पानी के रूप में जीवन के संकेत मिले हैं लेकिन अभी भी इसके ठोस भौतिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। शुक्र जैसे ग्रहों के इतिहास से पता चलता है कि पृथ्वी के निकट ग्रहों पर कभी जीवन था लेकिन फिलहाल यहां ऐसा कुछ भी नहीं देखा गया है।
नई तकनीक के साथ वैज्ञानिक अब और बेहतर तरीके से अंतरिक्ष को समझ सकते हैं। हाल ही में वैज्ञानिकों के हाथ एक बड़ी सफलता लगी है जिसने पूरी स्पेस कम्युनिटी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। L98-59 तारे की परिक्रमा करने वाले एक एक्सोप्लैनेट की खोज की गई है। यह एक्सोप्लैनेट पूरी तरह से पानी से भरा हुआ है जिसके कारण इस पर जीवन पाए जाने की संभावना कई गुना बढ़ गई है।
शुक्र से आधा है द्रव्यमान
बीबीसी की स्काई एट नाइट मैग्जीन के अनुसार यह ग्रह 2019 में ट्रांजिटिंग एक्सोप्लैनेट सर्वे सैटेलाइट (टीईएसएस) की खोज में पाए गए तीन ग्रहों में से एक है। इसका द्रव्यमान शुक्र ग्रह की तुलना में आधा है। यह रेडियल वेलोसिटी तकनीकों का इस्तेमाल करके अध्ययन किया गया अब तक सबसे छोटा ग्रह है। अंतरिक्ष में आए दिन नए ग्रहों की खोज की जाती है ऐसे में इनकी खोज खास कैसे है?
पृथ्वी से 35 प्रकाशवर्ष दूर स्थित
हमारे सौर मंडल के आंतरिक ग्रहों के साथ समानता के कारण इन्होंने विशेष रूप से खगोलविदों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। यह खास इसलिए है क्योंकि L98-59 तारा धरती से 35 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित है। स्पेस के लिहाज से यह दूरी कम है। ग्रहों के द्रव्यमान का पता लगाने के लिए वेरी लार्ज टेलीस्कोप ने रेडियल वेलोसिटी तकनीकों का इस्तेमाल किया था।