83: जब भारतीय टीम ने विश्व क्रिकेट का भविष्य लिख दिया

एक फिल्म के लिए ’83’ (Film 83) बेहद आकर्षक नाम है. क्रिकेट (Cricket) प्रेमियों के लिए यह फिल्म रोमांचक होनी चाहिए

Update: 2021-12-21 07:27 GMT

बिक्रम वोहरा एक फिल्म के लिए '83' (Film 83) बेहद आकर्षक नाम है. क्रिकेट (Cricket) प्रेमियों के लिए यह फिल्म रोमांचक होनी चाहिए, लेकिन 24 दिसंबर को इस फिल्म के रिलीज होने से पहले उन यादों से रू-ब-रू होना जरूरी है, जो भारतीय क्रिकेट (Indian Cricket) का बेहद शानदार दिन था. उम्मीद है, जैसा कि उस दिन हुआ था, इस फिल्म ने भी 'हम कतई नहीं जीत सकते' से 'देखो, हम जीत गए' तक के बदलते सेंटिमेंट को पूरी तरह कैप्चर किया होगा.

एक बार मैं और कपिल देव (Kapil Dev), सीबीएफएस क्रिकेट (CBFS Cricket) के लिए उनके शारजाह दौरों के बीच, दुबई के एविएशन क्लब में स्क्वैश खेल रहे थे. वैसे वो मेरी पत्नी के ज्यादा अच्छे दोस्त थे, क्योंकि दोनों चंडीगढ़ से हैं और उनके कई कॉमन फ्रेंड्स भी हैं, लेकिन उन दिनों क्रिकेटर्स अनजान लोगों से भी घुल-मिल जाते थे और आजकल की तरह कोरोना और करप्शन के बबल में उलझे हुए नहीं थे.
हमने अपना खेल खत्म किया और नींबू पानी पीने के दौरान मैंने उनसे पूछा कि क्या आपने अंपायर डिकी बर्ड की बायोग्राफी पढ़ी है. डिकी ने दो पेजों पर मेरा जिक्र किया था और इससे मैं काफी उत्साहित था. उन्होंने 1983 के वर्ल्ड कप फाइनल और कपिल मोमेंट के बारे में भी लिखा था.
उन दिनों 200 रन भी अच्छा-खासा स्कोर माना जाता था
'कपिल, क्या आपको लगता था कि वर्ल्ड कप फाइनल में 183 रन बनाकर भी आप लोगों के पास जीत का मौका था?' मैंने उनसे ये पूछा क्योंकि उस दिन मैं गोवा में अपने घर पर था और नए कलर टीवी सेट पर मैच देखते हुए भारतीय टीम के 200 रन की साइकोलॉजिकल लाइन पार नहीं कर पाने पर अफसोस जता रहा था. जहां तक मुझे याद है उनका जवाब था, 'तुम्हें ये याद रखना चाहिए कि उन दिनों 50 ओवर के मुकाबले में शुरुआती 10 ओवर के दौरान 10 से 15 रन बनते थे. उन दिनों माइंडसेट ऐसा था कि 200 रन भी अच्छा-खासा स्कोर माना जाता था. हालांकि 183 रन कम थे, लेकिन उसे लेकर ड्रेसिंग रूम में कोई मायूसी नहीं थी.'
'सच कहूं तो हमने जीत के लिए कोई प्रार्थना नहीं की थी'
मुझे लगता है कि इस स्कोर के बजाए वेस्टइंडीज की साख ज्यादा हावी थी, जिसके चलते एक अरब भारतीयों ने तो मानसिक रूप से हार तय मान ली थी. विंडीज 1975 और 1979 में लगातार दो बार वर्ल्ड कप जीत चुका था और लॉर्ड्स में हो रहे फाइनल मुकाबले में उनकी जीत और खिताबी हैट्रिक तय मानी जा रही थी. हमने उन्हें पाकिस्तान को पटखनी देते हुए देखा था और भारत की जीत को लेकर लैडब्रुक्स की उम्मीदें भी काफी कम थीं, क्योंकि ये मुमकिन नहीं लग रही थी. एंडी रॉबर्ट्स, विवियन रिचर्ड्स, माइकल होल्डिंग, लैरी गोम्स, जोल गार्नर, मैलकम मार्शल के सामने तो ये बात मजाक लगती थी. सच कहूं तो हमने जीत के लिए कोई प्रार्थना नहीं की थी. हम बियर और आंसुओं से अपने गिलास भरने के लिए तैयार थे. हमें फाइनल में पहुंचना भी खास लग रहा था.
