घर-घर की कहानी है रंगभेद: रंग के आधार पर गोरे हमें अपने से कमतर मानते हैं, लेकिन हम उन्हेंं रंग के कारण अच्छा मानते हैं

रंगभेद तो घर-घर में है, इससे जल्दी छुटकारे की उम्मीद नजर नहीं आती

Update: 2021-03-27 12:30 GMT

हाल में प्रिंस चार्ल्स के छोटे बेटे प्रिंस हैरी की पत्नी मेगन मर्केल ब्रिटेन के शाही परिवार के बारे में बयान देकर काफी चर्चा में रहीं। उनका कहना था कि उनके बेटे का रंग कैसा होगा, इस पर भी शाही परिवार में चर्चा की जाती थी। दरअसल वह शाही परिवार के रंगभेदी विचारों की ओर संकेत कर रही थीं। शाही परिवार के बारे में मेगन की सास डायना ने भी एक बार बताया था कि चूंकि वह किसी राजपरिवार से ताल्लुक नहीं रखती थीं, इसलिए उन्हेंं इसका अहसास बार-बार कराया जाता था। डायना ने प्रिंस चाल्र्स से शादी की थी, लेकिन वह कभी खुश नहीं रहीं।

पश्चिमी देशों में त्वचा का सफेद रंग आज भी श्रेष्ठता का प्रतीक है
पश्चिमी देश जहां गोरेपन का आधिपत्य है, वहां त्वचा का सफेद रंग आज भी श्रेष्ठता का प्रतीक है। हो सकता है कि वहां के लोग अपनी भावनाओं को खुलेआम प्रकट न करते हों, लेकिन रह-रहकर ये बातें निकल ही आती हैं। इसका प्रमाण है आक्सफोर्ड विवि में भारतीय छात्रा रश्मि सामंत के साथ हुआ व्यवहार। ब्रिटेन जैसे पश्चिमी देशों ने जहां-जहां राज किया, वहां भी हम इसे देख सकते हैं जैसे कि भारत। शासक चूंकि गोरे थे इसलिए यहां भी किसी काले या सांवले को गोरे के मुकाबले कमतर समझा जाता है। शादी में किसी को भी सांवली बहू नहीं चाहिए। अखबारों में छपने वाले वैवाहिक विज्ञापनों पर अगर नजर डालें तो अधिकांश मामलों में बहू गोरी ही चाहिए। पिछले दिनों एक लड़के ने अदालत में अर्जी लगाई थी कि वह अपनी काली पत्नी के साथ नहीं रहना चाहता, क्योंकि जब वह उसे किसी समारोह में अपने साथ ले जाता है तो उसके दोस्त उसका मजाक उड़ाते हैं। भले उसे जेल जाना पड़े, मगर वह अपनी काली पत्नी के साथ नहीं रहेगा। उसका यह भी कहना था कि इस लड़की से उसकी शादी जबरन करा दी गई थी। इसी तरह अहमदाबाद में एक महिला ने पुलिस से शिकायत की कि काली होने क कारण उसका पति और ससुराल वाले उसे ताने देते हैं
आखिर सांवले रंग के कारण लड़कियों को क्यों अपमानित होना चाहिए?

