ऐच्छिक और अनैच्छिक

Update: 2022-07-30 11:54 GMT

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आदत तो आदत होती है। अगर एक बार पड़ गई तो छुड़ाए बिना छूटती नहीं। दाउ की खुल कर हंसने की आदत थी। जब मिलते तो खिलखिला कर खूब हंसते फिर हाल-समाचार पूछते। उनसे फूल की तरह खिलखिला कर हंसने की वजह पूछने पर बोलते, 'यह इंसान को कुदरत की तरफ से मिली मुफ्त की अमानत है।इस जहान में महज इंसान के अलावा दूसरे किसी प्राणी को हंसने की अमानत कुदरत की तरफ से नहीं मिली है। और अगर इंसान हंसना बंद कर दे तो समझना चाहिए कि वह मौत की तरफ आगे बढ़ रहा है। उनका मानना था कि यह कुदरत की अमानत है, फिर इस अमानत का पूरा-पूरा इस्तेमाल क्यों न किया जाए! इंसान को कुदरत ने हंसने का मौलिक अधिकार दिया है।और उसके इस अधिकार को कोई छीन नहीं सकता। उनकी बेहतरीन सेहत का राज भी खुलकर हंसना ही था। तमाम लोगों को उन्होंने कई समस्याओं और तनाव से छुटकारा इस क्रिया से दिलाया था। उनके सिखाने के कारण सुबह और शाम खुलकर लोगों ने हंसना अपनी आदत में शुमार कर लिया था।

उनका मानना था कि अगर हम दूसरों की आदतों पर नजर न रख अपनी आदतों पर नजर रखें तो जिंदगी फूलों जैसी हंसने लगती है। 'हंसना एक नियामत है' की कहावत हंसने की खूबियों की वजह से प्रचलित हुई होगी।वक्त के साथ लोगों ने हंसने की अपेक्षा शिकायत को ज्यादा अहमियत देना शुरू कर दिया। शिकायतें इतनी कि लगता है, शिकायतों के अलावा जिंदगी में कुछ है ही नहीं। सुबह उठने से लेकर रात में सोने तक शिकायतों की इतनी लंबी सूची तैयार हो जाती है कि यह समझ में ही नहीं आता कि किस शिकायत को पहले सुलझाना बेहतर होगा और किस शिकायत को बाद में सुलझाया जाए। शिकायत करना जिंदगी के साथ चलने वाली सतत क्रिया पर एक सहज प्रतिक्रिया लगती है।दरअसल, हम सांसारिक उलझनों में इस कदर उलझे रहते हैं कि सहजता और सुंदरता की अहमियत को समझ नहीं पाते। सुबह उठते ही चाय की चुस्कियों के साथ आज की नई जिंदगी की शुरुआत करते हैं। यानी आज का दिन गर्म तासीर से शुरू करते हैं और दिनभर चाय का असर बना रहता है।
दफ्तर में हों या घर पर, हर जगह चाय का गर्मागर्म असर गर्म पकौड़े जैसे हमारे मिजाज में भी दिखता है। इसी के साथ अगर मौसम में गर्मी, उमस या उदासी हो तो गर्माहट और भी बढ़ जाती है। शायद इस वजह से हर आदमी हीनता या अहंकार की गर्मी से तप्त रहता है।आदमी सीखने की अपेक्षा सिखाने में ज्यादा यकीन करता है। इसलिए खुद को एक 'विशेषज्ञ' के रूप में पेश करता है। विशेषज्ञ ऐसा बनता है कि उसका हंसना बंद हो जाता है। अब वह खास अवसर की तलाश में रहता है जब वह हंस सके। एक बाल कवि ने इस कवायद पर बहुत बढ़िया बात कही है- 'बच्चों से हम हंसना सीखें, पानी से शीतलता।हवा से हम बहना सीखें और बादल से सुख बरसाना।' लेकिन हम सीखना कहां चाहते हैं! सिखाने में जैसा आत्म-आनंद मिलता है वैसा सीखने में कहां मिलता है! साहित्यकार हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कुदरत से सीखने का आह्वान किया, लेकिन किसने माना!
हंसना, मुस्कराना और खिलखिलाना मस्ती के तीन रंग-रूप हैं। ये सामान्य और सहज जीवन की सबसे अच्छी अनैच्छिक क्रियाएं हैं, लेकिन वक्त के बदलाव ने इन्हें ऐच्छिक बना दिया। जैसे आंख की पलकों का गिराना और उठाना अनैच्छिक क्रियाएं हैं, लेकिन मोबाइल और कंप्यूटर के ईजाद के बाद पलकों का उठना-गिरना यंत्र ने ऐच्छिक बना दिया।ऐसी ऐच्छिक बनी कि पलकें अब उठती तो हैं, लेकिन उनका गिरने का कोई समय नहीं। साहित्यकारों को चिंतन करना होगा कि अब आंखें अलंकार, कहावतों और समास-परिवार से कैसे जुड़ी रहें। संस्कृत के कवि शिरोमणि कालिदास ने आंखों की जैसी उपमा दी है, बदलते युग ने उन उपमाओं की सुंदरता को अप्रासंगिक बना दिया है।
योग शिक्षक हंसाए, मुस्कराने के लिए गुदगुदाए और खिलखिलाने के लिए चुटकुले सुनाए, तब तीनों क्रियाएं सरकारी योजनाओं की तरह धीरे-धीरे आगे बढ़ती हैं। गौरतलब है कि हंसने, मुस्कराने और खिलखिलाने के लिए खास अवसर की तलाश होने लगे, तब आने वाला कल कैसा होगा, समझा जा सकता है। हंसना, मुस्कराना और खिलखिलाना बेहतरीन जिंदगी जीने के तीन सबसे बेहतर ढंग हैं।ये तीनों रूप जिंदगी को खुशहाल और आनंदमय बनाते हैं। ये जिंदगी के सबसे बेहतरीन और सुंदर पल हैं, जब सभी तरह की नकारात्मक कवायदें खत्म हो जाती हैं। विचारकों का मानना है- सत्य, शिव और सुंदर मानी जाने वाली ये कुदरती क्रियाएं क्रिया-प्रतिक्रिया के वैज्ञानिक नियम के मुताबिक चलने लगी हैं। इसलिए इन क्रियाओं का प्रयोग बेहतर ढंग से करने के लिए विज्ञान की जानकारी आवश्यक है।
विचारणीय विषय है- हंसना, मुस्कराना और खिलखिलाना किसी शास्त्र, साहित्य, समाज, शरीर और विज्ञान का विषय है कि जीवन के खगोलीय अध्याय का। ऐसा लगता है कि दूसरों से हंसना, मुस्कराना और खिलखिलाना सीखने की जगह सतत अभ्यास से इसे फिर प्राप्त करना चाहिए। jansatta

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