उच्चतम न्यायालय के फैसले को लेकर प्राधिकरण ने सरकार को लिखी चिट्ठी, दिवालिया कानून में बदलाव की ज़रूरत
दिल्ली एनसीआर न्यूज़: उच्चतम न्यायालय ने एक फैसले में नोएडा प्राधिकरण को फाइनेशियल क्रेडिटर की बजाय ऑपरेशनल क्रेडिटर माना था। मतलब, दिवालिया प्रक्रिया के दौरान बिल्डरों से आने वाले पैसे को सबसे पहले कर्जा देने वाले बैंक और फिर फ्लैट खरीदारों को दिया जाएगा। अगर इनके बाद पैसा बचता है तो अंत में प्राधिकरण को पैसा मिलेगा। अब प्राधिकरण ने खुद को फाइनेनशियल क्रेडिटर की श्रेणी में रखने के लिए यूपी सरकार को दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता में संशोधन करवाने के लिए यूपी सरकार को पत्र लिखा है।
मौजूदा कानून के तहत अथॉरिटी प्राथमिक लेनदार नहीं: मई महीने में एक मामले में फैसला सुनाते हुए उच्चतम न्यायालय ने नोएडा प्राधिकरण को आईबीसी के तहत वित्तीय ऋणदाता नहीं, बल्कि कामकाज के संचालन को सामान उपलब्ध करवाने वाला ऋणदाता है। कुल मिलाकर उच्चतम न्यायालय ने नोएडा प्राधिकरण को फाइनेंशियल नहीं बल्कि ऑपरेशनल क्रेडिटर माना है। एनसीएलटी में चल रहे केस के दौरान बकाया वापसी के समय बैंक, फ्लैट खरीदार और अन्य वित्तीय संस्थानों को उनका पैसा मिलने के बाद प्राधिकरण का नंबर आएगा।
एनसीएलटी में चल रहे 22 मुकदमों में फंसे 6,200 करोड़ रुपये: अभी तक नोएडा प्राधिकरण सुप्रीम कोर्ट में कह रहा था कि बिल्डरों से सबसे पहले बकाया दिलाया जाए। प्राधिकरण यह दावेदारी कर रहा था। न्यायालय ने यह तर्क मानने से इंकार कर दिया। इस फैसले से नोएडा प्राधिकरण को तगड़ा झटका लगा। नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों ने बताया कि अगर कानून में अथॉरिटी को फाइनेंशियल क्रेडिटर मान लिया जाए तो उसका पैसा सबसे पहले मिलेगा। फाइनेंशियल क्रेडिर की श्रेणी में इसलिए शामिल किया जाना चाहिए, क्योंकि प्राधिकरण बिल्डर को लीज पर जमीन देता है। उसका पैसा किश्तों में लेता है। अथॉरिटी ने जो पत्र यूपी सरकार को भेजा है, उसकी एक कॉपी केंद्र सरकार को भी भेजी जाएगी। नोएडा के एक उच्चाधिकारी ने बताया कि नेशनल कम्पनी लॉ ट्रिब्यूनल में चल रहे करीब 22 मामलों में प्राधिकरण का 6,200 करोड़ रुपये फंसा हुआ है