दिल्ली: एमसीडी के महापौर का चुनाव होने में देरी का सत्तारूढ़ दल को खामियाजा भुगतना पड़ेगा, क्योंकि वह एमसीडी के आगामी वित्तीय वर्ष के बजट में अपने चुनावी वादे पूरा करने का प्रावधान नहीं करा सकेगा। इस मामले में सत्तापक्ष को एक साल तक इंतजार करना पड़ेगा।
दरअसल एमसीडी के नियमों के तहत उसका बजट 25 जनवरी तक सदन में पहुंच जाना चाहिए, लेकिन एमसीडी में मनोनीत पार्षदों को शपथ दिलाने के मामले में सत्तापक्ष व विपक्ष के बीच चल रहे टकराव और बीते छह जनवरी को हुए हंगामे के मद्देनजर 25 जनवरी तक महापौर का चुनाव होने की संभावना बहुत कम दिख रही है।
एमसीडी के नियमों के अनुसार नए वित्तीय वर्ष के बजट प्रस्ताव आयुक्त की ओर से 8 दिसंबर तक स्थायी समिति में प्रस्तुत करने होते है। इस वर्ष स्थायी समिति व सदन गठित नहीं होने के कारण आयुक्त ने विशेष अधिकारी के समक्ष 8 दिसंबर को बजट प्रस्ताव प्रस्तुत किए थे। इस दौरान विशेष अधिकारी ने कहा था कि एमसीडी के चुनाव होने के साथ-साथ उसका परिणाम आ चुका है।
मगर महापौर का चुनाव नहीं होने के कारण सदन का गठन अभी तक नहीं हुआ है। जबकि एमसीडी के नियमों के अनुसार 25 जनवरी तक बजट प्रस्ताव सदन में पहुंच जाने चाहिए। इसके बाद ही सदन में बजट प्रस्तावों पर चर्चा होने के बाद उन पर स्वीकृत व रद्द किया जाता है।
14 फरवरी तक बजट पास होना जरूरी
एमसीडी के अधिकारियों का कहना है कि 20 जनवरी तक महापौर का चुनाव होने पर वह सदन में बजट पास करा सकते है। उन्हें सदन में बजट पास कराने के लिए कई औपचारिकताएं पूरी करनी होती है और उनके लिए समय निर्धारित है, मगर 20 जनवरी तक महापौर का चुनाव होने की संभावना नहीं दिख रही है। इस कारण उन्होंने विशेष अधिकारी से आगामी वित्तीय वर्ष का बजट पास कराने की तैयारी शुरू कर दी है। वह बजट प्रस्तावों को अंतिम रूप देने लग गए है। एमसीडी का बजट 14 फरवरी तक हर हाल में पास करना आवश्यक है।
उधर महापौर का चुनाव नहीं होने पर विशेेष अधिकारी की ओर से बजट प्रस्ताव पर मुहर लगने पर सत्तारूढ़ दल का दिक्कत होगी, क्योंकि वह विभिन्न कर व शुल्क माफ करने और उनमें कमी करने का चुनावी वादा पूरा नहीं कर सकेगा। दरअसल बजट में इस तरह के प्रस्ताव पास नहीं होंगे और उन्हें अपने वादे पूरे करने के एक साल इंतजार करना पड़ेगा। इसके अलावा सत्तारूढ़ दल के वादों के मुताबिक विभिन्न विकास कार्य और समस्याओं का समाधान करने की योजनाओं के लिए भी बजट में राशि का प्रावधान नहीं हो पाएगा। लिहाजा आगामी वित्त वर्ष के दौरान सत्तारूढ़ दल को विकास कार्य करने और समस्याओं का समाधान करने के मामले में अधिकारियों की योजनाओं पर कार्य करना पड़ेगा।