जरा सोचिए कि आखिर सांवले रंग के कारण लड़कियों को क्यों अपमानित होना चाहिए? प्रकृति प्रदत्त रंग में उनका क्या कसूर? हंसी उड़ाने वाले किसी मुसीबत में शायद ही वक्त पर काम आएं। इसके अलावा ऐसे लोगों को यह नहीं पता कि यह पुराना जमाना नहीं है कि आप कोई बहाना बनाकर पत्नी को ठुकरा देंगे और बच जाएंगे। किसी महिला कानून के चक्कर में फंसेंगे तो सचमुच जेल जाना पड़ेगा। आखिर अदालत रंग के आधार पर किसी को पत्नी से निजात पाने का अधिकार कैसे दे सकती है? यह भी देखने में आया है कि सांवले रंग के कारण सिर्फ लड़कियों को ही नहीं, लड़कों को भी उपेक्षा झेलनी पड़ती है। वर्षों पहले गांव की एक लड़की ने अपने पति पर मात्र इस कारण मिट्टी का तेल छिड़क दिया था कि वह काला है। एक दिन किसी ने एक फोटो फेसबुक पर डाला, जिसमें लड़का एकदम आबनूसी रंग का था और लड़की गोरी थी। कमेंट लिखने वालों ने लिखा-जरूर इसने पिछले जन्म में मोती दान किए होंगे।
काला रंग गोरा हो जाए, इसके लिए अनगिनत प्रसाधन बाजार में मौजूद
काला रंग गोरा हो जाए, इसके लिए अनगिनत प्रसाधन बाजार में मौजूद हैं। गोरेपन की क्रीम्स की बाजार में भारी मांग है। दक्षिण भारत में न केवल लड़कियां, बल्कि लड़के बड़ी संख्या में इन क्रीम्स को खरीदते हैं। हालांकि त्वचा विशेषज्ञों की मानें तो कोई क्रीम त्वचा के रंग को नहीं बदल सकती। पहले तो बड़े-बड़े अभिनेता-अभिनेत्रियां ऐसी क्रीम्स का विज्ञापन करते थे और युवाओं को यह कहकर लुभाते थे कि उनके गोरेपन का राज अमुक क्रीम है। जब इस तरह की रंगभेदी बातों की आलोचना होने लगी तो ऐसे विज्ञापन दिखाई देने बंद हो गए। पिछले दिनों ऐसी एक मशहूर क्रीम ने अपने ब्रांड के आगे से फेयर शब्द हटा भी दिया था।

गोरा माने सुंदर और सांवला माने बदसूरत

चाहे अभिनेता-अभिनेत्रियां गोरेपन की क्रीम्स का विज्ञापन न करें, चाहे हम यह कहें कि रंग तो भगवान का दिया होता है, लेकिन सच यही है कि गोरा होना आज भी श्रेष्ठता का प्रतीक है। गोरा माने सुंदर और सांवला माने बदसूरत। अरसे से चली आ रही इस परिभाषा में आज तक शायद ही कोई बदलाव हुआ है। चिंताजनक बात यह है कि बच्चों और किशोरों में भी यह बात घर करती जा रही है कि सांवला या काला होना बुरी बात है। पिछले दिनों नोएडा से ऐसी ही एक खबर आई थी। एक किशोर अपने सांवले रंग से परेशान था। उसे लगता था कि उसके रंग के कारण सब उसका मजाक उड़ाते हैं। उसने बहुमंजिला इमारत से कूदकर आत्महत्या कर ली। कुछ भी हो जाए, मगर हम हैं कि बदलते ही नहीं। हमारी सोच जस का तस रहती है।
पश्चिमी देशों में बसे भारतीय लोगों को ब्राउन कहा जाता है

पश्चिमी देशों में बसे भारतीय लोगों को ब्राउन कहा जाता है यानी रंग के आधार पर गोरे हमें हर हाल में अपने से कमतर मानते हैं, लेकिन हम उन्हेंं सिर्फ उनके रंग के कारण अपने से अच्छा मानते रहते हैं। कहने को हम बड़े गर्व से कहते हैं कि हमारे तो भगवान जैसे कि राम, कृष्ण आदि सभी सांवले हैं, लेकिन जीवन में हम इसे नहीं उतारते। फिल्मी दुनिया के हीरो- हीरोइन की चाल-ढाल, कपड़े, बाल, पहनावा, सौंदर्य प्रसाधन आदि की नकल करने को हमारे युवा आतुर दिखाई पड़ते हैं, लेकिन आखिर वहां कितनी ऐसी अभिनेत्रियां हैं जो सांवली हैं, नंदिता दास और बिपाशा बसु को छोड़कर। इन्हें फिल्मों में सफलता भी कोई खास नहीं मिली। इसी तरह सांवले हीरो भी गिने-चुने ही हैं।

रंगभेद तो घर-घर में है, इससे जल्दी छुटकारे की उम्मीद नजर नहीं आती

मेगन मर्केल ने जब ओफ्रा विनफ्रे को इंटरव्यू दिया तो वह जानती रही होंगी कि उनकी बातचीत को विश्वभर में चर्चा मिलेगी, खासकर तब जब बात राज परिवार के बारे में हो, लेकिन सिर्फ राजपरिवार ही क्यों, रंगभेद तो घर-घर में जारी है। इससे जल्दी छुटकारे की कई उम्मीद भी नजर नहीं आती।


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