सवाल बांधों की सुरक्षा का
भारत के बांधों के संबंध में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट चौंकाती है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2025 तक भारत में एक हजार से अधिक ऐसे बांध होंगे जो पचास साल से अधिक पुराने होंगे और इन बांधों से जान- माल को बड़ा खतरा पैदा हो सकता है।
अतुल कनक: भारत के बांधों के संबंध में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट चौंकाती है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2025 तक भारत में एक हजार से अधिक ऐसे बांध होंगे जो पचास साल से अधिक पुराने होंगे और इन बांधों से जान- माल को बड़ा खतरा पैदा हो सकता है।
मानसून की बारिश के साथ ही देश के अधिकांश बांधों में पानी की आवक बढ़ गई है। कुछ छोटे बांधों में बरसाती पानी की चादर चलने लगी है, तो बड़े बांधों के भराव क्षेत्र में आए अतिरिक्त जल की निकासी तेजी से की जा रही है। जिन नदियों के प्रवाह क्षेत्र में बारिश अच्छी होती है, उनके प्रवाह क्षेत्र में बने बांधों के भराव क्षेत्र में पानी की आवक सामान्य से अधिक होने के कारण बांधों की सुरक्षा के लिए अतिरिक्त पानी का निकास करना आवश्यक हो जाता है।
कई बार यह निकासी इतनी होती है कि निचले इलाकों में बसी बस्तियां बाढ़ की शिकार हो जाती हैं। इस दृष्टि से कई बार बांध सामान्य जीवन के लिए खतरा प्रतीत होने लगते हैं। लेकिन आधुनिक जीवन के विकास के ढांचे की संरचना इस तरह रची गई है कि बांध विकास के सोपान का अनिवार्य तत्व हो गए हैं। बिजली उत्पादन से लेकर सिंचाई तक के लिए पानी की उपलब्धता की आवश्यकता को देखते हुए दुनिया को बांधों की जरूरत है।
जब हम प्रकृति के किसी प्रवाह को अवरुद्ध कर उस पर नई संरचना बनाते हैं, तो प्रकृति बंधन मुक्त होने के लिए लगातार कसमसाती है। एक सामान्य मनुष्य अपने मन के खिलाफ किसी बंधन को सहजता से स्वीकार नहीं करता, तो हम नदियों से यह उम्मीद कैसे कर सकते हैं कि वे अपने प्राकृतिक वेग के मार्ग में खड़े किए गए अवरोधों को सहजता से स्वीकार कर लेंगी? यों भी संसार में हर अस्तित्व का एक तय जीवनकाल होता है और एक निश्चित अवधि के बाद उसकी सामर्थ्य का क्षरण प्रारंभ हो जाता है। देश के कई बड़े बांधों के साथ इन दिनों ऐसा ही हो रहा है।
भारत के बांधों के संबंध में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट चौंकाती है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2025 तक भारत में एक हजार से अधिक ऐसे बांध होंगे जो पचास साल से अधिक पुराने होंगे और इन बांधों से जान- माल को बड़ा खतरा पैदा हो सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सन 2050 तक धरती के ज्यादातर लोग बांधों के आसपास रह रहे होंगे। अधिकांश बांध बीसवीं सदी के बने हैं और अपने सुरक्षित जीवन की अवधि पूरी कर चुके हैं।
ऐसे में लोगों की जिंदगी पर बड़ा खतरा मंडरा सकता है। यह बात संयुक्त राष्ट् संघ की 'एंजिग वाटर इंफ्रास्क्ट्रचर' (उम्रदराज होते जलीय आधारभूत ढांचे) नामक रिपोर्ट में कही गई है। इसमें कहा गया है कि दुनियाभर में बने अट्ठवान हजार सात सौ बांध 1930 से 1970 के बीच बने थे। इनकी डिजाइनिंग ऐसी है कि ये अभी पचास से सौ वर्ष तक और चल सकते हैं। लेकिन यह भी तय है कि पचास वर्ष में कंक्रीट से बने बांधों में कमजोरी दिखने लगती है।
इसी रिपोर्ट में केरल के मुल्लापेरियार बांध का भी उल्लेख है जो करीब सवा सौ साल पहले बना था। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि ये बांध कभी भी धोखा दे सकता है और ऐसी हालत में पैंतीस लाख से ज्यादा लोगों को खतरा हो सकता है। मुल्ला पेरियार बांध 53.6 मीटर की ऊंचाई वाला बांध है जिसकी जलभराव क्षमता 4430 वर्ग मीटर है। यह बांध सन 1895 में ब्रिटिश सरकार ने सिंचाई के उद्देश्य से बनावाया था। सन् 1959 में इससे बिजली उत्पादन भी शुरू हुआ। निर्माण के समय बांध का जीवनकाल पचास वर्ष बताया गया था, जबकि इसे एक सौ सत्ताईस साल हो चुके हैं।
