तालिबानी सरकार

अफगानिस्तान में तालिबानी हुकूमत का एक शुरुआती स्वरूप सामने आ गया है। तालिबान ने दुनिया को एक तरह से बता दिया

Update: 2021-09-03 18:31 GMT

अफगानिस्तान में तालिबानी हुकूमत का एक शुरुआती स्वरूप सामने आ गया है। तालिबान ने दुनिया को एक तरह से बता दिया कि उनकी सरकार का नेतृत्व तालिबान के सह-संस्थापक मुल्ला अब्दुल गनी बरादर करेंगे। पहले यह माना जा रहा था कि नेतृत्व अखुंदजादा के हाथों में होगा। संभावना है, अखुंदजादा के पास तालिबान सरकार के सुप्रीम लीडर या संरक्षक या राष्ट्रपति जैसा कोई पद होगा, जबकि अब्दुल गनी बरादर रोजमर्रा के मामलों के लिए ठीक उसी तरह जिम्मेदार होंगे, जैसे कोई प्रधानमंत्री होता है। बरादर की भूमिका बाहर से तालिबान को मजबूत करने में ज्यादा रही है। वह लंबे समय से तालिबान के राजनीतिक मामलों को देख रहे हैं और इसी का उन्हें फायदा मिला है। अमेरिका की वापसी में भी बरादर का बड़ा हाथ है। बरादर को अमेरिका ने ही पाकिस्तान की जेल से छुड़ाया था। अत: हम कह सकते हैं कि जिन तालिबानी नेताओं को अमेरिका ने आगे बढ़ाया, नेतृत्व उन्हीं के पास है। यह बात अमेरिका के पक्ष में होगी, लेकिन इससे खुद तालिबान या अफगानिस्तान को क्या फायदा होगा, यह देखने वाली बात होगी।

तालिबानी सरकार के चेहरे एक-एक कर सामने आने चाहिए। तालिबान अगर हमारे समय की एक हकीकत है, तो उससे निपटने की व्यावहारिकता भी भारत या दुनिया के अन्य देशों में होनी चाहिए। लेकिन यहां जिम्मेदारी खुद तालिबान पर ज्यादा है, उन्हें अगर वैध रूप से सरकार का नेतृत्व करना है, तो उस सभ्यता का परिचय देना पडे़गा, जिसकी दुहाई रूसी राष्ट्रपति पुतिन दे रहे हैं। पुतिन ने कहा है कि तालिबान जितनी जल्दी सभ्य तरीके से लोगों से जुड़ेगा, उससे संवाद करना, संपर्क करना और सवाल पूछना उतना ही आसान होगा। हालांकि, तालिबान का एक हिस्सा है, जो मुंह छिपाए सत्ता में आ बैठा है। मुंह छिपाए किसी का सिर कलम किया जा सकता है, लेकिन अपनी हुकूमत के वास्ते वैधता हासिल करने के लिए बे-नकाब आना होगा। क्या तालिबान या उसके तमाम सहयोगी (आईएस और अल-कायदा भी) परदा उठाकर सामने आ सकेंगे? मजहब का काम हो या मुल्क का, नकाब लगाकर कौन करता है? पुतिन अगर सभ्यता की याद दिला रहे हैं और तालिबान के आर्थिक मददगार चीन को भी कमोबेश बदनामी की चिंता है, तो तालिबान को सुधरे रूप में सामने आना चाहिए। शायद भारत को भी इसी दिशा में विचार-व्यवहार करना चाहिए।
पुतिन ने उचित ही कहा था कि अमेरिकी सेना अफगानिस्तान में 20 साल रही, वहां लोगों को अमेरिकी सभ्यता सिखाने की नाकाम कोशिश की। कोई आश्चर्य नहीं, आज अमेरिका में राष्ट्रपति जो बाइडन की लोकप्रियता अपने सबसे निचले पायदान पर है। मतलब, जिन अमेरिकियों के हित में फौज वापसी हुई, वे भी बाइडन से खुश नहीं हैं। बहरहाल, तालिबान अगर सभ्य ढंग से सरकार चलाने में कामयाब होते हैं, तो इससे जो बाइडन को भले राजनीतिक लाभ हो, मगर अमेरिका के रसूख पर गहरा असर तो पड़ चुका है। अब भी जहां अमेरिका को मुंह चुराने से बचना चाहिए, वहीं तालिबान के नए नेतृत्वकर्ता अब्दुल गनी बरादर के कंधे पर सबसे ज्यादा जिम्मेदारी है। दुनिया देखना चाहेगी कि उन्होंने उन अमेरिकियों के साथ बैठकर क्या सीखा है, जो कम से कम अपने देश में सुशासन और लोकतंत्र के लिए पहचाने जाते हैं।


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