मध्य प्रदेश में भाजपा के लिए खतरे की घंटी! विधानसभा चुनाव से 15 महीने पहले बढ़ गई शिवराज सिंह चौहान की चिंता
मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार को गिराने के बाद भाजपा भले ही हवा में उड़ रही हो, लेकिन उसका चुनावी गणित काम नहीं कर रहा है
By लोकमत समाचार सम्पादकीय |
मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार को गिराने के बाद भाजपा भले ही हवा में उड़ रही हो, लेकिन उसका चुनावी गणित काम नहीं कर रहा है. म.प्र. में स्थानीय निकाय चुनावों में पार्टी की शर्मनाक हार के बाद से भाजपा मुख्यालय में चेतावनी की घंटी बज रही है. परिणाम भले ही राष्ट्रीय सुर्खियों में नहीं आया लेकिन इसने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को झकझोर कर रख दिया है और वे अस्थिर स्थिति में हैं क्योंकि विधानसभा चुनाव मात्र 15 महीने दूर हैं.
मुरैना नगर निगम चुनाव में भाजपा को पहली बार हारने से झटका लगा है. इसी तरह, भाजपा 57 साल में पहली बार ग्वालियर मेयर का चुनाव भी हार गई. केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और राज्य के कई वरिष्ठ नेता इस क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं.
संयोग से, कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले और कमलनाथ सरकार को गिराने वाले कांग्रेस के 15 विधायक इसी क्षेत्र के हैं. जब सिंधिया 2020 में भाजपा में शामिल हुए तो पार्टी ने दावा किया था कि ग्वालियर-चंबल 'कांग्रेस-मुक्त' होगा. लेकिन परिणाम चौहान, सिंधिया और अन्य भाजपा नेताओं के लिए एक बड़े झटके के रूप में आए. ये केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के लिए भी चिंताजनक है जो मुरैना से लोकसभा सांसद हैं.
मराठा योद्धा की एक और हुंकार
मराठा योद्धा ने शक्तिशाली भाजपा के साथ एक और लड़ाई लड़ने का फैसला किया है. भले ही वह उम्रदराज हो गया हो लेकिन उसने हार मानने से इंकार कर दिया. एमवीए सरकार के पतन से परेशान हुए बिना 81 वर्षीय शरद पवार सत्तारूढ़ भाजपा के साथ एक और लड़ाई लड़ने के लिए कमर कस रहे हैं. उन्होंने अपने पार्टी कैडर से कहा है कि भाजपा के खिलाफ पूरे महाराष्ट्र में बड़ी रैलियां की जाएं, जो केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग और खरीद-फरोख्त के जरिए राज्यों में चुनी हुई सरकारों को गिरा रही है.
दिल्ली और महाराष्ट्र में कई बैठकों में पवार ने कहा है कि वे बड़े पैमाने पर राज्य का दौरा करेंगे और सीबीआई, ईडी और आयकर से डर नहीं सकते जिन्होंने देश में रेड-राज की शुरुआत की है. शरद पवार कांग्रेस नेतृत्व और उद्धव ठाकरे से भी भाजपा का मुकाबला करने के लिए इस संघर्ष में शामिल होने की बात कर रहे हैं.
पवार ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं से कहा, 'यह भाजपा से एकजुट होकर लड़ने का समय है.' कांग्रेस मोटे तौर पर सहमत है. शिंदे धड़े से डटकर मुकाबला कर रहे उद्धव ठाकरे संयुक्त लड़ाई के लिए तैयार हैं. योजना को अंतिम रूप दिया जा रहा है.
मार्गरेट का ऑफर
विपक्ष की उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को एनडीए के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ के हाथों संभावित हार को देखते हुए भी हंसी-मजाक का अवसर मिला. नामांकन दाखिल करते समय, विपक्षी नेताओं में से एक ने सुझाव दिया कि 15000 रुपए की जमानत राशि का बेहतर है कि नगद में भुगतान किया जाए. अल्वा ने अपना पर्स दिखाते हुए चुटकी लेते हुए कहा, ''मैं 15000 रुपए नगद लाई हूं.''
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने जवाब दिया, ''चिंता न करें... हम भरेंगे.'' प्रफुल्ल पटेल ने मजाक में कहा, ''खड़गेजी को पैसे भरने की अनुमति दें... अन्यथा चुनाव के बाद जमा राशि वापस लेने के लिए आपको एक बार फिर दिल्ली आना होगा.'' कमरे में जोरदार ठहाके लगे. कोई उम्मीदवार यदि 15 प्रतिशत से अधिक मत प्राप्त करता है तो उसको जमा राशि वापस मिल जाती है.
एफआईआर की रियायत
जब यूपी के पीडब्ल्यूडी मंत्री जितिन प्रसाद मुख्यमंत्री योगी द्वारा अपने ओएसडी को हटाने पर पार्टी आलाकमान से शिकायत करने के लिए दिल्ली पहुंचे तो शीर्ष पर किसी ने उन्हें एक जोरदार बात कही, ''आप भाजपा में नए हैं, योगी जैसे नेताओं के साथ रहना सीखिए. आपको पहली बार में ही पीडब्ल्यूडी जैसा महत्वपूर्ण विभाग दिया गया था. लेकिन ऐसा लगता है कि आपका ओएसडी भूल गया कि योगी शासन में भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस नीति है. बेचारे जितिन प्रसाद लखनऊ लौट आए.''
इस बारे में जब एक वरिष्ठ नेता ने सीएम से फोन पर संपर्क किया तो बताया जाता है कि योगी ने कहा, ''मैं उन्हें पहले ही एक रियायत दे चुका हूं. ओएसडी के खिलाफ कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है.'' मामला खत्म हो गया.
यह यूपी के कनिष्ठ मंत्री दिनेश खटीक के साथ किए गए व्यवहार के विपरीत था, जिन्होंने अपना त्यागपत्र अमित शाह को भेजा था, मुख्यमंत्री को नहीं. खटीक ने बाद में योगी से अपने वरिष्ठ मंत्री स्वतंत्र देव सिंह की उपस्थिति में मुलाकात की, जिनके साथ उनकी लड़ाई चल रही थी. मामला सुलझ गया. प्रसाद को यह देखना चाहिए कि उन्हें क्यों नहीं सुना गया! वफादारी मायने रखती है.
शांतिदायक आराम
निवर्तमान उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने अपने नए निवास के रूप में 5 सफदरजंग रोड के बजाय 1 त्यागराज मार्ग में स्थानांतरित होने का निर्णय लिया है. यह परिवर्तन इसलिए क्योंकि सफदरजंग रोड में बहुत शोर-शराबा है, जबकि त्यागराज मार्ग अपेक्षाकृत शांत है.