल की कीमतों का बढ़ना पहले ही महंगाई से त्रस्त भारत की जनता के लिए एक बुरी खबर होगी। इस युद्ध से भारत और यूक्रेन के बीच में चल रहे व्यापारिक रिश्तों तथा न्यूक्लियर एनर्जी पर चल रहे काम पर भी असर पड़ेगा। आंकड़ों के अनुसार 2020 में भारत और यूक्रेन का करीब 2.69 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ था। भारत यूक्रेन और रूस दोनों से ही न्युक्लियर रियक्टर तथा बॉयलर खरीदता है जिसकी आपूर्ति न होने से भारत का न्युक्लियर एनर्जी कार्यक्रम भी धीमा हो सकता है। इसके अलावा इस युद्ध का असर हमारे चीन के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा पर चल रहे विवाद पर भी दिख सकता है, क्योंकि अभी अमेरिका का पूरा ध्यान रूस पर होगा तो कहीं चीन मौका पाकर एलएसी पर कुछ आक्रामक हरकत न करे, इसके लिए भारत को ज्यादा सचेत रहना होगा।
कर्नल (रि.) मनीष धीमान
स्वतंत्र लेखक
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