भ्रष्टाचार के विरुद्ध
प्रधानमंत्री ने देश में पल-बढ़ रहे सबसे बड़े रोग भ्रष्टाचार को लेकर चिंता जाहिर की है और फिर से देशवासियों का ध्यान इस ओर आकर्षित किया है। मगर सच यह है कि इस समस्या से देश लंबे समय से पीड़ित है
प्रधानमंत्री ने देश में पल-बढ़ रहे सबसे बड़े रोग भ्रष्टाचार को लेकर चिंता जाहिर की है और फिर से देशवासियों का ध्यान इस ओर आकर्षित किया है। मगर सच यह है कि इस समस्या से देश लंबे समय से पीड़ित है और इसका खमियाजा आखिरकार जनता को उठाना पड़ा है। स्वाभाविक ही इसका सीधा असर देश के विकास पर पड़ा, जिसके आईने में हम पिछले सात दशक से ज्यादा के आजादी के सफर को आंकते हैं।
सवाल है कि आखिर कौन-सी वजहें रहीं कि तमाम जद्दोजहद के बावजूद लंबे समय से यह समस्या न केवल ज्यों की त्यों बनी है, बल्कि कई स्तरों पर पहले के मुकाबले जटिल भी हुई है। क्या सरकार से लेकर आम लोगों के भीतर भ्रष्टाचार की समस्या से निपटने की इच्छाशक्ति में कमी रही या दायित्वबोध का अभाव रहा, जिसके चलते आज भी इस पर फिक्र जतानी पड़ती है? प्रधानमंत्री ने भी यह कहा कि भ्रष्टाचार दीमक की तरह देश को खोखला करता है और ऐसे में हमें अपने कर्तव्यों को प्राथमिकता देते हुए मिल कर इससे शीघ्र मुक्ति पानी है। इसके लिए आने वाले दशकों तक या अनिश्चितकाल तक इंतजार करने की जरूरत नहीं है।
एक मुश्किल यह है कि देश में ऐसे तमाम लोग हैं, जो भ्रष्टाचार को एक गंभीर समस्या मानते हैं, उसके पीड़ित भी हैं, लेकिन लंबे समय से इसका सामना करने की वजह से शायद वे इसके अभ्यस्त हो गए हैं और इसीलिए इसके प्रति उदासीन दिखते हैं। हालांकि देश की ज्यादातर आबादी इस पर लगाम लगाने के लिए ठोस कदम उठाने की अपेक्षा करती है।
इसके समांतर आज की युवा पीढ़ी न केवल समूचे तंत्र में गहरे पैठे भ्रष्टाचार को बाकी समस्याओं की जड़ मानती है, बल्कि समय पर उचित प्रतिक्रिया भी देती है। चाहे इस पर राय जाहिर करना हो, किसी रूप में भ्रष्ट व्यवहार के खिलाफ जूझना हो या फिर इसके अंत के लिए आंदोलनों में हिस्सा लेना हो। शायद यही वजह है कि प्रधानमंत्री ने युवाओं से भी उम्मीद जाहिर की है। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार को खत्म करने का काम हम सभी देशवासियों को, आज की युवा पीढ़ी को मिल कर करना है। इसके लिए बहुत जरूरी है कि हम अपने कर्तव्यों को प्राथमिकता दें।
दरअसल, इस कर्तव्य भाव की अनदेखी के चलते भ्रष्ट मानसिकता वाले लोग अपने दायित्व की उपेक्षा करके कदाचार में लिप्त होते हैं और जो सेवा व्यवस्थागत तौर पर जनता के अधिकार के तौर पर तय की गई होती है, उसे हासिल करने के लिए लोगों को अवैध तरीके से पैसे चुकाने से लेकर कई स्तरों पर परेशान होना पड़ता है। यह मुश्किल केवल निचले स्तर पर नहीं है, बल्कि समूचे तंत्र में हर ऊपरी सीढ़ी पर भ्रष्टाचार अपने जटिल स्वरूप में और गंभीर होता चला जाता है। सवाल है कि आखिर क्या वजह है कि आजादी के इतने साल बाद भी देश इस समस्या के बहुस्तरीय स्वरूप में उलझा हुआ है और इससे पार पाना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
हाल में ट्रांसपरेंसी इंटरनेशलन की ओर से जारी भ्रष्टाचार अवधारणा सूचकांक में भारत को दुनिया भर के 180 देशों की सूची में 85वां स्थान मिला है। जाहिर है, यह तस्वीर कोई संतोषजनक नहीं है और देश में सत्ता से लेकर विपक्षी दलों और जनता तक के स्तर पर सभी पक्षों को सक्रिय रूप से भ्रष्टाचार के खिलाफ ठोस कदम उठाना होगा। खासतौर पर सत्ताधारी पार्टियों के भीतर इस बेहद जटिल समस्या से निपटने के लिए ईमानदार इच्छाशक्ति की जरूरत है।