प्रसंगवश, कावेरी नदी पर स्थित कल्लानाई बांध भारत का सबसे पुराना बांध है जिसका निर्माण चोलवंश के शासक करीकलन ने पहली शताब्दी ईसा पूर्व में कराया था। यह बांध 329 मीटर लंबा और 20 मीटर चौड़ा है। सवा दो सौ मीटर ऊंचा भाखड़ा नांगल बांध भारत का सबसे बड़ा और ऐशिया का दूसरे नंबर का सबसे बड़ा बांध है जबकि टिहरी बांध भारत का सबसे ऊंचा बांध है। ऊंचाई की दृष्टि से दुनिया में इसका नंबर आठवां है।
ऐसा नहीं है कि पुराने बांधों से जान-माल का खतरा केवल भारत में ही है। दुनिया भर में इस खतरे को महसूस किया जा रहा है। जहां तक भारत का सवाल है, समुचित रखरखाव में कमी को बांधों से पैदा होने वाले खतरे का मूल कारण माना जा रहा है। तीन दर्जन से अधिक बार भारत में ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं जिन्हें बांधों की असफलता कहा जा सकता है। 31 मार्च 2017 को राजस्थान के झुंझनू जिले के मलसीसर गांव ने ऐसी दुर्घटना का सामना किया था। कुछ समय पहले ही 588 करोड़ रुपए की लागत से तैयार हुआ यह बांध तीन महीने भी नहीं टिक सका था।
गौरतलब है कि दुनिया में सन 2000 से 2009 के बीच बांधों से संबंधित दो सौ से ज्यादा हादसे हो चुके हैं और इनमें से भी सबसे ज्यादा बार जान-माल का नुकसान अमेरिका को भुगतना पड़ा है। यों अमेरिका सहित दुनिया के ज्यादातर देश इतिहास के अलग अलग कालखंड में बांधों के कारण होने वाली दुर्घटनाओं का सामना कर चुके हैं। इतिहास की अब तक की ज्ञात बांध दुर्घटनाओं में सबसे पुरानी दुर्घटना 575 ईस्वी की यमन देश की मेरिब बांध दुर्घटना थी, जिसके कारण पचास हजार से अधिक लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा था।
25 अगस्त 1894 को भारत के गढ़वाल क्षेत्र में गोहना लेक बांध टूटा था। फिर 19 अगस्त 1917 को ग्वालियर के टिगरा बांध और 7 दिसंबर 1961 को पुणे के पुनशेट बांध हादसे का शिकार हुए। भारत में हुई अन्य बांध दुर्घटनाओं में सन 1978 में दामोदर घाटी परियोजना के बांध ध्वस्त होने से मची तबाही, सन 1961 में बिहार के खड़गपुर बांध का टूटना, 1979 में गुजरात के मच्छू बांध का ध्वस्त होना, सन 2017 में बिहार के भागलपुर बांध का टूटना, सन 2019 में महाराष्ट्र के रत्नागिरी में तिवरे बांध का टूटना और सन 2021 में वैशाली जिले के महनार प्रखंड में स्लुइस गेट के पास बने एक बांध का टूटना प्रमुख है। जब गुजरात का मच्छू बांध टूटा था तो दो सौ लोग मारे गए थे। यों दुनिया में बांध टूटने के बाद सबसे ज्यादा नुकसान सन 1975 में चीन के हेनान प्रांत में हुआ था जब बैंकिआओ बांध टूटने के कारण करीब पौने दो लाख लोग मारे गए थे और दस लाख लोगों को विस्थापित होना पड़ा था।
बहरहाल, सच यह भी है कि बांधों का अस्तित्व हमारे जीवन के समुचित विकास के लिए आवश्यक है और जो बांध मनुष्य जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने में लंबे समय से पूरे मन से योगदान कर रहे हैं, उनकी समुचित देखभाल भी ज़रूरी है। इसी आवश्यकता को देखते हुए भारत की संसद ने राष्ट्रीय बांध सुरक्षा अधिनियम पारित किया है जो 30 दिसंबर 2021 से लागू है। इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार सभी राज्यों को अपने यहां बांध सुरक्षा प्राधिकरण और बांध सुरक्षा समितियों का पृथक-पृथक गठन करना है।
हालांकि जब बांध सुरक्षा विधेयक 2018, लोकसभा में पेश किया गया था तब कुछ क्षेत्रीय दलों ने यह कहते हुए इसका विरोध किया था कि यह राज्यों के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण है, लेकिन सरकार का तर्क था कि यदि दो या अधिक राज्य किसी मामले में अपनी सहमति देते हैं तो फिर वह प्रसंग केंद्र के अधिकार क्षेत्र का हो जाता है।
यह एक सुखद संकेत है कि सरकार ने बांधों की सुरक्षा के प्रति संचेतना और प्रतिबद्धता दिखाई है। बांध सुरक्षा विधेयक पारित होने के बाद हालांकि बहुत सारी राज्य सरकारों ने बांध सुरक्षा प्राधिकरण और बांध सुरक्षा समितियों के गठन के प्रति अपेक्षित उत्साह नहीं दिखाया, लेकिन यह माना जा सकता है कि बांधों की सुरक्षा के प्रति केंद्र सरकार की प्रबल इच्छाशक्ति इस पहल को अपेक्षित गति और दिशा देने में सफल होगी।