अल क़ायदा चाहता है कश्मीर की 'आज़ादी', क्या तालिबान पूरे करेगा उसके अरमान?

क्या तालिबान पूरे करेगा उसके अरमान?

Update: 2021-09-01 12:38 GMT

विष्णु शंकर।

मंगलवार को दो ख़ास बातें हुईं, पहली, क़तर की राजधानी दोहा में भारतीय राजदूत दीपक मित्तल (Deepak Mittal) शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकज़ई (Sher Mohammad Abbas Stanikzai) से मिले, जो तालिबान (Taliban) के पॉलिटिकल ऑफिस के मुखिया हैं. यह मीटिंग तालिबान के अनुरोध पर हुई. इस बातचीत में स्तानिकज़ई ने भारत को यकीन दिलाया कि तालिबान अफ़ग़ानिस्तान (Afghanistan) की ज़मीन को भारत के खिलाफ किसी मुहिम के लिए इस्तेमाल नहीं होने देगा.

तालिबान यह वादा 2020 में अमेरिका के साथ हुए दोहा समझौते में भी कर चुका है, कि वो अफ़ग़ानिस्तान से किसी और देश में आतंकवादी हमले नहीं होने देगा. दूसरी खास बात थी आतंकवादी संगठन अल क़ायदा की एक प्रेस रिलीज़ जिसमें उसने अफ़ग़ानिस्तान फ़तह करने के लिए तालिबान को बधाई दी और पूरे इस्लामी समाज को याद दिलाया कि अभी सीरिया, सोमालिया, यमन, कश्मीर और बाकी सभी इस्लामी मुल्कों को इस्लाम के दुश्मनों से छुड़ाने का काम बाकी है.
क्या तालिबान अल क़ायदा की ख्वाहिश पूरा करेगा
आज विचार करेंगे कि तालिबान और अल-क़ायदा जिनकी वैचारिक धुरी एक ही है, तो क्या तालिबान एक मुल्क की ज़िम्मेदार सरकार चलाते हुए अल क़ायदा की ख्वाहिश पूरा करेगा. ध्यान देने वाली बात यह है कि अल क़ायदा की ख्वाहिश चीन की सीमा के पहले ख़त्म हो जाती है. उसके बयान में शिनजियांग के वीगर मुसलमानों का ज़िक्र तक नहीं है, जो चीन के ज़ुल्म के साये में जीने को मजबूर हैं. इसका मतलब साफ़ है. अल क़ायदा जानता है कि अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान सरकार को चीन से निवेश और कूटनीतिक समर्थन दोनों की ज़रुरत होगी, इसलिए वह वीगर लोगों के बारे में इस्लाम के "उम्मा" को याद दिलाना नहीं चाहता.
आप को यह भी बताते चलें कि ये पहला मौका नहीं है जब अल क़ायदा ने बयान देकर कश्मीर को आज़ाद कराने की बात कही हो. जुलाई 2019 में अल क़ायदा के सबसे बड़े नेता अयमान अल ज़वाहिरी ने एक विडियो बयान जारी कर आगे कहा था कि इस ग्रुप के मेंबर्स को कश्मीर की सरकार और भारतीय सेना पर इतने वार करने चाहिए कि पूरे देश को दर्द हो और भारत की अर्थव्यवस्था बरबाद हो जाए. ज़वाहिरी के इस बयान का भारत या इसके बाहर कोई ख़ास असर नहीं हुआ ये अलग बात है.
तालिबान की जीत ने इस्लामी आतंकवादी संगठनों के इरादे बुलंद कर दिए हैं
लेकिन, अल-क़ायदा का कल का बयान साफ़ करता है कि अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की जीत ने इस्लामी आतंकवादी संगठनों के इरादे बुलंद कर दिए हैं. भारत में भी अल-क़ायदा के बयान को नोटिस किया गया है. वैसे भी अफ़ग़ानिस्तान के बदलते हालात पर भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की नज़र बनी हुई थी. चूक सिर्फ इतनी हुई कि बाकी देशों की तरह भारत को भी आशंका नहीं थी कि तालिबान इतनी तेज़ी से अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़ा कर लेंगे.
