आतंक के विरुद्ध
ताजिकिस्तान की राजधानी दुशान्बे में पिछले हफ्ते हुए चौथे एनएसए लेवल के रीजनल सिक्यॉरिटी डायलॉग को इस मायने में कामयाब कहा जा सकता है
नवभारत टाइम्स: ताजिकिस्तान की राजधानी दुशान्बे में पिछले हफ्ते हुए चौथे एनएसए (राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार) लेवल के रीजनल सिक्यॉरिटी डायलॉग को इस मायने में कामयाब कहा जा सकता है कि भारत, चीन, रूस, ईरान समेत इस क्षेत्र के आठ प्रमुख देशों में अफगानिस्तान को लेकर न्यूतनतम सहमति बन गई। एनएसए सम्मेलन के बाद जारी संयुक्त बयान में आठों देश अफगानिस्तान को आतंकमुक्त बनाने और वहां चल रहे टेरर कैंपों को बंद करने पर एकमत नजर आए। जो मौजूदा वैश्विक माहौल है और दक्षिण एशियाई क्षेत्र में भी भारत और चीन जैसे बड़े देशों के बीच जिस तरह के समीकरण हैं, उन्हें देखते हुए अफगानिस्तान को लेकर एक बुनियादी सहमति पर पहुंचना कोई छोटी बात नहीं है। ध्यान रहे, पिछले साल नवंबर में ही तीसरा रीजनल सिक्यॉरिटी डायलॉग भारत की मेजबानी में हुआ था, जिसमें न तो चीन शामिल हुआ था और ना ही पाकिस्तान। पाकिस्तान वैसे इस बार भी गैरहाजिर रहा, लेकिन इसकी वजह आंतरिक थी। वहां नई सरकार आने के बाद से अभी तक एनएसए की नियुक्ति नहीं हो पाई है।
आतंकवाद को लेकर बनी इस सहमति के संदर्भ में यह तथ्य भी महत्वपूर्ण है कि भारत और चीन का नजरिया इस मामले में काफी अलग रहा है। चीन जब आतंकवाद की बात करता है तो उसका मतलब अक्सर शिनच्यांग केंद्रित ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ईटीआईएम) से जुड़ी गतिविधियों से होता है, जबकि भारत की मुख्य चिंता लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों को लेकर रही है। मगर संयुक्त बयान में अफगानिस्तान को आतंकमुक्त करने के साथ ही इस क्षेत्र में चलाए जा रहे आतंकी शिविरों को बंद करने की बात है, जिससे भारतीय नजरिया भी कवर हो जाता है। एक और महत्वपूर्ण पहलू है अफगानिस्तान के संदर्भ में अमेरिका की भूमिका। संयुक्त बयान में अमेरिका या किसी भी पश्चिमी देश का नाम नहीं लिया गया है, मगर यह जरूर कहा गया है कि जो भी देश अफगानिस्तान की मौजूदा हालत के लिए जिम्मेदार हैं, उन्हें उसके आर्थिक पुनर्निर्माण में दायित्व निभाना चाहिए। ये देश अफगानिस्तान के आंतरिक मामलों में किसी भी तरह की दखलंदाजी के खिलाफ हैं और चाहते हैं कि वहां अफगानों के ही नेतृत्व और निगरानी में और उनके ही द्वारा टिकाऊ शांति कायम की जाए।
कुल मिलाकर देखा जाए तो आतंकवाद एक वैश्विक सवाल जरूर है, लेकिन अफगानिस्तान की अस्थिरता का सबसे ज्यादा प्रभाव इसी क्षेत्र के देशों पर पड़ने वाला है। इस लिहाज से रीजनल सिक्यॉरिटी डायलॉग के रूप में एक ऐसी व्यवस्था बनती दिख रही है, जिसके जरिए इस क्षेत्र के सभी प्रमुख देश मिलकर आपसी सहमति से और राष्ट्रीय संप्रभुता का सम्मान करते हुए अफगानिस्तान के हालात की जटिलताओं को एक-एक कर सुलझाने का प्रयास जारी रख सकते हैं। यह इस पूरे क्षेत्र की शांति और स्थिरता बनाए रखने की दिशा में एक बड़ा डिवेलपमेंट है।