दुनिया का सबसे ठंडा इलाका जलवायु परिवर्तन को लेकर बज रही खतरे की घंटी
दुनिया का सबसे ठंडा इलाका भी अब ठंडा नहीं रहा है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। दुनिया का सबसे ठंडा इलाका भी अब ठंडा नहीं रहा है. यहां भी अधिकतम तापमान का रिकॉर्ड टूट रहा है. आर्कटिक में अधिकतम तापमान का रिकॉर्ड 38 डिग्री सेल्सियस है, जो पिछले साल जून में दर्ज किया गया था. संयुक्त राष्ट्र की संस्था विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने इसकी पुष्टि अभी की है. WMO ने कहा कि यह जलवायु परिवर्तन को लेकर बज रही खतरे की घंटी है.
WMO ने अपने बयान में कहा है कि पिछले साल जून में साइबेरिया के वर्खोयान्स्क (Verkhoyansk) में पारा अधिकतम 38 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया था. यह यहां पर चल रहे हीटवेव का उच्चतम स्तर था. पूरे इलाके में ही गर्मी का पारा औसत से 10 डिग्री सेल्सियस ज्यादा चल रहा था. यह एक ऐसी घटना है जो पूरे इलाके की सर्दी को खत्म कर देगी. यहां का ईकोसिस्टम खत्म हो जाएगा. बढ़ती गर्मी की वजह से लोगों, जीव-जंतुओं की दिक्कतें बढ़ जाएंगी.
WMO के सेक्रेटरी जनरल पेटेरी तालस ने कहा कि ये जलवायु परिवर्तन की वजह से हो रहा है. हमें तुरंत कुछ करना होगा. नहीं तो ऐसी कई खतरे की घंटियां बजने लगेंगी. अगर धरती के किसी भी एक हिस्से का तापमान बदलता है तो उसका असर पूरी दुनिया पर पड़ता है. इसलिए अगर यहां का तापमान भी इसी तरह से बढ़ता रहा तो यहां के लोगों की जीवनशैली बदलेगी, बीमारियां आएंगी, रोजगार चले जाएंगे और न जाने कितनी समस्याओं से सामना करना पड़ेगा.
पेटेरी तालस ने कहा कि अधिकतम तापमान का इलाका भू-मध्यसागर वाला हो सकता है, ऐसा मौसम वहीं जचता है. लेकिन यह आर्कटिक के लिए खतरनाक है. इससे नुकसान होगा. आर्कटिक में पिछले साल तापमान बढ़ने की एक वजह वहां के जंगलों में लगी आग भी थी. जिससे काफी बड़ा इलाका जलकर खाक हो गया. तापमान में इजाफा हुआ और धुएं के बादल लगभग साल भर छाए रहे.
रूस की फॉरेस्ट्री एजेंसी के मुताबिक साइबेरिया के जंगलों में लगी आग की वजह से 4.60 करोड़ एकड़ जमीन जलकर खाक हो गई. इस आग से निकला धुआं उत्तरी ध्रुव तक गया. वर्खोयान्स्क (Verkhoyansk) आर्कटिक सर्किल से 115 किलोमीटर दूर है. यहां पर मौजूद मौसम विभाग का केंद्र साल 1885 से यहां का तापमान दर्ज कर रहा है. लगातार बढ़ रहे तापमान की वजह से यहां पर नया केंद्र बनाना पड़ा. ताकि एक्सट्रीम वेदर की गणना की जा सकते.
आर्कटिक का तापमान वैश्विक तापमान के औसत से दोगुना ज्यादा गर्म हो रहा है. जिसकी वजह से वहां पर जॉम्बी फायर (Zombies Fires) देखने को मिल रहे हैं. आर्कटिक में कार्बन रिच पीट का जमावड़ा है, जो आग तेजी से पकड़ता है. इसकी गर्मी से आर्कटिक के मोटी बर्फ की परत टूट रही है. पर्माफ्रॉस्ट पिघल रहा है. जिसके पिघलने से कई प्राचीन बैक्टीरिया और वायरस बाहर निकल आएंगे. ये ऐसी बीमारियां फैला सकते हैं, जिनकी उम्मीद भी नहीं की गई कभी.
इससे पहले भी आर्कटिक को लेकर वैज्ञानिकों ने चेतावनी जारी की थी कि अगर ऐसे ही तापमान बढ़ता रहा तो यहां पर सबसे ज्यादा दिक्कत होगी पोलर बीयर यानी ध्रुवीय भालू को. इनकी प्रजाति खत्म होगी. या फिर ये गर्म इलाके में आकर ग्रिजली बीयर के साथ संबंध बनाकर हाइब्रिड पिजली भालू (Pizzly Bear) पैदा करेंगे. यानी एक प्रजाति के भालू तो पूरी तरह से खत्म हो सकते हैं.
सिर्फ आर्कटिक ही दुनिया का इकलौता इलाका नहीं है, जिसने अधिकतम तापमान रिकॉर्ड किया है. पिछले साल अंटार्कटिका में स्थित अर्जेंटीना के एस्पेरैन्जा बेस पर 18.3 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया. इस साल इटली के साइराकस में अधिकतम तापमान 48.8 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया. यानी जो जगहें पहले ठंडी हुआ करती थीं, अब वो लगातार ज्यादा तापमान की गिरफ्त में आ रही हैं.
कैलिफोर्निया की डेथ वैली में अधिकतम तापमान ने नया रिकॉर्ड बनाया. यहां पर पारा 54.4 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया था. इससे पहले इससे ज्यादा तापमान सिर्फ एक बार ट्यूनीशिया के केबिली में 7 जुलाई 1931 को रिकॉर्ड किया गया था वह था 55 डिग्री सेल्सियस