अजीबोगरीब बीमारी से जूझ रहा है 18 साल का लड़का, शरीर पर नहीं चढ़ती है बोटी
आज के युग में जहां लोग बढ़ते हुए वज़न (The Thinnest Boy ) से परेशान रहते हैं, वहीं डायलन लोम्बार्ड (Dylan Lombard) नाम के लड़के की दिक्कत है उसके शरीर पर मांस का न चढ़ना
आज के युग में जहां लोग बढ़ते हुए वज़न (The Thinnest Boy ) से परेशान रहते हैं, वहीं डायलन लोम्बार्ड (Dylan Lombard) नाम के लड़के की दिक्कत है उसके शरीर पर मांस का न चढ़ना. उसके शरीर में एक अजीब स्थिति बन चुकी है, जो त्वचा में फैटी टिश्यू (Boy Can not store fat) बनने से रोकती है. इसके नतीजे के तौर पर इस शख्स के शरीर की त्वचा हड्डियों से चिपकी नज़र आती है.
18 साल के डायलन की इस बीमारी के चलते वो इतना अजीब दिखता है कि उसे रास्ते में लोग घूरने लगते हैं. Dail Star की रिपोर्ट के मुताबिक खुद डायलन (Dylan Lombard) इस बात से परेशान रहता है कि लोग उसे देखकर हंसते हैं और बिल्कुल अलग तरीके से उससे व्यवहार करते हैं. स्कॉटलैंड के ग्लासगो (Glasgow, Scotland) में रहने वाले डायलन की इस अजीबोगरीब स्थिति को मैंडिबुलर हाइपोप्लासिया विद डेफनेस एंड प्रोजेरॉयड फीचर्स (Mandibular Hypoplasia with Deafness and Progeroid Features ) कहते हैं.
त्वचा के लिए नहीं रहती है चिकनाई
डायलन के मुताबिक उसकी मां उसके गिरते हुए वज़न को देखकर खासी चिंतित रहती हैं. उनकी अजीबोगरीब स्थिति के चलते उनकी त्वचा के नीचे फैटी टिश्यू नहीं बनते हैं और उनके जबड़े, कान और होठों का आकार सामान्य से काफी कम है. 10 साल के बाद डॉक्टर्स को उनकी इस स्थिति का पता चल पाया. जो लोग उनकी स्थिति को नहीं समझते, वे उन्हें घूरते हैं, उन पर हंसते हैं और उन्हें अलग तरह से देखते हैं. हालांकि उनके पास ऐसे लोग भी हैं, जो उन्हें समर्थन देते हैं और उन्हें प्यार करते हैं. डायलन बताते हैं कि उन्हें फोटो खींचने का शौक है और वे अपने इस काम से काफी प्रेरणा लेते हैं.
दुनिया में सिर्फ 12 लोगों है MDF
मैंडिबुलर हाइपोप्लासिया विद डेफनेस एंड प्रोजेरॉयड फीचर्स (Mandibular Hypoplasia with Deafness and Progeroid Features ) नाम की ये बीमारी दुनिया भर में सिर्फ 12 लोगों को है. इस कंडीशन का पहली बार पता यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल स्कूल एंड मोलेक्यूलर जेनेटिक्स डिपार्टमेंट में चला था. ब्रिटेन के पैरा साइक्लिस्ट टॉम स्टैनिफोर्ड को भी इस स्थिति के होने का शक था. इस स्थिति में लोगों सुनाई देने की क्षमता लगभग न के बराबर हो जाती है.