शहीद भगत सिंह के नाम पर हवाई अड्डा
हंसते-हंसते फांसी को गले लगायामोमबत्तियां बुझ गई चिराग तले अंधेरा छाया थाफांसी के फंदे पर जब तीनों वीरों को झुलाया थासंपादकीय :राजस्थान में वफादारी का दांवअंकिता पर उबलता ‘उत्तराखंड’पीएफआई के खतरनाक मंसूबेआज कहां जा रही है
Aditya चोपड़ा; हंसते-हंसते फांसी को गले लगायामोमबत्तियां बुझ गई चिराग तले अंधेरा छाया थाफांसी के फंदे पर जब तीनों वीरों को झुलाया थासंपादकीय :राजस्थान में वफादारी का दांवअंकिता पर उबलता 'उत्तराखंड'पीएफआई के खतरनाक मंसूबेआज कहां जा रही है नैतिकता?कनाडा में खालिस्तानियों को हवाईरान में हिजाब का 'अजाब'भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु के मन को कुछ न भया थाहंसते-हंसते देश की खातिर फांसी को गले लगाया थाइंकलाब का नारा लिए विदा लेने की ठानी थीलटक गए फांसी पर किन्तु मुख से उफ तक न निकली थीदेशभक्ति को देख तुम्हारी सब ने अश्रुधार बहाया थाहंसते-हंसते देश की खातिर फांसी को गले लगाया था।कौमें और राष्ट्र वही जिन्द रहते हैं, जो अपने शहीदों को नमन करते हैं। देश की स्वतंत्रता के लिए अपनी जान कुर्बान करने वाले अंग्रेजी शासन की यातनाएं सहने वाले और अपनी जिन्दगी का काफी हिस्सा जेलों में बिताने वाले शहीदों और स्वतंत्रता सेनानियों को याद करना इस राष्ट्र का दायित्व है। देश को आजादी केवल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अहिंसक आंदोलन से ही नहीं मिली बल्कि शहीदों के खून से भी मिली है :बापू गांधी ने कहा था शांति-शांति-शांति...लेकिन भगत सिंह ने कहा था क्रांति-क्रांति-क्रांति...स्वतंत्रता संग्राम में नरम और गरम विचारधारा वाले दलों की भूमिका को किसी से भी कम नहीं आंका जा सकता। इसलिए सभी को उचित सम्मान दिया जाना हम सब का कर्त्तव्य है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शहीद-ए-आजम भगत सिंह की जयंती के ठीक पहले अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम मन की बात में ऐलान किया कि चंडीगढ़ एयरपोर्ट का नाम बदल कर शहीद भगत सिंह के नाम पर रखा जाएगा। इस ऐलान का लम्बे समय से इंतजार किया जा रहा था। यह ऐलान पिछले महीने पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और हरियाणा के डिप्टी सी.एम. दुष्यंत चौटाला के बीच हुई इस मुद्दे पर बैठक के बाद आया। पंजाब की पूर्ववर्ती कैप्टन अमरेन्द्र सिंह सरकार ने भी 2017 में केन्द्र के सामने यह मुद्दा उठाया था। वैसे तो शहीदों के नाम पर विवाद होना ही नहीं चाहिए था। लेकिन दुर्भाग्यवश इस में वीर सावरकर से लेकर शहीदों के नाम पर नामकरण करने पर विवाद होते रहे हैं। पंजाब सरकार ने 2017 में यह मांग की थी कि हवाई अड्डे का नाम शहीद-ए-आजम सरदार शहीद भगत सिंह अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा मोहाली रखा जाना चाहिए। हरियाणा सरकार को भगत सिंह के नाम से कोई आपत्ति नहीं थी लेकिन उसने मोहाली के नाम के इस्तेमाल को लेकर चिन्ता जताई।चंडीगढ़ इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड पंजाब और हरियाणा सरकारों के सहयोग से भारतीय विमान पत्तन प्राधिकरण द्वारा कंपनी अधिनियम 213 के तहत निगमित एक संयुक्त उद्यम कंपनी है। हवाई अड्डे का रनवे चंडीगढ़ में स्थित है। जबकि अंतर्राष्ट्रीय टर्मिनल मोहाली के झिडलहेड़ी गांव में पड़ता है। एयर ट्रैफिक कंट्रोल और रनवे ऑपरेशन आईएएफ के पास है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विवाद को परे हटाते हुए शहीद भगत सिंह के नाम पर चंडीगढ़ एयरपोर्ट का नाम रखने की घोषणा कर दी जो कि स्वागत योग्य है। इस वर्ष हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं और युवा पीढ़ी को शहीद भगत सिंह के बलिदान से प्रेरणा लेनी चाहिए। इस घोषणा ने पंजाब के लोगों के मन में उत्साह भर दिया है। शहीद-ए-आजम के भतीजे किरणजीत सिंह संधू ने इसे ऐतिहासिक क्षण बताते हुए प्रधानमंत्री मोदी का आभार जताया। भगत सिंह का जन्म 27 सितम्बर 1907 को हुआ था। उस समय उनके चाचा अजीत सिंह और श्वान सिंह स्वतंत्रता संग्राम में सहयोग दे रहे थे। यह दोनों गदर पार्टी के सदस्य थे। भगत सिंह पर इन दोनों का गहरा प्रभाव पड़ा था। भगत सिंह, करतार सिंह सराभा और लाला लाजपतराय से अत्याधिक प्रभावित थे। 