पुतिन के आगे सब लाचार?
रूस की ताजा कार्रवाई से अमेरिका किंकर्त्तव्यविमूढ़ है
By NI Desk
रूस की ताजा कार्रवाई से अमेरिका किंकर्त्तव्यविमूढ़ है। उसके सामने करो या मरो की स्थिति है। अगर उसने प्रभावी ताकत नहीं दिखाई, तो उसकी साख को ऐसा बट्टा लगेगा, जिससे एक-ध्रुवीय दुनिया के अंत की पुष्टि हो जाएगी। जबकि ताकत दिखाने में परमाणु और विश्व युद्ध का खतरा है।
शीत युद्ध के बाद की दुनिया में ऐसी स्थिति कभी पैदा नहीं हुई। सोवियत संघ के बिखराव के बाद बनी एक-ध्रुवीय दुनिया में अमेरिका अंतरराष्ट्रीय मामलों में प्रमुख निर्णयकर्ता रहा है। उसकी ये हैसियत इस हद तक बढ़ी कि 2001 में 11 सितंबर को हुए आतंकवादी हमलों के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश जूनियर ने 'एकतरफा कार्रवाई' और 'खतरे का आभास होते ही हमला कर देने' की नीति घोषित कर दी। यह साफ तौर पर संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों का उल्लंघन था। लेकिन तब अमेरिका की सैनिक और आर्थिक ताकत ऐसी समझी जाती थी कि उसे चुनौती देने की हिम्मत किसी नहीं की। अब वही अमेरिका रूस के आगे किंकर्त्तव्यविमूढ़ की स्थिति में देख रहा है। रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन ने पहले कूटनीति और अब सैनिक कार्रवाई से ऐसी स्थिति पैदा कर दी है, जिसमें अपने साथी देशों के साथ अमेरिका फिलहाल बैकफुट पर नजर आ रहा है। यूक्रेन के दो अलगाववादी गणराज्यों को स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता देने के बाद पुतिन ने वहां सेना भेजने का एलान कर दिया है। इसके साथ ही उन्होंने यूक्रेन को 'नाजियों से मुक्त करने' और उसकी सैनिक क्षमता को निष्प्रभावी करने की घोषणा भी कर दी है।
नाजियों से मुक्त करने का मतलब यूक्रेन में सत्ता परिवर्तन माना गया है। अगर इस मकसद में रूस सफल रहा, तो फिर नाटो के विस्तार से लेकर सुरक्षा संबंधी तमाम दूसरे मामलों में वह शर्त तय करने की स्थिति में होगा। अमेरिका और उसके साथी यूरोपीय देश इसे तभी रोक सकते हैं, जब वे परमाणु और संभवतः तीसरे विश्व युद्ध का जोखिम मोल लेँ। रूस के ताजा कदमों ने यह साफ कर दिया है कि आर्थिक प्रतिबंध लगाने की पश्चिम की रणनीति का उस पर अब कोई असर नहीं है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि अमेरिका ने गुजरे दशकों में जिस थोक भाव से प्रतिबंध लगाए, उससे प्रतिबंधित देशों के बीच एक उद्देश्य की एकता कायम हो गई है। इसके जरिए वे अपनी समानांतर ताकत बना लेने में सफल रहे हैँ। इस परिघटना में चीन सबका सहारा बन कर उभरा है। इससे एक नई विश्व परिस्थिति उभरती दिख रही है। इसके बीच अमेरिका के सामने करो या मरो की स्थिति है। अगर उसने प्रभावी ताकत नहीं दिखाई, तो उसकी साख को ऐसा बट्टा लगेगा, जिससे एक-ध्रुवीय दुनिया के अंत की पुष्टि हो जाएगी। जबकि ताकत दिखाने में परमाणु और विश्व युद्ध का खतरा है।
नया इण्डिया के सौजन्य से लेख