सरकारी अस्पताल में पहली जीनोम अनुक्रमण प्रयोगशाला खुलेगी, एनसीआर नॉएडा के लोगो को होगा फ़ायदा
एनसीआर नॉएडा न्यूज़: उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा गौतमबुद्ध नगर समेत पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश को आज बड़ी सौगात देने वाले हैं। ग्रेटर नोएडा के कासना कस्बे में स्थित राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान (जिम्स) में पश्चिमी यूपी की पहली जीनोम अनुक्रमण प्रयोगशाला (जीनोम सीक्वेंसिंग लैब) खुलने जा रही है। आज दुर्गा शंकर मिश्रा जिम्स अस्पताल में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के पहले जीनोम सीक्वेंसिंग लैब का उद्घाटन करेंगे। यह लोगों के लिए और उत्तर प्रदेश स्वास्थ्य विभाग के लिए एक बड़ी सौगात होगी।
कोरोना के बाद बढ़ी जरूरत: जिम्स के निदेशक ब्रिगेडियर डॉ.राकेश गुप्ता ने जानकारी देते हुए कहा, "शुरुआत में हम रोजाना लगभग 50 नमूनों का परीक्षण करने में सक्षम होंगे। सिर्फ कोविड -19 ही नहीं, यह लैब डेंगू बुखार जैसी कई अन्य बीमारियों के जीनोम अनुक्रमण में मदद करेगी, जो चार अलग-अलग रूपों में होती है। अन्य वायरल संक्रमणों को भी ट्रैक किया जा सकता है और उसी के अनुसार इलाज किया जा सकता है।
सैंपल जीनोम सीक्वेंसिंग लैब बेहद जरूरी: अभी तक सैंपल जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए दिल्ली या लखनऊ भेजे जाते हैं। बड़ी संख्या में नमूनों की जांच करने वाली कम प्रयोगशालाएं हैं। जिसके कारण रोग पैदा करने वाले सूक्ष्मजीव की आनुवंशिक संरचना के बारे में जानने में एक सप्ताह तक का समय लगता है। इससे उपचार में देरी होती है। कोविड-19 महामारी के प्रकोप के चलते जीन अनुक्रमण अनिवार्य हो गया है। क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में घातक वायरस के कई प्रकार अलग-अलग लक्षण पेश करते हुए तेजी से दिखाई दिए। इससे मरीजों को प्रभावित करने वाले वेरिएंट की पहचान करना बेहद जरूरी हो गया। हालाकि, इस विधि का उपयोग कई अन्य बीमारियों में भी किया जाता है।
रोगी और चिकित्सक लाभान्वित होंगे: यूपी के मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा ने कहा, "जिनोम सीक्वेंसिंग लैब शुरू होने से पश्चिम उत्तर प्रदेश के आम आदमी और चिकित्सकों को बड़ा फायदा मिलेगा। दरअसल, अभी किसी वायरस से पीड़ित मरीज को सही इलाज देने में परेशानी होती है। जब सही वायरस का पता चलता है, तभी सही इलाज मिल पाता है। कई बार सही वायरस का पता लगाने में हफ्ते या 10 दिन का वक्त बीत जाता है। यह स्थिति मरीजों के लिए जानलेवा साबित होती है। दूसरी तरफ चिकित्सक भी परेशान रहते हैं। मरीजों में मृत्यु दर बढ़ने से चिकित्सकों का मनोबल गिरता है।"