साल 2019 में कैलिफोर्निया के गर्वनर गेविन न्यूसम ने अमेरिका में एक डाटा डिविडेंड बिल प्रस्तुत किया था, जिसमें उपभोक्ताओं के निजी डाटा से पैदा हुई संपत्ति का बंटवारा उपभोक्ताओं के साथ किए जाने की मांग की गई थी। इंसान का एक डाटा (आंकड़ा) में परिवर्तित हो जाना अपने समय की सबसे विलक्षण घटना है और आज इससे मूल्यवान कोई चीज नहीं है। अब तो इन्फोमोनिक्स का युग आ चुका है, जो आंकड़ों से जुड़ा है। डाटा आज की सबसे बड़ी पूंजी है और यह डाटा का ही कमाल है कि गूगल और फेसबुक जैसी अपेक्षाकृत नई कंपनियां दुनिया की बड़ी और लाभकारी कंपनियां बन गई हैं।
डाटा ही वह ईंधन है, जो अनगिनत कंपनियों को चलाए रखने के लिए जिम्मेदार है। असल में जो चीज हमें मुफ्त दिखाई दे रही है, वह सुविधा हमें हमारे संवेदनशील निजी डाटा के बदले मिल रही है। इनमें से अधिकतर कंपनियां उपभोक्ताओं द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों को सुरक्षित रख पाने में विफल रहती हैं, जिसके चलते लगातार आंकड़ों की चोरी और उनके दुरुपयोग के मामले सामने आते रहते हैं। साल 2020 में फेसबुक ने लगभग छियासी अरब डॉलर और गूगल ने एक सौ इक्यासी अरब डॉलर विज्ञापन से कमाए।
मजेदार तथ्य यह है कि फेसबुक कोई भी उत्पाद नहीं बनाता है और इसकी आमदनी का बड़ा हिस्सा विज्ञापनों से आता है। यहां से आंकड़े अहम हो जाते हैं। निजी जानकारियों को सुरक्षित रखने और इसके गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए सरकार ने 11 दिसंबर, 2019 को लोकसभा में पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल पेश किया था। इस पर गठित संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) ने अपनी रिपोर्ट सदन के समक्ष नवंबर, 2021 में रख दी है, जिस पर आगे चर्चा होनी है। इस बिल के कानून बनने में अभी वक्त है।
देश में जिस तेजी से इंटरनेट का विस्तार हुआ, उस तेजी से हम अपने निजी आंकड़ों (फोन, ई-मेल आदि) के प्रति जागरूक नहीं हुए हैं। नतीजतन तरह-तरह के एप मोबाइल में भरे हुए हैं, जिनको इंस्टाल करते वक्त कोई यह नहीं ध्यान देता कि किन-किन चीजों को एक्सेस देने की जरूरत है। यदि किसी उपभोक्ता ने मौसम का हाल जानने के लिए कोई एप डाउनलोड किया और एप ने उसके फोन में उपलब्ध सारे कांटेक्ट तक पहुंचने की अनुमति मांगी, तो ज्यादातर लोग बगैर यह सोचे कि मौसम का हाल बताने वाला एप कांटेक्ट की जानकारी क्यों मांग रहा है, उसकी अनुमति दे देंगे।
अब उस एप के निर्माताओं के पास किसी के मोबाइल फोन में उपलब्ध कांटेक्ट तक पहुंचने की सुविधा मिल जाएगी। यानी एप डाउनलोड करते ही उपभोक्ता आंकड़ों में तब्दील हुआ, फिर उस डाटा ने और डाटा पैदा करना शुरू कर दिया। इस तरह देश में हर सेकंड असंख्य मात्रा में डाटा उत्पन्न हो रहा है, जिसका बड़ा फायदा इंटरनेट के व्यवसाय में लगी कंपनियों को हो रहा है। यह भी उल्लेखनीय है कि डाटा चुराने के लिए बहुत से फर्जी एप गूगल प्ले स्टोर पर डाल दिए जाते हैं और गूगल भी समय-समय पर ऐसे एप को हटाता रहता है, पर ओपन प्लेटफोर्म होने के कारण जब तक ऐसे एप की पहचान होती है, तब तक फर्जी एप निर्माता अपना काम कर चुके होते हैं।
उपभोक्ता अधिकारों के तहत अभी आंकड़े नहीं आए हैं। किसी भी उपभोक्ता को यह नहीं पता चलता है कि उसकी निजी जानकारियों (आंकड़ों) का किस तरह इस्तेमाल होता है और उससे पैदा हुई आय का भी उपभोक्ता को कोई हिस्सा नहीं मिलता। लोगों के निजी डाटा सिर्फ कंपनियों के उत्पाद को बेचने में ही मदद नहीं कर रहे, बल्कि ये आंकड़े हमें भविष्य के समाज के लिए तैयार भी कर रहे हैं, जिसमें एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक बड़ी भूमिका निभाने वाला है।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंप्यूटर विज्ञान की वह शाखा है, जो कंप्यूटर के इंसानों की तरह व्यवहार करने की धारणा पर आधारित है, जो मशीनों की सोचने, समझने, सीखने, समस्या हल करने और निर्णय लेने जैसी संज्ञानात्मक कार्यों को करने की क्षमता पर कार्य करता है। भविष्य का भारतीय समाज कैसा होगा, यह इस मुद्दे पर निर्भर करेगा कि अभी हम अपने निजी आंकड़ों के बारे में कितने जागरूक हैं।
अमर उजाला