'मैरिटल रेप' पर फैसला सुरक्षित, दिल्ली हाईकोर्ट के निर्णय पर टिकीं सबकी नजरें

उच्च न्यायालय ने वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने के मामले में पक्ष रखने के लिए बार फिर समय मांगने पर केंद्र सरकार के रवैये पर नाराजगी जताई है।

Update: 2022-02-21 14:53 GMT

दिल्ली : उच्च न्यायालय ने वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने के मामले में पक्ष रखने के लिए बार फिर समय मांगने पर केंद्र सरकार के रवैये पर नाराजगी जताई है। अदालत ने केंद्र को समय प्रदान करने से इनकार करते हुए अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

न्यायमूर्ति राजीव शकधर और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ के समक्ष केंद्र ने तर्क रखा कि उसने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस मुद्दे पर उनकी टिप्पणी के लिए पत्र भेजा है। केंद्र के अधिवक्ता ने कहा कि जब तक इनपुट प्राप्त नहीं हो जाते, तब तक कार्यवाही स्थगित कर दी जाए।
मामले को स्थगित करना संभव नहीं
पीठ ने उनके तर्क पर असहमति जताते हुए कहा चल रहे मामले को स्थगित करना संभव नहीं है क्योंकि इस मुद्दे पर केंद्र का परामर्श कब तक समाप्त होगा इसकी कोई अंतिम तिथि नहीं है। पीठ ने सुनवाई 2 मार्च तक बंद करते हुए केंद्र सहित सभी पक्षों को अपनी लिखित दलीलें पेश करने को कहा है। इससे पहले केंद्र सरकार की और से पेश अतिरिक्त सालीसीटर जनरल तुषार मेहता ने मामले में हमारा सुविचारित स्टैंड है कि राज्य सरकारों और अन्य हितधारकों के साथ परामर्श के बाद ही एक स्टैंड लिया जाएगा। 10 फरवरी को एक संचार राज्य सरकारों और अन्य हितधारकों को उनके सुझाव मांगने के लिए भेजा गया है।

परामर्श के बाद ही अपना पक्ष रख पाएंगे
पीठ के पूछने पर उन्होंने कहा अभी तक किसी राज्य सरकार से संचार पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है। एसजी मेहता ने भी तर्क दिया आम तौर पर जब एक विधायी अधिनियम को चुनौती दी जाती है तो हमने एक स्टैंड लिया। लेकिन वे वाणिज्यिक या कराधान कानून हैं। ऐसे बहुत कम मामले होते हैं जब इस तरह के व्यापक परिणाम मिलते हैं, इसलिए हमारा स्टैंड है कि हम परामर्श के बाद ही अपना पक्ष रख पाएंगे।

याचिकाओं पर पक्ष रखने के लिए दिया था दो सप्ताह का समय
अदालत भारतीय दुष्कर्म कानून के तहत पतियों को दी गई छूट को खत्म करने की मांग वाली याचिकाओं पर विचार कर रही है। उच्च न्यायालय ने सात फरवरी को केंद्र को वैवाहिक दुष्कर्म के अपराधीकरण की मांग वाली याचिकाओं पर अपना पक्ष रखने के लिए दो सप्ताह का समय दिया था। केंद्र ने एक हलफनामा दायर कर अदालत से याचिकाओं पर सुनवाई टालने का आग्रह किया था, जिसमें कहा गया था कि वैवाहिक दुष्कर्म का अपराधीकरण देश में बहुत दूर तक सामाजिक-कानूनी प्रभाव डालता है और राज्य सरकारों सहित विभिन्न हितधारकों के साथ एक सार्थक परामर्श प्रक्रिया की आवश्यकता है।


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