13 अप्रैल 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बालमन पर गहरा प्रभाव डाला था। लाहौर के नेशनल कालेज की पढ़ाई छोड़कर 1920 में भगत सिंह महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे अहिंसा आंदोलन में भाग लेने लगे जिसमें गांधी जी विदेशी सामानों का बहिष्कार कर रहे थे। 14 साल की उम्र में ही भगत सिंह ने सरकारी स्कूल की पुस्तकें और कपड़े जला दिए थे। इसके बाद इनके पोस्टर गांव में लगने लगे थे।मैं यह उल्लेख इसलिए कर रहा हूं कि भगत सिंह और गांधी जी की िवचारधारा शुरुआती तौर पर अलग-अलग नहीं थी। भगत सिंह पहले महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन और भारतीय नैशनल कांग्रेस के सदस्य थे। 1921 में जन चौरा-चौरा हत्याकांड के बाद गांधी जी और भगत सिंह में आंदोलन को लेकर मतभेद पैदा हो गए थे। उसके बाद भगत सिंह चंद्रशेखर आजाद के गदर दल का हिस्सा बन गए। भगत सिंह का खून युवा था और आजादी के लिए उछाले मार रहा था। भगत सिंह क्रांतिकारी, देशभक्त ही नहीं बल्कि एक अध्ययनशील, विचारक, कलम के धनी, दार्शनिक, चिन्तक, लेखक, पत्रकार और महान मनुष्य थे। उन्होंने 23 वर्ष की छोटी सी आयु में फ्रांस, आयरलैंड और रूस की क्रांति का विशुद्ध अध्ययन किया था। भगत सिंह जेल में करीब दो साल रहे। इस दौरान वह लेख लिखकर अपने क्रांतिकारी विचार व्यक्त करते रहे। जेल में रहते हुए उनका अध्ययन जारी रहा। उस दौरान उनके लिखे गए लेख और उनके परिवार को लिखे गए पत्र उनके विचारों के दर्पण हैं। उन्होंने अपने लेखों में कई तरह से पूजीपतियों को अपना शत्रु बताया था। उन्होंने लिखा था कि मजदूरों का शोषण करने वाला चाहे एक भारतीय ही क्यों न हो वह उनका शत्रु है। क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने अलीपुर रोड दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सैंट्रल एसैंबली के सभागार में 8 अप्रैल, 1929 को अंग्रेज सरकार के जगाने के लिए बम और पर्चे फैंके थे। इसी केस में 23 मार्च 1932 को भगत सिंह तथा उनके दो साथियों सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई थी।स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में इतिहासकारों ने यह भी लिखा है कि गांधी जी चाहते तो अपने प्रभाव से भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को बचा सकते थे। मैं इतिहास की विवेचना में नहीं जाना चाहता। इतिहास में बहुत कुछ ऐसा है जो सत्य से दूर भी है। आजादी के अमृतकाल में सरकारों का, देशवासियों का, परिवारों का, शिक्षकों का, बुद्धिजीवियों का यह दायित्व है कि भावी पीढ़ी को स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास पढ़ाए और उन शहीदों का भी उल्लेख करें जिनको इतिहास में भुला दिया गया है। राष्ट्रवाद की भावना तब जागृत होगी जब देश का बच्चा-बच्चा शहीदों के बलिदान से अवगत होगा। जब भारत आजाद हुआ तब देश एक था। आजादी के समय ही विभाजन की रेखा खिंच गई थी। पाकिस्तान में जब भी शहीद भगत सिंह की प्रतिमा को खंडित किए जाने की खबर मिलती है तो दिल बहुत आहत होता है। अब भारत को अपने शहीदों की याद को हमेशा बनाए रखना है और इसके लिए बेहतर यही होगा कि हम सार्वजनिक स्थानों को शहीदों का नाम दे।