चुनौतियों के बीच

श्रीलंका के नए राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने दिनेश गुणवर्धने को प्रधानमंत्री नियुक्त किया है। सत्रह नए मंत्री भी बनाए गए हैं। माना जाना चाहिए कि अब वहां राजनीतिक अस्थिरता का दौर तो खत्म होगा।

Update: 2022-07-23 05:31 GMT

Written by जनसत्ता: श्रीलंका के नए राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने दिनेश गुणवर्धने को प्रधानमंत्री नियुक्त किया है। सत्रह नए मंत्री भी बनाए गए हैं। माना जाना चाहिए कि अब वहां राजनीतिक अस्थिरता का दौर तो खत्म होगा। सत्ता में यह बदलाव ऐसे कठिन वक्त में हुआ है जब देश आर्थिक कंगाली से जूझ रहा है। साथ ही देश में भयानक अशांति का माहौल है। इसलिए हालात से निपटने के लिए फिर से आपातकाल लगा दिया गया है।

गौरतलब है कि पिछले तीन महीने में सरकार को चौथी बार आपातकाल का सहारा लेना पड़ा है। नई सरकार के सामने पहली बड़ी चुनौती यह है कि वह खाने-पीने के सामान और ईंधन आपूर्ति को सामान्य बनाने के लिए काम करे। देश को आर्थिक संकट से उबारने के उपायों पर बिना समय गंवाए काम शुरू करे। अभी विदेशी मुद्रा भंडार खाली पड़ा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से मदद हासिल करनी है।

पर्यटन सहित देश के सभी कारोबारी क्षेत्रों को फिर से खड़ा करना है। मौजूदा हालात में रानिल विक्रमसिंघे के लिए यह सब आसान उतना नहीं होगा। वैसे वे काफी मंजे हुए नेता हैं। छह बार प्रधानमंत्री रह चुके हैं। और सबसे बड़ी बात यह कि महिंदा राजपक्षे को हटाने के बाद गोटबाया राजपक्षे ने उन्हें ही प्रधानमंत्री बनाया था।

ऐसे में देखने की बात यह है कि अब वे श्रीलंकाई जनता के मन में अपने और अपनी सरकार को लेकर कितना भरोसा पैदा कर पाते हैं? अभी तो हालात ये हैं कि श्रीलंका की जनता राजपक्षे खानदान से जुड़े किसी भी व्यक्ति और उसके समर्थक नेता को सत्ता में नहीं देखना चाहती। पर रानिल विक्रमसिंघे राजपक्षे परिवार के करीबी हैं, इसीलिए लोग उनके भी खिलाफ हैं।

उन्हें जब कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाया गया था, तभी से उनका घोर विरोध शुरू हो गया था। इसे लेकर भी अभी भी उग्र प्रदर्शन कर रहे हैं। रानिल विक्रमसिंघे की नई सरकार में फिर से उन्हीं नेताओं की भरमार दिख रही है जो गोटबाया राजपक्षे की सरकार में थे।

मसलन, अब प्रधानमंत्री बनाए गए दिनेश गुणवर्धने को गोटबाया राजपक्षे ने अप्रैल में देश का गृहमंत्री बनाया था। गोटाबाया सरकार में वित्त मंत्री रहे अली साबरी को विदेश मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई है। ज्यादातर मंत्रियों को उनके पुराने मंत्रालय ही सौंपे गए हैं। बस, वित्त मंत्रालय विक्रमसिंघे ने अपने पास रखा है।

कुल मिला कर देखा जाए तो यह सरकार कमोबेश वही है जो गोटाबाया राजपक्षे और महिंदा राजपक्षे के नेतृत्व में चल रही थी। ऐसे में लोग कैसे यह भरोसा कर पाएंगे कि सत्ता की बागडोर अब ईमानदार हाथों में गई है?

अब यह कोई छिपी बात नहीं रह गई है कि राजपक्षे परिवार ने देश के खजाने को कैसे खाली कर डाला और लोगों को भूखों मरने छोड़ दिया। जैसे कि आरोप लगाए गए हैं कि राजपक्षे भाइयों ने हजारों करोड़ रुपए हड़प कर बाहर भेज दिए और देश को भारी कर्ज में डुबो दिया। गोटबाया तो देश छोड़ कर भाग गए। सवाल है कि नई सरकार के गठन से लोग खुश कैसे और क्यों होंगे? उन्हें लग रहा है जो लोग पिछली भ्रष्ट सरकार में शामिल थे, वही लोग फिर से सत्ता में आ बैठे।

देखा जाए तो लोगों के भीतर ऐसा संदेह और भय पैदा होना स्वाभाविक ही है। राजपक्षे परिवार पर लंबे समय तक भरोसा करके जनता हाथ जला चुकी है। नई सरकार को चाहिए कि वह राजपक्षे परिवार के उन सभी लोगों के खिलाफ जिन पर सरकारी खजाना खाली करने का आरोप है, जांच आयोग बैठाए और जांच में दोषी पाए जाने वालों पर कानून के मुताबिक कार्रवाई करे। तभी जनता का भरोसा जीता जा सकेगा।


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