यमुना के पानी में मौजूद हैं सात लाख गुना ज्यादा बैक्टीरिया
भले ही दिल्ली सरकार ने अगले तीन साल में यमुना को साफ करने का लक्ष्य निर्धारित किया हो, लेकिन फिलहाल हालत बेहद खराब है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भले ही दिल्ली सरकार ने अगले तीन साल में यमुना को साफ करने का लक्ष्य निर्धारित किया हो, लेकिन फिलहाल हालत बेहद खराब है। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के मुताबिक यमुना के पानी में स्वीकृति सीमा से सात लाख गुना ज्यादा फेकल कोलीफार्म यानी मल में पाया जाने वाला बैक्टीरिया है। दिल्ली में प्रवेश करते समय यमुना का पानी कुछ हद तक साफ रहता है।
पल्ला क्षेत्र में पानी में बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) का स्तर स्वीकृत सीमा के अंदर है, लेकिन इसके बाद से ही यमुना में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता जाता है। डीपीसीसी द्वारा वर्ष 2021 जून में तैयार की गई रिपोर्ट के मुताबिक ओखला बैराज पर यमुना के पानी में फेकल कोलीफार्म की मात्रा स्वीकृत सीमा से सात लाख गुना ज्यादा है।
सामान्य तौर पर यदि पानी में फेकल कोलीफार्म प्रति 100 मिलिलीटर में 500 तक होता है, परंतु 100 मिलीलीटर में फेकल कोलीफार्म की अधिकतम सीमा 2500 है। रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली में किसी भी जगह पर फेकल कोलीफार्म की मात्रा निर्धारित सीमा से कई गुना ज्यादा है। ओखला बैराज पर इसका स्तर सर्वाधिक है।
ज्यादा खराब हो जाती है पानी की गुणवत्ता
दिल्ली जैव विविधता कार्यक्रम के वैज्ञानिक प्रमुख डॉ. फैयाज ए खुदसर बताते हैं कि फेकल कोलीफार्म पानी की गुणवत्ता को बहुत ज्यादा खराब कर देता है।
सीवरेज ने बिगाड़ा हाल
विशेषज्ञों के मुताबिक, खुले नालों के जरिए यमुना के पानी में बड़ी तादाद में घरों का सीवरेज आकर गिरता है। इसी के जरिए मल-मूल और तमाम किस्म के रसायन भी यमुना में पहुंच जाते हैं। यह जलीय जीवन को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। यमुना के पानी में आक्सीजन की मात्रा भी इतनी नहीं होती कि पानी में मौजूद सूक्ष्म जीव इन्हें क्षरित कर सकें।
दिल्ली में 80 प्रदूषण
यमुना की सफाई को लेकर वन अनुसंधान संस्थान देहरादून की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली से गुजरने के दौरान यमुना सर्वाधिक प्रदूषित होती है। खासतौर पर दिल्ली से गुजरने वाला 22 किलोमीटर का हिस्सा सबसे ज्यादा प्रदूषित होता है। नदी में होने वाला 80 फीसदी प्रदूषण इसी 22 किलोमीटर के हिस्से में बहाया जाता है।