फागुन पीत वसन उतार विदा ले चुका है और नव पल्लवित चैत जीवन संजीवनी का परचम लहराते आ पहुंचा है! पर, हैरान परेशान है चैत कि नववर्ष उल्लास में जिस संजीवनी की सौगात वह लाया है, लुटी कायनात में उसका वजूद कितना जोखिम भरा है! एक तरफ महादानी कुदरत और दूसरी तरफ क्षुद्र स्वार्थ हित में डूबा इंसान! इंसानी विरासत से रिक्त... निरंतर विषाक्तता की ओर बढ़ता...प्राण वायु को लीलता, नदी, पहाड़, वन का दोहन करता... जीवन को सेहत विहीन बना रुग्णता के दलदल में ढकेलता!
👉क्या लेना था...क्या ले लिया!
नदियों को उलीच, बंजर बना रेत बेचने लगे
संजीवनी जड़ी बूटियां लापता हो गई , क्योंकि पहाड़ से पत्थर चाहिए थे! पेड़ से लकड़ी चाहिए थी, छांव को परे कर दिया। अब सुलग रहा है जीवन! कृत्रिम ठंडक देने वाले एयरकंडीशनर सीमित घरों, भवनों को ठंडा कर रहे हैं, पर बाहर आग उगल कर!
खेत खलिहानोन की फसल नकद फसल के कारोबार में जहरीली हो गई है! रेत से पक्की सड़क , वन उजाड़, पत्थर से कंक्रीट के जंगल उगा लिए... लकड़ी के नक्काशीदार दरवाजे फर्नीचर सजा लिए...अब
सूखे कुओं में झांकते, बंजर नदिया ताकते...लू के थपेड़ों से दो चार होते आक्सीजन सिलेंडर बेच रहे हैं! कायनात उजाड़, उदास, आर्तनाद में डूबी है... किसी को किसी की नहीं पड़ी, सब अपने बनाए कैदखानों में उलझे हैं, इश्तिहारों में समाधान खोजते!
👉मातृ शक्ति पूजन का मर्म!
होली के रंग तरबतर... फिर शीतलाष्टमी पूजन और उसके बाद मातृ शक्ति पूजन! गहरे अर्थ और संदेश लिए है, यह चलन, यह परंपरा! शक्ति आराधना के संग उपवास के क्या मायने हैं, विवेचना करें तो आत्म आनंद के झरोखे खुलने लगते हैं!
👉धार्मिक मान्यताएं
हिंदू पंचांग के अनुसार फागुन माह साल का आखिरी और चैत माह नव वर्ष का पहला महीना होता है। चैत माह 23 अप्रैल तक चलेगा। इस माह के शुक्ल पक्ष के आगमन के संग विक्रम संवत शुरू है। नया विक्रम संवत 2081 है यह।
👉धर्म उपासना, सेहत का माह
चैत माह व्रत उपवास रखे जाते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ब्रह्राजी ने ही चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि से ही सृष्टि की रचना शुरू की थी। इसके अलावा इस दिन भगवान विष्णु ने दशावतार के रूप में पहला मत्स्य अवतार लेकर पृथ्वी को प्रलय से बचाया था। चैत्र माह के पहले दिन ही भगवान राम का राज्यभिषेक हुआ था।
👉नवपल्लवित ऊर्जा से भरपूर
चैत माह हिंदू धर्म परंपरा में विशेष स्थान लिए है। फसलें पक जाती हैं, नवपल्लव म नवजीवन सरगम पर सरसराते लगते हैं। भोर में सूर्य देव ध्यान, योग के लिए आमंत्रित करते जगत को ऊर्जावान बने रहने का संदेशा देते हैं। शीतलापूजन का मर्म है कि अब से बासी भोजन सेवन के दिन बीत गए।
👉 कुदरत संग मित्रता का न्यौता
-यह कुदरत के संग सदा मित्र भाव रखने का न्यौता देता मौसम है। जीव, जानवरों से हिलमिल जाने का, सेवा करने का संदेशा है। रंभाते गाय बछड़े की बोली समझने का, चिड़ियों के दाने पानी, उनके अस्तित्व को बचाए रखने का संकेत है।
👉अन्ततः सोचिए...
आने वाली पीढ़ी के लिए प्रकृति विरासत के नाम पर हम क्या छोड़ के जाने वाले हैं!