सेना, सरकार और आंतरिक सुरक्षा-1

बीते कुछ दिनों से प्रदेश, देश और विश्व में कुछ एक ऐसी घटनाएं घट रही हैं

Update: 2022-06-03 19:17 GMT

बीते कुछ दिनों से प्रदेश, देश और विश्व में कुछ एक ऐसी घटनाएं घट रही हैं जिनसे हर क्षेत्र की आंतरिक सुरक्षा पर चर्चा शुरू हो गई है। करीब एक महीना पहले हमारे अपने शांतिप्रिय प्रदेश हिमाचल के विधानसभा परिसर में जब खालीस्तान के झंडे लगे, उस वक्त प्रदेश की आंतरिक सुरक्षा के मद्देनजर सरकार ने चारों तरफ से दबाव पड़ने के बाद इस कुकृत्य को करने वालों को पकड़ कर सलाखों के पीछे डाल दिया तो यह मामला तो लगभग ठंडा पड़ गया, पर साथ में ही पुलिस भर्ती के लिए महीनों से मेहनत कर रहे अभ्यर्थियों को मुख्य परीक्षा का परिणाम आने के बाद यह पता चलना कि यह पेपर लीक हो चुका था और आनन-फानन में परीक्षा का रद्द हो जाना। अगर इसको भी मात्र परीक्षा से जोड़ने के अलावा बड़े संदर्भ में देखा जाए तो यह भी हमारी आंतरिक सुरक्षा का ही मामला है जिसमें सरकार को निश्चित तौर पर गंभीरता से संज्ञान लेना चाहिए तथा इस तरह की गतिविधियों में सम्मिलित लोगों को कानून के हिसाब से कठिन से कठिन सजा देनी चाहिए ताकि भविष्य में कोई इस तरह की हरकत न करे।

हमारे पड़ोसी राज्य पंजाब में एक प्रसिद्ध गायक का दिनदहाड़े कत्ल हो जाना तथा कश्मीर में 30 वर्ष पहले आंतकवादियों के डर से कश्मीर छोड़ चुके कश्मीरी पंडितों को रिहैबिलिटेशन की योजनानुसार सरकार द्वारा दोबारा कश्मीरी पंडितों को जो 5000 नौकरियां दी गई थी और उसके बाद जो पिछले कुछ दिनों में वहां पर माहौल बिगड़ा है और लोगों ने वहां से पलायन करना शुरू कर दिया है, यह निश्चित तौर पर बहुत ही गंभीर और संवेदनशील है। भारत जिसे बुद्ध और गांधी के देश के नाम से जाना जाता है। स्वामी विवेकानंद जी विश्व धर्म संसद में 'वसुधैव कुटुंबकम' की विचारधारा का नाम लेकर भारत का परिचय करवाते हैं, आज हमारे उस देश में इस तरह की घटनाएं निश्चित तौर पर एक चेतावनी है कि हमें समय रहते इन पर नियंत्रण करना पड़ेगा।
हर शाम को टीवी पर चल रहे वाद-विवाद में इस तरह की हर घटना को धर्म या राजनीति से जोड़ कर, राजनीतिक दलों के नेता एक-दूसरे पर ठीकरा फोड़ते हुए राजनीतिक फायदा लेने की होड़ में रहते हैं, पर मेरा मानना है कि राजनीतिक स्वार्थ से ऊपर उठकर इन सब मुद्दों को गंभीरता से लेना चाहिए और अगर कोई राजनीतिक पार्टी इस तरह की गतिविधियों को हवा दे रही है या इनमें सम्मिलित होने की कोशिश कर रही है तो उसको भी इसमें संज्ञान लेने की जरूरत है। मेरा मानना है कि राजनीतिक दल और पार्टियां तो आती-जाती रहती हैं, पर राष्ट्र और आंतरिक सुरक्षा को मजबूत करना हमारा मौलिक कर्त्तव्य ही नहीं, बल्कि धर्म है और इसमें किसी भी तरह का कहीं भी कंप्रोमाइज नहीं होना चाहिए। देश के विभिन्न मुद्दों जैसे महंगाई, बेरोजगारी आदि से आज पूरा देश त्रस्त है तो कहीं राजनीतिक पार्टियां ही इन मुख्य बिंदुओं से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए अगर इस तरह की गतिविधियों में सम्मिलित हैं तो उनको भी इसके बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए। अगर आप सदियों से इतिहास को देखें तो समय-समय पर सत्तासीन लोग अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए लोगों की भावनाओं को उजागर करने के लिए इस तरह के मुद्दों को चर्चा में ले आते हैं जिससे मुख्य या मूलभूत जरूरतों से जनता का ध्यान भटक जाता है।
कर्नल (रि.) मनीष
स्वतंत्र लेखक

सोर्स- divyahimachal


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