फिर वही बेतुकी बातें: कोरोना महामारी से मिलकर लड़ने के बजाय राहुल गांधी मोदी सरकार पर कस रहे हैं तंज
लगता है राहुल गांधी ने यह ठान लिया है कि वह गंभीर से गंभीर मसले पर भी केवल तंज ही कसेंगे।
भूपेंद्र सिंह| लगता है राहुल गांधी ने यह ठान लिया है कि वह गंभीर से गंभीर मसले पर भी केवल तंज ही कसेंगे। गत दिवस उन्होंने फरमाया कि केंद्र सरकार के पास कोरोना से निपटने के बस तीन ही उपाय हैं। पहला, तुगलकी लॉकडाउन लगाओ। दूसरा, घंटी बजाओ और तीसरा, प्रभु के गुण गाओ। इसके पहले उन्होंने ट्वीट किया था-न टेस्ट, न अस्पताल में बेड, न वेंटीलेटर, न ऑक्सीजन...टीका भी नहीं। क्या यह किसी ऐसे नेता की भाषा कही जा सकती है, जो देश की सबसे पुरानी पार्टी का अध्यक्ष रहा हो? यह तो ट्रोल की भाषा है। मुश्किल यह है कि राहुल ट्रोलिंग को ही राजनीति मान बैठे हैं। शायद यही कारण है कि वह इसकी परवाह नहीं करते कि उनकी टीका-टिप्पणी तथ्यों से मेल खाती है या नहीं? तथ्य यह है कि कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर थामने के लिए जिस राज्य ने सबसे पहले लॉकडाउन सरीखा कदम उठाया, वह है महाराष्ट्र, जहां की सत्ता में कांग्रेस भी साझीदार है। क्या राहुल महाराष्ट्र सरकार के फैसले को तुगलकी बता रहे हैं? पता नहीं, वह क्या कहना चाहते हैं, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि पिछले साल कांग्रेस शासित राज्य सरकारें उन सरकारों में शामिल थीं, जो केंद्र की ओर से कोई घोषणा किए जाने के पहले ही अपने स्तर पर लॉकडाउन की अवधि बढ़ा दिया करती थीं। क्या यह तुगलकी सोच के तहत किया जाता था?