पति की सड़क हादसे में हुई मौत, पत्नी ने घर में बनवा दी मंदिर, रोजाना करती हैं पूजा

आंध्र प्रदेश के प्रकाशम जिले में एक पत्नी ने मंदिर बनाया और वहां अपने पति की मूर्ति की पूजा की

Update: 2021-08-13 06:18 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आंध्र प्रदेश के प्रकाशम जिले (Andhra Pradesh's Prakasam) में एक पत्नी ने मंदिर बनाया और वहां अपने पति की मूर्ति की पूजा की. एक बहुत ही पुराने खयालात परिवार से आने वाली महिला पद्मावती ने हमेशा अपनी मां को अपने पिता की पूजा करते देखा था और अपने जीवन में भी यही रास्ता चुना. अंकिरेड्डी और पद्मावती ने शादी कर ली लेकिन दुर्भाग्य से चार साल पहले एक दुर्घटना में पति की मृत्यु हो गई थी. पद्मावती की जिंदगी जैसे तबाह हो गई और न जाने क्या-क्या करने लगी, क्योंकि समय बीतने के साथ वह अपने पति को नहीं भूल सकी.

पत्नी करती है पति की मूर्ति की पूजा
एबीपी देशम के अनुसार, जब पद्मावती से उनके मृत पति के लिए मंदिर बनाने का कारण पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि उनकी मृत्यु के कुछ दिनों बाद अंकिरेड्डी ने उनके सपने में दर्शन दिए और उनके लिए एक मंदिर बनाने को कहा. पद्मावती ने खुलासा किया कि कैसे उन्होंने अपने पति के लिए मंदिर बनवाया. उन्होंने अपने पति के रूप में एक संगमरमर की मूर्ति खड़ी की और कहा कि मैं तब से उनकी पूजा कर रही हूं. उन्होंने यह भी कहा कि जब उनके पति जीवित थे, तो वह उसे भगवान के रूप में देखा करती थी.
मंदिर बनवाकर लोगों को हैरानी में डाला
पद्मावती ने यह भी खुलासा किया कि अंकिरेड्डी के जन्मदिन सहित उनके विशेष दिनों में पूजा और अभिषेक किया जाएगा. ऐसा कहा जाता है कि पद्मावती ने हर पूर्णिमा को अपने पति के लिए बनाए गए मंदिर में गरीबों को मुफ्त भोजन परोसा है. उन्होंने कहा कि उनका बेटा शिवशंकर रेड्डी ये सेवाएं अंकिरेड्डी के दोस्त तिरुपति रेड्डी की मदद से करता है. अंकिरेड्डी और पद्मावती के पुत्र शिवशंकर रेड्डी ने कहा कि उन्हें ऐसे माता-पिता से जन्म लेने का सौभाग्य मिला है, जो उन मूल्यों का सम्मान करते हैं.
कुछ ऐसा ही एक और आया था मामला
इसी तरह की एक घटना में तेलंगाना में एक पोते ने अपने दादा के लिए मंदिर बनवाया. मोगुलप्पा विकाराबाद जिले के नवलगा गांव के रहने वाले थे और उनकी कोई संतान नहीं थी. उन्होंने एक बच्चे को गोद लिया और उसे पोते के रूप में अपने बच्चे की तरह पाला. दुर्भाग्य से, मोगुलप्पा ने 2013 में अंतिम सांस ली और यह उनके पोते द्वारा बर्दाश्त नहीं किया जा सका. तब उन्होंने अपने दादा की याद में अपनी जमीन पर मंदिर बनाने का फैसला किया. मोगुलप्पा के पोते, ईश्वर ने कहा कि मंदिर बनाने के लिए उन्होंने कुल 24 लाख रुपये खर्च किए.


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