2020-21 तो कोरोना के कारण गिनती में ही नहीं आए, उम्मीद है कि 2022 वापसी करे; आप सबको नया दशक मुबारक हो!
सभी पाठकों को नया दशक मुबारक हो! आइए वायरस और उसके वैरिएंट से जुड़ी 2020 और 2021 की बुरी यादें मिटा दें
चेतन भगत का कॉलम:
सभी पाठकों को नया दशक मुबारक हो! आइए वायरस और उसके वैरिएंट से जुड़ी 2020 और 2021 की बुरी यादें मिटा दें और एक-दूसरे को 2022 की बधाई दें! कोई भी नया साल हो, अपने साथ दो चीज़ें लेकर आता है- एक रात पहले की पार्टी से हुआ हैंगओवर और दूसरा डरावना 'आर' शब्द- रिजॉल्यूशन(संकल्प)। ओमिक्रॉन के प्रतिबंधों ने पार्टी रोक दी और हैंगओवर से बचा लिया। हालांकि हम अभी भी बाद वाले यानी रिजॉल्यूशन में अटके हैं!
एक अच्छे और जिम्मेदार इंसान होने के नाते हमें कुछ चीज़ें करने के लिए उन पर डटे रहना चाहिए। पर ना जाने क्यों 1 जनवरी ही है, जब हम सोचते हैं कि खुद को चमत्कारिक रूप से बदल देंगे, कोई भी तारीख जैसे 19 सितंबर या 22 अप्रैल के लिए ऐसा नहीं कहते। दुखद है कि हम नए साल के संकल्पों से अच्छी तरह नहीं जुड़ते।
स्टडी का डाटा बताता है कि अधिकांश संकल्प जनवरी में ही दम तोड़ देते हैं। लोकप्रिय फिटनेस एप स्ट्रावा ने उसके लाखों उपयोगकर्ताओं की शारीरिक गतिविधियों के आधार पर आकलन किया। उन्होंने यहां तक कि तारीख भी बता दी कि जब ज्यादातर लोग अपने संकल्प त्याग देते हैं- 19 जनवरी, शर्म से इसे 'क्विटर्स डे' नाम से जाना जाता है।
संकल्प असफल क्यों होते हैं? क्योंकि यह इच्छाशक्ति और आत्मनियंत्रण पर निर्भर करते हैं, दोनों सीमित संसाधन हैं। अपने जीवन को हर समय अपनी इच्छा शक्ति से चलाने की कोशिश में हम थक जाते हैं। असली बदलावों के लिए धारणाओं और मानसिकता में बदलाव की जरूरत है। ये हमें व्यवहार और आदतों में बदलाव की ओर ले जाएगा, जिससे अंतत: नए परिणाम मिलेंगे।
ये कहना कि 'कल से मीठा नहीं और कसरत शुरू! ' काम नहीं करेगा। अपनी धारणाएं बदलना कारगर होगा। आपके लिए क्या ज्यादा जरूरी है? मिठाई का स्वाद या आप आइने में कैसा दिखते हैं ये? चिप्स खाते हुए ओटीटी पर शो देखना या अपनी हेल्थ? जिस दिन आपका माइंडसेट बदल जाएगा, तब आप खुद मिठाई रख देंगे, रिमोट दूर फेंककर लंबी सैर पर निकल जाएंगे। अगर नहीं, तो 19 जनवरी भी जल्दी ही आ जाएगी।
इसलिए, संकल्प जरूर लें, पर उसके साथ बदलावों की दिशा में एक तरोताज़ा मानसिकता बनाएं। भारत को क्या करने का संकल्प लेना चाहिए? हमें किन नए माइंडसेट की जरूरत है, व्यक्तिगत तौर पर और देश के तौर पर? यहां छह सुझाव हैं- 2022 में जिनकी हर भारतीय को जरूरत है।
1. कोशिश करें कि बस मोटापा न घेर पाए
महामारी ने हमें अच्छी सेहत की महत्ता सिखा दी। आपकी अपनी इम्यूनिटी मायने रखती है, शायद टीके और बूस्टर डोज़ से भी कहीं ज्यादा। हम भारतीयों ने बहुत लंबे समय से अपने खाने में स्वाद और अनहेल्दी को जोड़ दिया है। समोसा और गुलाबजामुन प्रेम नहीं हैं, वे अनरिफाइंड कार्ब्स, शुगर और फैट हैं। बारिश के मौसम का मतलब जरूरी नहीं कि हम मीठी चाय और पकौड़े खाएं।
बाहर बारिश का मतलब है कि आज घर पर कसरत करने का दूसरा रास्ता निकालें। कुछ भी मत खाएं, विशेषतौर पर महीनों रखा रहने वाला पैकेट का खाना। ताज़ा खाएं। दौड़ें, वॉक करें, वजन उठाएं और सक्रिय बने रहें। मोटे न हों (माफ करें, ये कहने का और कोई तरीका नहीं), क्योंकि यही डायबिटीज़ और मौतों का अकेला सबसे बड़ा कारण है।
2. काम में रुचि नहीं तो एक्जिट प्लान बनाएं
हम अपना आधे से ज्यादा समय काम करते हुए बिताते हैं। अगर उसे नापसंद करेंगे (ज्यादातर लोग करते हैं) तो ये निश्चित रूप से आपकी शारीरिक-मानसिक सेहत पर असर डालेगा। किसी और की जिंदगी जीने के लिए और जो नहीं करना चाहते, वह करने के लिए जीवन बहुत छोटा है। अगर अपने काम से प्यार नहीं करते, तो 2022 में इससे निकलने की कोई योजना बनाएं।