भारत की सुरक्षा एजेंसियां और सेना हालात पर लगातार नज़र रखे हुए है, और स्थिति की लगातार समीक्षा हो रही है. भारतीय सेना के Chief of Defence Staff यानि CDS जनरल बिपिन रावत ने साफ़ किया है कि परिस्थितियों के आकलन के अनुसार भारतीय सुरक्षा बल किसी भी चुनौती से निबटने के लिए तैयार हैं.
एक अंदाज़ के हिसाब से अमेरिका ने जो हथियार और सैनिक साज़ोसामान अफ़ग़ानिस्तान में छोड़े हैं, उनमें से लगभग 2 हज़ार बख्तरबंद गाड़ियां और हमवी, 40 जंगी जहाज़, जिनमें UH 60 ब्लैकहॉक अटैक हेलीकाप्टर शामिल हैं, और छोटे आकार वाले ScanEagle ड्रोन पाकिस्तान को मिल सकते हैं. अब ये बताने की ज़रूरत नहीं है कि ये सब हमारा पड़ोसी देश कहां इस्तेमाल करने की प्लैनिंग करेगा. एक सैनिक अधिकारी का कहना था कि यह अभी बस एक क़यास है, क्योंकि हालात साफ़ होने में कुछ वक़्त लगेगा.
भारत में आतंक फैलाने की कोशिशों में इज़ाफ़ा हो सकता है
जम्मू और कश्मीर में 2017 और 18 में पुलिस महानिदेशक की ज़िम्मेदारी संभाल चुके शेष पाल वैद का कहना है कि अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान राज आने के बाद भारत में आतंक फैलाने की कोशिशों में इज़ाफ़ा हो सकता है, क्योंकि पाकिस्तान की इंटेलिजेंस एजेंसी ISI पूरी कोशिश करेगी कि तालिबान अफ़ग़ानिस्तान में मौजूद आतंकवादियों में से कुछ को जम्मू और कश्मीर में सक्रिय होने को कहे.
DGP वैद ने आशंका ज़ाहिर की कि जैशे मोहम्मद और लश्करे तैबा अब अपने आतंकवादी ट्रेनिंग कैम्प पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से हटा कर अफ़ग़ानिस्तान के उन इलाकों में ले जाएंगे जहां किसी एजेंसी की नज़र नहीं हो. कई और सूत्रों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि ऐसे कई कैंप अफ़ग़ानिस्तान के कई प्रांतों में शुरू भी ही चुके हैं. DGP वैद ने चेताया कि अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान राज से जम्मू और कश्मीर ही नहीं बल्कि पूरे दक्षिण एशिया में आतंकवादी हरकतों में इज़ाफ़े का खतरा है और भारत को चीन, पाकिस्तान और तालिबान की तिकड़ी से ख़बरदार रहने की ज़रुरत है.
पिछली बार अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान सत्ता पर 1996 से 2001 के बीच काबिज़ हुए थे. वो वक़्त अलग था, तब संघर्ष की रणनीति अलग थी, और इस संघर्ष में इस्तेमाल होने वाली टेक्नोलॉजी भी अभी से काफी पीछे थी. अब अर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और रिमोट एक्टिवेटेड टेक्नोलॉजी का ज़माना है, बहुत काम अब या तो बटन दबाते हो जाते हैं या मशीन ख़ुद स्थिति को भांप कर, उसका आकलन कर फैसला ले कर जवाबी कार्रवाई कर देती है. अमेरिका ऐसी कई मशीनें अफ़ग़ानिस्तान में छोड़ गया है, इसलिए भारत को चौकस रहने की ज़रुरत है. इसके साथ साथ सीमा के इलाकों में ड्रोन का इस्तेमाल कर पाकिस्तान भारत को लगातार उकसाने की कोशिश कर रहा है. भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को अब इसका सटीक तोड़ जल्दी खोजना होगा. बाद बाकी बड़ी चुनौतियों के लिए तो भारतीय सेना तैयार ही है.
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