टॉस हारने के बाद वेस्टइंडीज ने हमें बल्लेबाजी करने का न्योता दिया था. बैरी मेयर और डिकी बर्ड ने मैदान में कदम रखा. वेस्टइंडीज के तेज गेंदबाज नियमित अंतराल पर हमारे विकेट झटकते रहे. महज दो रन के स्कोर पर सनी को रॉबर्ट्स की गेंद पर ड्यूजॉन ने आउट कर दिया और हमें यकीन हो चला था कि शायद हमारी पार्टी खत्म हो गई है. क्रिस श्रीकांत ने 38 रन बनाए तो मोहिंदर अमरनाथ ने 26 रन और संदीप पाटिल ने 27 रन बनाकर उनका साथ दिया. हमें ऐसा लग रहा था कि हम संघर्ष कर रहे हैं और देशभक्ति के जोश से लथपथ होने के बावजूद हम हार तय मानने लगे थे. रन कभी बहुत तेजी से नहीं बने और बेहद कड़ी मेहनत से बने. हम किचेन में तैयार जंबो झींगों को नजरअंदाज कर अपने नाखून चबाते रहे. एंडी ने तीन विकेट हासिल किए थे और गोम्स की इकॉनमी 4.45 थी, जिससे आपको रन रेट का अंदाजा लग रहा होगा. कपिल ने उस दिन को याद करते हुए कहा कि लंच के वक्त ड्रेसिंग रूम में उदासी थी, लेकिन टीम ने उम्मीद नहीं छोड़ी थी. मैंने उनसे कहा कि हम तो उम्मीदें छोड़ चुके थे. हम करीब दस लोग थे और हम सभी हार मानकर टीवी सेट ऑफ कर चुके थे. हमारे पास देखने के लिए कुछ भी नहीं बचा था.
जब हारी बाजी जीत में बदल गई
कई साल बाद मैं यूएई में डिकी बर्ड से मिला. शायद यह 1989 की बात है और हम सभी विश्व कप के बारे में बात कर रहे थे. टी20 को आने में 16 साल बाकी थे और 50 ओवर के फॉर्मैट को तब तेज रफ्तार क्रिकेट माना जाता था. मुझे याद है, डिकी ने कहा था कि भारतीयों की बॉडी लैंग्वेज काफी पॉजिटिव थी, क्योंकि वे मान चुके थे कि मैच उनके हाथ से निकल चुका है. उनका रवैया कुछ-कुछ 'चलो मजे करते हैं' जैसा था. यकीनन उनके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं था और यही रवैया उनका सबसे बड़ा हथियार साबित हुआ, क्योंकि वे घबराए नहीं.
सबकुछ अपने हिसाब से चलता रहा. मदन लाल और संधू की बदौलत डेसमंड हेन्स, ग्रीनिज और क्लाइव लॉयड सस्ते में आउट हो गए. अब बियर का स्वाद अच्छा लगने लगा था. अब तक स्कोर 57 रन पर तीन विकेट हो चुका था. जब सनी ने गोम्स का कैच पकड़ा और सैयद किरमानी ने बैचस को आउट किया तो मैंने अपने घर में खुशी से कुशन को हवा में उछाल दिया. तब तक 66 रन पर इंडीज के पांच विकेट गिर चुके थे, लेकिन सफर बाकी था. मैंने जो कुशन फेंका था, वो एक कांच के फूलदान से जा टकराया और फूलदान टूट गया. सब ने कहा कि ये एक लकी साइन है. इसे मत छुओ. हमने कांच के टुकड़ों को ऐसे ही छोड़ दिया, लेकिन वो हमें बैड लक जैसा लगने लगा, क्योंकि मार्शल और ड्यूजॉन ने 43 रन की साझेदारी कर ली थी.
इसके बाद गेंद मोहिंदर को दी गई और 119 रन पर 7 विकेट गिर गए. मैं और मेरे पड़ोसी खुशी में चीखने लगे. छिटपुट आतिशबाजी ने पक्षियों को सुबह से पहले ही जगा दिया था. जब कपिल ने एंडी का विकेट लिया तो जीत दरवाजे पर दस्तक देती नजर आने लगी. सस्पेंस लगातार बढ़ता जा रहा था. माइकल लगातार खेल रहे थे और हम उसके आउट होने की दुआ कर रहे थे. आखिरकार लक्ष्य से 43 रन पहले माइकल ने भी हार मान ली और वह आउट हो गया. मोहिंदर ने एक बार फिर अपना जलवा दिखाया और आखिरी विकेट हासिल कर खेल खत्म कर दिया. लोग खुशी के मारे मैदान में दौड़ने लगे.
15 साल बाद सीबीएफएस गाला डिनर के दौरान मैं क्लाइव लॉयड के साथ मौजूद था. मैंने उनसे पूछा कि क्या वो उस दिन को याद करते हैं? दरअसल, वह मेरी पत्नी से ज्यादा बातचीत कर रहे थे और मैं उन्हें ट्रैक से उतारने की कोशिश कर रहा था. उन्होंने कहा कि नहीं, मैं उस बारे में बात नहीं करना चाहता.
मैं नहीं जानता कि यह फिल्म लॉर्ड्स की बालकनी में उस दिन जो सस्पेंस और उत्साह था उसके साथ न्याय कर पाएगी या नहीं. क्योंकि सड़कों पर खुशी मनाते लोगों को, हवा में उछाले गए कुशन और उससे चकनाचूर हुए कांच के फूलदान को कौन भूल सकता है. डिकी बर्ड ने कहा, 'क्या आपने भारत पर दांव लगाया था? नहीं? आह, कमजोर दिलवालों… तरस आता है.'
Tags:    

Similar News

-->