अजीबोगरीब: करवा चौथ का व्रत रखने वाली सुहागिने हो जाती है विधवा...

करवा चौथ का व्रत हर सुहागिन महिलाओं के लिए खास होता है। यह पर्व पति-पत्नि के बीच त्याग समर्पण के साथ प्रेम का प्रतीक है।

Update: 2020-10-30 05:28 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| करवा चौथ का व्रत हर सुहागिन महिलाओं के लिए खास होता है। यह पर्व पति-पत्नि के बीच त्याग समर्पण के साथ प्रेम का प्रतीक है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और रात में चांद देखने के बाद अपना व्रत खोलती हैं। इस दिन महिलाए पूरे सोलह श्रृंगार के साथ इस पर्व को धूमधाम से मनाती है। लेकिन हमारे देश में कुछ जगह ऐसी भी है जहां करवा चौथ का व्रत उनके लिए काली रात बनकर आता है जो महिलाए इस व्रत को रखती है उनके पति की मौत हो जाती है। चलिए आज हम बता रहे उन श्रापित जगहों के बारें में जहां पर करवा चौथ सुहागिन महिलाओं के लिए बन चुका है अभिशाप..

इस जगह नही रखा जाता करवा चौथ का व्रत

हरियाण के करनाल में ऐसे तीन गांव कतलाहेडी, गोंदर और औंगद हैं जो अभी तक किसी के श्राप से मुक्त नही हो पाए है। और इसी के चलते इन जगहों पर अरसे से करवा चौथ का पर्व नहीं मनाया गया है। स्‍थानीय लोगों के अनुसार इस जगह कि कोई भी सुहागिन महिला यदि करवा चौथ का व्रत रखती है तो उसका सुहाग तुंरत ही उजड़ जाता है। इसके पीछे का कारण यह है कि इस गांव के लोगों के परिवार शापित हैं और अरसे पहले हुई भूल का आज भी पश्चाताप कर रहे हैं। हालांकि इन गांवों की बेटियों की शादी बाहर होने के बाद वो करवा चौथ का व्रत कर सकती हैं। तब उनके सुहाग पर किसी तरह का संकट नहीं आता।

यह परंपरा है हरियाण के करनाल स्थित तीन गांव में। ये गांव हैं कतलाहेडी, गोंदर और औंगद। इसी मान्यता की वजह से इन गांवों में अरसे से करवा चौथ का व्रत नहीं रखा गया है। जानकार बताते हैं अब से लगभग 600 साल पहले राहड़ा की एक लड़की का विवाह गोंदर के एक युवक से हुई थी। बताते हैं वह लड़की अपने मायके में थी वहीं करवा चौथ से एक रात पहले उसने सपने में देखा कि किसी ने उसके पति की हत्या कर शव को बाजरे के ढेर में छिपाकर रखा है। उसने यह बात मायके वालों से बताई तो करवा चौथ के दिन सभी उसके ससुराल गोंदर गए लेकिन वहां पति से मुलाकात नहीं हुई फिर उसकी बताई जगह में खोजने पर पति का शव मिल गया।

पति की मौत के बाद उस महिला ने अपना करवा चौथ का व्रत गांव की महिलाओं को देना चाहा लेकिन सभी ने इससे मना कर दिया। इस दुख से परेशान महिला करवा सहित जमीन में समा गई। कहते हैं उसके बाद जो भी गांव की सुहाग ने करवा चौथ का व्रत किया वह विधवा हो गई।

हर‍ियाणा के श्रापित तीनों गांवों के अलावा मथुरा के सुरीर में भी करवा चौथ नहीं मनाया जाता है। यहां करवा चौथ न मनाने के पीछे की वजह यह बताई जाती है कि अब से करीब सैकड़ों साल पहले गांव राम नगला से एक ब्राह्मण जोड़ा सुरीर हो कर गुजर रहा था। जोड़े को विदाई में एक भैंसा मिली थी, पर सुरीर वालों ने जोड़े से भैंसा को अपना बता कर छुड़ा लिया। इसपर ब्राह्मण अपनी भैंस के लिए अड़ गया सुरीर वालों ने उस ब्राह्मण की हत्या कर दी। पति की मौत से दु:खी पत्‍नी ने सुरीर वालों को श्राप दिया कि यहां की सुहाग‍न स्त्रियां अगर पत‍ि की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखेंगी तो वे विधवा हो जाएंगी।

‍थानीय लोगों की मानें तो करीब दो सौ साल पहले ब्राह्मणी के श्राप की वजह से यहां की महिलाएं शादी के शुरुआत के एक साल तक बिंदी-‌सिंदूर नहीं लगाती हैं। और यहां सुहागन श्राप के कारण ही करवा चौथ का व्रत कभी नहीं रखती हैं।

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