3. निवेश के नए तरीकों से दोस्ती करें
दिखावा करने के लिए मत जिएं। उपभोग करना कूल नहीं है, पैसा होना और आर्थिक स्थिरता के साथ उन्मुक्त जीना कूल है। भारतीय व्यवस्थित तरीके से निवेश नहीं करते। हम बहुत कम रिटर्न के बाद भी बैंक एफडी से चिपके रहते हैं। बाजार, म्यूचुअल फंड्स, शेयर्स के बारे मेंं सीखें।
4. वक्त है कि खुद के लिए जिया जाए
भारतीय संस्कृति में परिवार व समाज को महत्व दिया जाता है। हमें एक-दूसरे के लिए जीने में आनंद आता है। हालांकि ये अच्छा है, पर ये हमारे जीवन को दूसरों को खुश करने या दूसरों से तवज्जो हासिल करने की ओर ले जा सकता है। याद रखें, आप पहले आते हैं। दूसरों से पहले अपना ख्याल करें।
आपकी जिंदगी को खुशहाल बनाने के लिए दूसरा कोई नहीं आने वाला। अपनी जिंदगी पर ध्यान केंद्रित करके सिर्फ आप ही इसे खुशनुमा बना सकते हैं। दोस्त, रिश्तेदार, पत्नी, बाकी जरूरी लोग, भाई-बहन, बच्चे- सब जरूरी हैं, पर आपके लिए आपसे ज्यादा महत्वपूर्ण कोई नहीं है।
5. डोपामाइन केमिकल की गिरफ्त में ना आएं
चॉकलेट, सोशल मीडिया, सेक्स, वीडियो गेम, एल्कोहल, ड्रग्स, ट्विटर पर एक-सी विचारधारा वालों को लगातार सुनने, शो देखने, सोशल मीडिया फीड देखते रहने में क्या कॉमन है? इन सबके दौरान डोपामाइन निकलता है, दिमाग को प्रेरित करने वाला यह केमिकल उन्हीं चीजों की और आकांक्षा करता है। प्रेरित बने रहने के लिए डोपामाइन चाहिए। हालांकि बिना प्रयास, प्रोडक्टिव काम के डोपमाइन नुकसानदेह है। अपने डोपामाइन मैनेज करें- सिर्फ उपयोगी गतिविधियों से इसे लें, जो कि आत्म-विकास की ओर ले जाए।
6. देश व समाज के लिए इतना तो करें
भारत विविधता भरा देश है। हालांकि जो विविध होता है, वह नाजुक भी होता है। इस विविधता को कायम रखने के लिए हमें कड़ी मेहनत करनी होगी, क्योंकि एक बार अगर यह खो दी, तो हम शांति, भिवष्य की समृद्धि और बतौर राष्ट्र हमारे सारे आनंद खो देंगे। 2022 में अपने देश व इसकी विविधता को मजबूत बनाने के लिए कदम उठाएं। कुछ भी करें-कलाकृतियां बनाएं, बिजनेस, सर्विस या उत्पाद बनाएं या अच्छी तरह अपनी नौकरी करते हुए उत्कृष्टता का पीछा करें।
देश की जीडीपी, खुशी और भाईचारे में योगदान दें। अगर ये नहीं कर सकते, तो कम से कम ऐसा कुछ ना करें जो भारत को कमजोर करे। दिल दुखाने वाले शब्द, विभाजनकारी धारणाएं, अपने धर्म को ही श्रेष्ठ मानना- ये सब देश और जिस समाज में हम रहते हैं, उसे कमजोर करते हैं। अगर दूसरों की मदद करने के लिए नहीं जी सकते, तो कम से कम उन्हें परेशान तो ना करें।
हम नहीं चाहते कि ऊपर बताए गए संकल्प 19 जनवरी, 2022 तक समाप्त हो जाएं। हम चाहते हैं कि ये संकल्प बने रहें। उसके लिए ऊपर लिखे को फिर से पढ़ें। आप अपने जीवन और अपने राष्ट्र को क्या चाहते हैं, इस बारे में अपनी मानसिकता बदलें। बाकी सब होता जाएगा। ये दो साल बहुत बुरे गुजरे, पर मेरे अंदर से कुछ आवाज़ आ रही है कि 2022 वापसी करेगा। मसल्स बनाएं, मनी बनाएं और सकारात्मकता फैलाएं। हैप्पी न्यू ईयर!
रिजॉल्यूशन और क्विटर्स डे
ना जाने क्यों 1 जनवरी ही है, जब हम सोचते हैं कि खुद को चमत्कारिक रूप से बदल देंगे, कोई भी तारीख जैसे 19 सितंबर या 22 अप्रैल के लिए ऐसा नहीं कहते। दुखद है कि हम नए साल के संकल्पों से अच्छी तरह नहीं जुड़ते। स्टडी का डाटा बताता है कि अधिकांश संकल्प जनवरी में ही दम तोड़ देते हैं।
लोकप्रिय फिटनेस एप स्ट्रावा ने उसके लाखों उपयोगकर्ताओं की शारीरिक गतिविधियों के आधार पर आकलन किया। उन्होंने यहां तक कि तारीख भी बता दी कि जब ज्यादातर लोग अपने संकल्प त्याग देते हैं- 19 जनवरी, शर्म से इसे 'क्विटर्स डे' नाम से जाना जाता है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)