अफगानिस्तान का मैदान
अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की मौजूदगी काफी लंबे समय से एक जटिल प्रश्न बना रहा है।
अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की मौजूदगी काफी लंबे समय से एक जटिल प्रश्न बना रहा है। हालांकि पिछले कुछ समय से कई बार ऐसे मौके आए, जब अमेरिका की ओर से अपनी सेना को अफगानिस्तान से वापस बुलाने की बात कही गई। लेकिन किसी न किसी वजह से वे फैसले अंजाम तक नहीं पहुंच सके। लेकिन अब अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन की घोषणा पर अमल हो सका तो इसी साल ग्यारह सितंबर तक अमेरिकी सैनिक पूरी तरह अफगानिस्तान से लौट जाएंगे।
दरअसल, न केवल अफगानिस्तान से लेकर अलग-अलग अंतरराष्ट्रीय संदर्भों में अमेरिकी सेना की वहां मौजूदगी एक बहस का विषय बन चुकी है, बल्कि खुद अमेरिका में जोखिम और खर्चे के मद्देनजर इस मसले पर तीखे सवाल उठ रहे थे। लेकिन अक्सर होने वाली उथल-पुथल के बावजूद इस ओर कोई ठोस पहल नहीं हो सकी थी। अब बाइडेन ने साफ शब्दों में कहा है कि ग्यारह सितंबर का हमला इस बात की व्याख्या नहीं कर सकता कि अमेरिकी बलों को बीस साल बाद भी अफगानिस्तान में क्यों रहना चाहिए और वक्त आ गया है कि अमेरिकी सैनिक देश की सबसे लंबी जंग से वापस आएं।
गौरतलब है कि इस साल ग्यारह सितंबर को अमेरिका में हुए बड़े आतंकी हमले की बीसवीं बरसी है। अलकायदा का वह हमला विश्व भर में आतंकवाद के खिलाफ अमेरिकी अभियान की एक बड़ी वजह बना। खासतौर पर सन 2001 में अलकायदा का सामना करने के लिए ही अमेरिका ने अफगानिस्तान में अपनी सेना उतारी थी। इस लिहाज से देखें तो ग्यारह सितंबर को बीसवीं बरसी का दिन अमेरिका के लिए महत्त्वपूर्ण है और इस दिन सैनिकों की वापसी को वह एक खास मौके के रूप में पेश कर सकेगा। जाहिर है, इसे अमेरिका अपने अभियान की कामयाबी के तौर पर देखेगा, तो दूसरी ओर, अब तक अमेरिकी सेना और तालिबान के बीच जैसे टकराव रहे हैं, उसमें तालिबान इसे अपनी जीत के तौर पर पेश करेगा। तालिबान के एक मुख्य सदस्य की ओर यह बयान आया भी कि हमने जंग जीत ली है और अमेरिका हार गया है। इसके अलावा, तालिबान की ओर से यह भी कहा गया कि हम किसी भी चीज के लिए तैयार हैं।
ऐसी स्थिति में फिलहाल यह कहना मुश्किल है कि अफगानिस्तान से अमेरिकी फौजियों के लौट जाने के बाद वहां के हालात में क्या सुधार आएंगे। लेकिन वहां अपने सैनिकों की मौजूदगी से अमेरिका को जो बोझ और नुकसान उठाना पड़ा है, उसमें इस कदम को निश्चित तौर पर एक महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम के तौर पर देखा जाएगा। अफगानिस्तान में अलकायदा और तालिबान के लड़ाकों से युद्ध के दौरान अमेरिका के दो हजार चार सौ सैनिक मारे गए। इसके अलावा, इस युद्ध पर अमेरिका अब तक एक सौ पचास लाख करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च कर चुका है।
इसे बाइडेन के बुधवार के बयान से भी समझा जा सकता है, जिसमें उन्होंने कहा कि अमेरिका इस जंग में लगातार संसाधनों की आपूर्ति करता नहीं रह सकता। जहां तक कामयाबी का सवाल है, तो करीब दस साल पहले मई 2011 में अमेरिका ने उसामा बिन लादेन को मार गिराया, मगर वह अब भी यह दावा कर सकने की स्थिति में नहीं है कि तालिबान खत्म हो गया या अफगानिस्तान में शांति कायम हो गई। अब आने वाले महीनों में जब अमेरिकी सैनिकों की वापसी सुनिश्चित हो जाएगी, तब यह देखना होगा कि अफगानिस्तान की शांति के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्या और कैसे कदम उठाए जाते हैं और इसमें पाकिस्तान, रूस, चीन, भारत और तुर्की की क्या भूमिका तय होती है। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि अफगानिस्तान में स्थिरता के भविष्य में इन देशों की भागीदारी अहम साबित होगी।