रेगिस्तान में रेतीली ज़मीन पर भी मछलियों की शानदार प्रजातियां, विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अब इसकी पालन में भी झंडे गाड़े

मरूधरा के रेतीले धोरों के लिए मशहूर चूरू के किसानों ने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अब मछली पालन में भी झंडे गाड़ दिए हैं.

Update: 2020-10-23 05:22 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| रूधरा के रेतीले धोरों के लिए मशहूर चूरू के किसानों ने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अब मछली पालन में भी झंडे गाड़ दिए हैं. आपको सुनकर भले ही हैरानी हो, लेकिन यह सच है कि यहां की रेतीली ज़मीन पर भी मछलियों की शानदार प्रजातियां बड़े पैमाने पर पनप रही हैं. जिले के श्योपुरा, गागड़वास, रतनपुरा सहित 6 अन्य गांव के करीब 260 किसानों ने मछली उत्पादन में सफलता के कीर्तिमान कायम किये हैं और पिछले सीजन में करीब 360 टन झींगा मछली यहां से सप्लाई की है. रोचक बात यह है कि यहां की झींगा (Prawn) मछली ऑस्ट्रेलिया (Australia), संयुक्त राज्य अमेरिका (USA), सऊदी अरब (UAE) के अलावा यूरोप (Europe) के कई देशों में एक्सपोर्ट की जा रही है और अपनी बेहतर गुणवत्ता के कारण वहां खूब पसंद की जा रही है. उल्लेखनीय है कि प्रोटीन, विटामिन और न्यूट्रीशन्स से भरपूर झींगा मछली में ओमेगा 3 पाया जाता है और इसे पोषण से भरपूर भोजन माना जाता है.

झींगा मछली पालन से जुड़े किसानों के मुताबिक, पिछले तीन चार साल से इस क्षेत्र के किसान मछली पालन के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं. किसानों ने 200 गुणा 200 वर्ग फीट से लेकर 200 गुणा 300 वर्ग फीट आकार के कृत्रिम तालाब बना रखे हैं, जिसमें झींगा मछली पालन का काम किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि क्षेत्र के करीब 260 किसानों ने झींगा पालन का काम शुरू किया है और वे इससे अच्छी कमाई कर रहे हैं. एक अनुमान के अनुसार पिछले सीजन में करीब 360 टन झींगा का उत्पादन इस क्षेत्र में हुआ है. मछली के वजन के अनुसार 180 रुपए किलो से लेकर 600 रुपए किलो तक के भाव यहां मिल जाते हैं. इस हिसाब से करीब 15 करोड़ से ज्यादा की झींगा मछलियां यहां से एक्सपोर्ट हुई हैं.

झींगा मछली पालन से जुड़े किसान ने बताया कि उन्होंने पिछले एक सीजन में करीब 28 लाख रुपए की मछलियां बेची हैं. उन्होंने इसी साल यह काम शुरू किया है, इसलिए उनका निवेश अधिक हुआ है और मुनाफा नहीं हो पाया, लेकिन उम्मीद है कि अगले सीजन में उन्हें कम लागत में अच्छा उत्पादन मिल सकेगा. झींगा मछली पालन से जुड़े किसान अच्छी आय ले रहे हैं. उन्होंने बताया कि झींगा मछलियों के पालन के लिए देखरेख बहुत महत्त्वपूर्ण है और दिन में करीब 18 घंटे पानी में एरियेटर चलाना पड़ता है, जिससे मछलियों को पूरी ऑक्सीजन और पोषण मिलता रहे. किसानों ने बताया कि क्षेत्र का पानी खारा है लेकिन इसकी गुणवत्ता के मापदंड झींगा पालन के हिसाब से उत्तम है. इसके अलावा वे पोषण बनाए रखने के लिए नियमित रूप से आवश्यक दवाएं पानी में डालते हैं.

किसानों ने बताया कि फिलहाल बिजली कनेक्शन नहीं होने के कारण ज्यादातर किसान डीजल जेनरेटर से ही एरियेटर चला रहे हैं, जिसके कारण उनकी लागत ज्यादा आ रही है. मस्त्यपालन विभाग की ओर से इन किसानों को तकनीकी सहायता मिले तो इनकी आय और बढ़ाई जा सकती है. मदद मिलने से किसानों को काम में और अधिक गुणवत्ता भी आ सकेगी.

मछलियों की देख रेख के लिए चूरू जिले में डॉक्टरों का भी अभाव है. मछली पालक किसानों को मछलियों की देखभाल के लिए हरियाणा के हिसार से चिकित्सक बुलाना पड़ता है जो किसानों के लिए काफी महंगा सौदा साबित हो रहा है. अगर चूरु जिले में मछली पालन किसानों को यहां चिकित्सक उपलब्ध हो जाए और सुविधाएं मिले तो किसानों के लिए यह व्यवसाय और ज्यादा फायदेमंद साबित हो सकता है. मत्स्य विभाग का कार्यालय बीकानेर संभाग में हनुमानगढ़ में है. इससे भी यहां पर मत्स्य पालन करने वाले लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. मत्स्य विभाग के अधिकारी मदन सिंह का कहते हैं कि "किसानों से आवेदन तो लिए जा रहे हैं और यहां पर संभावनाएं भी चूरु जिले में अच्छी हैं लेकिन सब्सिडी नहीं मिलने से किसानों का रुझान काफी कम नजर आता है."


 

 

Tags:    

Similar News

-->