By: divyahimachal
पर्यटन के रास्तों पर खलल डालता ट्रैफिक जाम और अपनी सूरत निहारती हिमाचल की सैलानी बस्तियां। इसके अनेक कारण हो सकते हैं, लेकिन अधोसंरचना से पर्यटन प्रबंधन तक अगर कुछ सीख लें, तो सडक़ों पर वाहनों की कतार जाम में नहीं फंसेगी। टै्रफिक जाम की सूचना में पर्यटक सीजन की मांग फिर परिलक्षित करती है कि इस भीड़ को किस हद तक अपनाएं या सारे काफिलों को मंजिल कैसे दिखाएं। सप्ताहांत पर्यटन को ढोते वाहन इतनी शुमारी में डेस्टिनेशन पर्यटन को भर देते हैं कि सुकून ढूंढता सैलानी क्यों ऐसी खुमारी में खुद को परेशान करे। अटल टनल हो या अन्य मंजिलें वाहनों की गिनती में होता इजाफा बता रहा है कि सिरदर्द बढ़ता जाएगा। इसमें पर्यटक सीजन की औपचारिकताएं भी दोषी हैं। हर बार फर्ज अदायगी के लिए टै्रफिक प्लान माथा पीटती है, लेकिन कार्यान्वयन की सुस्ती और अनुशासन हीनता में डूबी व्यवस्था के लिए टै्रफिक सिर्फ एक आफत है-समाधान नहीं। किसी भी पर्यटक स्थल को मालूम नहीं कि वह जा किधर रहा और उसकी क्षमता में सीजन का दस्तूर क्या होना चाहिए। ग्रीन टैक्स को इक्का-दुक्का प्रयास भी असफल हैं, तो इसलिए कि सबसे चर्चित पर्यटक स्थल केवल बाजार बन गए या सारी घाटियों में कंक्रीट के जंगल उग आए। आखिर पर्यटक स्थल या पर्यटक सीजन है किसका। क्या यह प्रशासनिक दुरुस्ती से सही होगा या टीसीपी कानून के तहत योजनाओं ने सोचा ही नहीं कि पर्यटक या धार्मिक स्थलों को सैलानियों के सैलाब से कैसे उभारा जाए। अमूमन पर्यटक शहरों को जाती-आती सडक़ों पर हम वाहनों की गिनती करके अंदाजा लगा रहे हैं कि सीजन कैसे गुजरेगा, मगर सैलानियों के सुकून के लिए यह सफर सुखद नहीं। सोचने वाली बात यह नहीं कि ट्रैफिक जाम में कौन फंसा, बल्कि यह है कि पर्यटक सीजन की मारामारी में हिमाचल के अपने नागरिक भी कहीं फंस जरूर रहे हैं।
अगर हिमाचल को पर्यटक राज्य बनना है, तो सर्वप्रथम यातायात के आदर्श बनाने होंगे। राज्य में पर्यटक आगमन सबसे अधिक निजी वाहनों से इसलिए होने लगा क्योंकि हिमाचल के भीतर टैक्सी सेवाएं सारे देश से महंगी हैं। दूसरी ओर पर्यटक शहरों के स्थानीय निकायों ने भी स्थानीय तौर पर साइट सीइंग प्रोग्राम नहीं बनाए। धर्मशाला व शिमला की स्मार्ट सिटी परियोजनाओं के तहत 35 इलेक्ट्रिक बसें तो खरीद लीं, लेकिन इनका संचालन रूटीन में हो रहा है, जबकि कुछ बसों को टूरिस्ट बस सेवाओं के तहत पर्यटक रूटों पर चलाना चाहिए। इतना ही नहीं धार्मिक व पर्यटक स्थलों से दस या पंद्रह किलोमीटर पहले महापार्किंग की व्यवस्था करके सारे निजी वाहनों को रोक देना चाहिए जबकि आगे का सफर पर्यटक वाहनों, रज्जु मार्गों या भौगोलिक परिस्थिति के अनुरूप नए मोड यानी सुरंगों या इसी तरह की अधोसंरचना निर्माण से भी संभव हो सकता है। हिमाचल के न केवल धार्मिक व पर्यटक शहर, बल्कि हर नगर में कम से कम चार मैदान विकसित करके हम पर्यटन की गतिविधियों, व्यापारिक मेलों तथा पार्किंग के लिए इनका समय-समय पर इस्तेमाल कर सकते हैं। इतना ही नहीं प्रदेश के प्रवेश द्वारों पर पर्यटन पंजीकरण की पद्धति में सीजन का प्रबंधन आवश्यक है। एक ऐप के जरिए हर पर्यटक वाहन को आवश्यक जानकारियां व निर्देश देते हुए, हम बता सकते हैं कि इस वक्त कहां-कहां टै्रफिक जाम हैं और विकल्प में क्या चुन सकते हैं। इसी तरह पर्यटक स्थलों के बारे में भी जानकारी देते हुए उनकी मंजिल बदली जा सकती है।
आज अगर हम भीड़ में पर्यटन देख रहे हैं, तो कल यही नैराश्य भाव में डूब कर हिमाचल के अनुभव को नकारात्मक बना सकता है। हिमाचल को वे साइड पर्यटन सुविधाओं में इजाफा करते हुए हर पंद्रह-बीस किलोमीटर के बाद हाईवे ठहराव, सुविधाएं तथा मनोरंजन की गतिविधियां जोड़ देनी चाहिएं ताकि टै्रफिक प्रबंधन को राहत मिले। प्रदेश में फोरलेन परियोजना के साथ तीन थानों के तहत पर्यटन को भी अहमियत देने की योजना बनी है, लेकिन अब ट्रैफिक जाम तथा पर्यटन व्यवहार को सरल व सुविधाजनक बनाए रखने के लिए पर्यटन पुलिस के अलग खाके में ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम सुदृढ़ करना पड़ेगा।